मुंबई: मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने मुद्रास्फीति में नरमी के बीच आर्थिक वृद्धि की रफ्तार कमजोर पड़ने पर गौर करते हुए प्रमुख नीतिगत दर में कटौती का निर्णय किया. इस कदम का मकसद वृद्धि के लिये अनुकूल माहौल बनाना है. रिजर्व बैंक ने गुरुवार को इस महीने की शुरूआत में हुई एमपीसी की बैठक का ब्योरा जारी करते हुए नीतिगत दर में कटौती के ये कारण बताये.
एमपीसी बैठक के ब्योरे के अनुसार आरबीआई के गवर्नर ने अपनी पहली मौद्रिक नीति समीक्षा में यह दलील दी कि वृद्धि में नरमी की चिंता पर गौर करने की आवश्यकता है. सात फरवरी को द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में एमपीसी ने नीतिगत दर में कटौती के लिये 4 सदस्यों ने पक्ष में जबकि दो ने इसके खिलाफ मतदान किए. समीक्षा में केंद्रीय बैंक ने रेपो दर में 0.25 प्रतिशत कर 6.25 प्रतिशत कर बाजार को अचंभित किया.
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दास ने अपनी दलील में कहा, ''वृद्धि दर की गति कमजोर हुई और निजी निवेश को गति देने तथा निजी खपत को बढ़ाने की आवश्यकता है. खासकर धीमी पड़ती वैश्विक वृद्धि को देखते हुए इसकी जरूरत है.'' उन्होंने मुद्रास्फीति में नरमी तथा भविष्य में कीमत सूचकांक के जोखिम के संतुलित होने का जिक्र करते हुए कहा कि वृद्धि की चिंता को दूर करने के लिये नीतिगत कदम के लिये गुंजाइश बनी है.
उल्लेखनीय है कि आरबीआई को वृद्धि संबंधित चिंताओं को दूर करने के साथ मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति को 2 प्रतिशत घट-बढ़ के साथ 4 प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली है. सकल मुद्रास्फीति दिसंबर में 2.2 प्रतिशत रही. दास ने कहा, ''कई घरेलू वस्तुओं की अत्यधिक आपूर्ति के कारण खाद्य मुद्रास्फीति का परिदृश्य नरम रहने की उम्मीद है.'' उन्होंने कहा कि कच्चे तेल के दाम में नरमी से भी मदद मिलेगी.
आर्थिक वृद्धि के मामले में उन्होंने यह भी दलील दी कि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने वित्त वर्ष 2018-19 में आर्थिक वृद्धि दर 7.2 प्रतिश्रात रहने का अनुमान लगाया है लेकिन यह वृद्धि दर में नरमी का संकेत है क्योंकि आरबीआई ने पूर्व में इसके 7.4 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था. बैठक में दास के साथ कार्यकारी निदेशक माइकल पात्रा तथा सदस्य पामी दुआ और रवीन्द्र ढोलकिया ने नीतिगत दर में 0.25 प्रतिशत कटौती का समर्थन किया जबकि डिप्टी गवर्नर विरल आचाय तथा चेतन घाटे ने कटौती के खिलाफ वोट किया.
(भाषा)
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