नई दिल्ली : पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रविवार को कहा कि देश आर्थिक नरमी की ओर बढ़ रहा है. उन्होंने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि उन्हें आर्थिक समझ नहीं है और उन्होंने अर्थव्यवस्था को बदहाल कर दिया है.
सिंह ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर जरूरत से ज्यादा नियम थोप दिए गए हैं और अपने हस्तक्षेप और नियंत्रणों के माध्यम से सरकार अर्थव्यवस्था की 'नियंत्रक बन गयी है.' उन्होंने आर्थिक वृद्धि के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि देश के सामने आर्थिक नरमी का दौर आने वाला है.
उन्होंने आर्थिक नीतियों में अदालत के बढ़ते दखल पर भी निराशा जाहिर की. उन्होंने कहा कि कांग्रेस होती तो अर्थव्यवस्था को अलग तरीके से संभालती.
मनमोहन सिंह को देश को आर्थिक सुधार के रास्ते पर लाने का श्रेय दिया जाता है. वह दो बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं. उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के पास देश की आर्थिक पारिस्थितिकी की गति समझने की क्षमता का अभाव है. यही कारण है कि इस सरकार ने नोटबंदी जैसे व्यवधान पैदा करने वाले कदम उठाये.
सिंह ने कहा, "वित्त मंत्रालय की ताजा मासिक रिपोर्ट से यह पता चलता है कि देश आर्थिक नरमी की ओर बढ़ रहा है. रिपोर्ट में गत जनवरी-अप्रैल तिमाही के लिये सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर घटाकर 6.50 प्रतिशत कर दी गयी है." उन्होंने कहा कि निजी उपभोग की वृद्धि में गिरावट, स्थायी निवेश की सुस्त वृद्धि तथा नरम निर्यात इस स्थिति के लिये जिम्मेदार मुख्य कारक हैं.
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उन्होंने कहा, "मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि मोदी सरकार ने हमारी अर्थव्यवस्था को बदहाली में पहुंचा दिया है." सिंह ने कहा कि नोटबंदी संभवत: आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला है. इसने देश की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया तथा अनौपचारिक एवं असंगठित क्षेत्र में करोड़ों लोग बेरोजगार हो गये.
उन्होंने कहा, "यह कुछ और नहीं बल्कि उन लोगों को धोखा देने का आपराधिक कृत्य था जिन्होंने इस सरकार को भारी बहुमत के साथ चुना." उन्होंने कहा, "यह सरकार निवेश पाने की बात करती है जबकि सच यह है कि एफडीआई वृद्धि पांच साल के निचले स्तर पर है, बुनियादी संरचना क्षेत्र की वृद्धि दो साल के निचले स्तर पर है. रुपया एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन वाली मुद्रा बन गया है. ये सभी गंभीर चिंता के कारण हैं."
सिंह ने कहा कि यदि मोदी सरकार ने पिछली सरकारों के तेज आर्थिक वृद्धि तथा विकास के रास्ते का अनुसरण किया होता तो पिछले पांच साल में देश से गरीबी हट गयी होती. उन्होंने कहा, "ऐसा करने के बजाय उन्होंने अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी जैसा अनावश्यक और व्यवधान लाने वाला कदम उठाया. यह देश की आर्थिक पारिस्थितिकी की समझ और आर्थिक दृष्टिकोण के अभाव के कारण हुआ."
सिंह ने कहा, "मोदी सरकार को संसद में जिस तरह का बहुमत मिला, वे इसका इस्तेमाल आर्थिक मोर्चे पर देश को लाभ पहुंचाने में कर सकते थे. दुर्भाग्य से औंधे मुंह गिर गये." पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस की 'न्याय योजना' से सामाजिक कल्याण तथा उत्कृष्ट अर्थव्यवस्था का नया स्वरूप सामने आएगा. इसके आर्थिक लाभ से उपभोग का स्तर बढ़ेगा जिससे आर्थिक वृद्धि को गति मिलेगी.
उन्होंने कहा, "हमें लगता है कि जीडीपी के डेढ़ प्रतिशत का इस्तेमाल 20 प्रतिशत आबादी के लिये करना पूरी तरह उचित और ठीक है. कांग्रेस सरकार राजकोषीय स्थिति को सही बनाये रखने के लिये प्रतिबद्ध है. करीब तीन हजार अरब डॉलर की हमारी अर्थव्यवस्था में इस खर्च को सहने की राजकोषीय क्षमता है." सिंह ने कहा, "न्याय योजना के वित्तपोषण के लिये मध्यम वर्ग पर किसी तरह का नया कर लगाने की जरूरत नहीं होगी. न्याय योजना का विरोध सिर्फ वही करेंगे जिनमें गरीबों के प्रति कोई करुणा नहीं है."
उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी मौजूदा माल एवं सेवा कर (जीएसटी) की समीक्षा करने तथा इसकी जगह जीएसटी का नया संस्करण लाने का वादा करती है. उन्होंने कहा, "हमारी अर्थव्यवस्था में अभी भी बहुत नियमन हैं. संरचनात्मक दिक्कतें बनी हुई हैं. सरकारी नियंत्रण और नौकरशाही का हस्तक्षेप बहुत है. नियामक नियंत्रक बन गये हैं. आर्थिक नीतियों में अदालत का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है. हमने ऐसा रास्ता नहीं पकड़ा होता."
सिंह ने कहा कि देश में अभी रोजगार नहीं है. मोदी सरकार ने देश के युवाओं से चार करोड़ रोजगार छीन उनके भविष्य को बर्बाद किया है. उन्होंने कहा, "नोटबंदी और खामियों भरे जीएसटी के अज्ञानता भरे निर्णय के साथ कराधान आतंकवाद ने संगठित और असंगठित क्षेत्र दोनों को पूरी तरह तबाह किया है. नोटबंदी और जीएसटी की दोहरी मार से छोटे, मध्यम एवं सूक्ष्म उपक्रम अभी भी दर्दनाक प्रभावों से जूझ रहे हैं."
सिंह ने कहा कि 2018 में औद्योगिक वृद्धि दर 4.45 प्रतिशत रही जो कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल (2004-2014) में औसतन 8.35 प्रतिशत थी. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में 2014 से 2018 के बीच जीडीपी में विनिर्माण की हिस्सेदारी महज 0.50 प्रति बढ़ी जबकि कृषि क्षेत्र की वृद्धि भी नगण्य है.