नई दिल्ली: केंद्र ने अरहर दाल के दाम में तेजी को थामने के लिये कदम उठाये हैं. इसके तहत निजी कारोबारियों के लिये अक्टूबर तक अरहर दाल की आयात सीमा बढ़ाकर 4 लाख टन करने का निर्णय किया गया. साथ ही सहकारी संस्थान नाफेड से खुले बाजार में 2 लाख टन दाल बेचने को कहा गया है.
खाद्य मंत्री राम विलास पासवान की अध्यक्षता में अंतर-मंत्रालयी समिति की मंगलवार को हुई बैठक में उक्त निर्णय किये गये. बैठक में खाद्य और उपभोक्ता मामलों के सचिवों के अलावा नाफेड तथा डीजीएफटी (विदेश व्यापार महानिदेशालय) के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया.
बैठक के बाद पासवान ने संवाददाताओं से कहा, "केवल मीडिया रिपोर्ट में अरहर दाल के दाम में तेजी की बात है. वैसे सरकार के पास अरहर दाल समेत दलहन के पर्याप्त भंडार है. समिति ने इस संदर्भ में 2-3 निर्णय किये."
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देश में दाल की उपलब्धता पर चर्चा के बाद पासवान ने कहा कि सरकार ने निजी कारोबारियों के लिये अरहर आल की आयात सीमा मैजूदा 2 लाख टन से बढ़ाकर 4 लाख टन करने का निर्णय किया है. यह बढ़ी सीमा अक्टूबर तक के लिए है.
उन्होंने कहा, "इसका मतलब है कि करीब 4 लाख टन अरहर दाल का आयात 30 अक्टूबर तक किया जाएगा. वाणिज्य मंत्रालय पहले ही 2 लाख टन अरहर दाल के आयात की अनुमति दे दी है और अगले कुछ दिनों में लाइसेंस जारी किये जाएंगे."
सरकार ने स्थानीय किसानों के हितों की रक्षा के लिये 2017 में 2 लाख टन आयात सीमा लगायी थी. उन्होंने कहा कि इसके अलावा समिति ने द्विपक्षीय आधार पर मोजाम्बिक से 1.75 लाख टन अरहर दाल के आयात की अनुमति दी है.
पासवान ने यह भी कहा कि कीमतों पर अंकुश लगाने के लिये समिति ने करीब 2 लाख टन अरहर दाल बफर स्टाक से खुले बाजार में जारी करने का फैसला किया है. नोफेड से अरहर दाल खेले बाजार में बिना नफा-नुकसान के बेचने को कहा गया है.
मंत्री ने कहा, "इन उपायों से अरहर दाल की उपलब्धता बढ़ाने और कीमतों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी. कीमतों में वृद्धि मनोवैज्ञानिक आधार पर है. मानसून में देरी की आशंका से उत्पादन में गिरावट के अनुमान आधारित है."
उन्होंने कहा कि सरकार जमाखोरों तथा कालाबजारी करने वालों पर भी नजर रखेगी और किसी को भी ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी की अनुमति नहीं देगी.
पासवान ने कहा कि सरकार के पास 39 लाख टन दाल का बफर भंडार है. इसमें अरहर दाल करीब 7.5 लाख टन है. उन्होंने यह भी कहा कि देश में दाल का उत्पादन 2018-19 में घटकर 232 लाख टन रहने का अनुमान है जो इससे पूर्व वर्ष में 254.2 लाख टन था.