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जानिए क्यों कम नहीं होगी आपको लोन मिलने की संभावना

इस वर्ष केंद्र और राज्यों ने बहुत अधिक ऋण लिया है. इसके बावजूद कॉर्पोरेट क्षेत्र, एसएमई और खुदरा कर्ज लेने वाले निजी लोगों को परेशानी नहीं होगी, क्योंकि बाजार में पैसे की आपूर्ति पर्याप्त है. इस साल सरकार ज्यादा उधार ले रही है, तो उसे आसानी से समाहित कर लेगी. ईटीवी के वरिष्ठ संवाददाता कृष्णानंद त्रिपाठी ने बात की दो अर्थशास्त्रियों से. देखें विशेष रिपोर्ट...

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Published : Sep 25, 2020, 10:42 PM IST

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नई दिल्ली : प्रारंभिक अनुमान है कि वैश्विक महामारी कोविड -19 के कारण हो सकता है कि केंद्र और राज्य मिलकर अपने राजस्व संग्रह में भारी कमी को पूरा करने के लिए इस वित्तीय वर्ष में 8-10 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त कर्ज लें. इससे यह आशंका बढ़ गई है कि निजी क्षेत्र के लोगों के लिए कर्ज मिलने की गुंजाइश ही नहीं बचे.

कोटक महिंद्रा बैंक की वरिष्ठ अर्थशास्त्री और वरिष्ठ वाइस प्रेसीडेंट उपासना भारद्वाज ने कहा कि इस समय बैंकिंग क्षेत्र में दो वजहों से तरलता पर्याप्त मात्रा में है. एक है संरचनात्मक तरलता और दूसरा है कर्ज में बढ़ोतरी और जमा में बढ़ोतरी. भारद्वाज का कहना है कि जमा में बढ़ोतरी करीब दोहरे अंकों में है और कर्ज में स्पष्ट रूप से बढ़ोतरी कम है. इसलिए इस तरह के झुकाव को देखते हुए बैंकिंग प्रणाली में पैसे की आपूर्ति पर्याप्त है.

कोविड -19 महामारी ने उधार लेने की गति को बदल दिया

कोरोना वायरस के तेजी से फैलने से न केवल सरकार का राजस्व संग्रह प्रभावित हुआ, बल्कि देशव्यापी तालाबंदी के दौरान व्यापार और उद्योग तीन महीने के लिए बंद हो गए. इसीलिए सरकार को 1.7 लाख करोड़ रुपये के प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के तहत कोविड-19 के राहत उपायों पर अधिक खर्च करने की जरूरत थी. इस योजना का मकसद देश की करीब दो तिहाई आबादी यानी करीब 80 करोड़ लोगों तक भोजन, ईंधन और खर्च करने के लिए उनके हाथों में कुछ नकदी देकर इस साल नवंबर तक कोविड -19 वायरस के प्रतिकूल आर्थिक प्रभाव से बचाना है.

कोरोना की वजह से राजस्व संग्रह बुरी तरह प्रभावित हुआ

इस साल फरवरी में अपना पहला पूर्ण बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्तीय वर्ष 2020-21 में केंद्र की कुल राजस्व प्राप्तियों को 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान लगाया था. यह संशोधित अनुमान पिछले वित्त वर्ष से 1.7 लाख करोड़ रुपये से अधिक का था, जो पिछले साल की तुलना में 9 फीसद से अधिक था. इस महीने की शुरुआत में एक एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार 15 सितंबर तक पिछले वर्ष की समान अवधि में राजस्व संग्रह 22.5 फीसद घटकर केंद्र का कुल कर संग्रह सिर्फ 2.53 लाख करोड़ रुपये रहा. कुल कर संग्रह में आई भारी गिरावट ने सरकार के भीतर इस सोच की पुष्टि की कि कोविड की वजह से उसके राजस्व संग्रह में आई कमी का तब गंभीर प्रभाव पड़ेगा, जब सरकार को कल्याणकारी योजनाओं और राहत उपायों पर अधिक खर्च करने की जरूरत होगी.

केंद्र ने इस साल मई में अपने उधार लेने के लक्ष्य को 7.8 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान से बढ़ाकर 12 लाख करोड़ रुपये कर दिया. इस तरह इसमें 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बढ़ोतरी हो गई. केंद्र ने राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम ) अधिनियम के तहत राज्यों की वैधानिक उधार सीमा को भी बढ़ा दिया है. इससे इस वर्ष राज्यों को 4.26 लाख करोड़ रुपये अलग से उधार लेने की सुविधा मिल गई है.

तीसरी बात कि इस साल केंद्र ने जीएसटी में कमी की भरपाई की संवैधानिक गारंटी देने में असमर्थता जता दी है और इसके बजाय राज्यों से एक विशेष खिड़की के माध्यम से उधार लेने को कहा है. जिसे बाद में केंद्र सरकार चुकाएगी. शुरुआती अनुमानों के अनुसार इससे 1-2 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त उधार मिल सकता है लेकिन इससे बैंकिंग व्यवस्था पर अधिक बोझ पड़ेगा. इन तीनों कारकों से सरकार अकेले 10-12 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त उधार ले सकती है, जिससे कुछ हलकों में चिंता हो सकती है कि इससे खुदरा उधारकर्ताओं सहित निजी क्षेत्र में कर्ज का प्रवाह प्रभावित हो सकता है.

निजी लोन लेने वालों के लिए पैसे की कोई कमी नहीं

ईजीआरडब्ल्यू फाउंडेशन और एसोचैम की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित एक चर्चा में ईटीवी भारत के एक सवाल के जवाब में कोटक महिंद्रा बैंक की उपासना भारद्वाज ने कहा कि बैंकिंग प्रणाली में पर्याप्त तरलता बनाए रखना सुनिश्चित करने के लिए भी रिजर्व बैंक उपाय कर रहा है. उन्होंने कहा कि कर्ज की जरूरत कम है, ऐसे वातावरण को देखते हुए आप कर्ज देने के लिए पैसे की कमी नहीं पाएंगे.

बैंकों में है पर्याप्त तरलता

उपासना भारद्वाज का कहना है कि वैश्विक महामारी कोविड -19 से पैदा हुए तनाव के बावजूद भारतीय बैंकों के पास पर्याप्त तरलता है. यदि आप देखते हैं कि बैंक के पास क्या जमापूंजी है, क्या वास्तव में है और क्या होना आवश्यक है तो जिस एसएलआर प्रतिभूति में वे निवेश कर रहे हैं, वह एनडीटीएल (शुद्ध मांग और समय देनदारियों) का लगभग 29 फीसद है, जो उनकी होल्डिंग है, उससे यह लगभग 10 फीसद अधिक है.

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य आशिमा गोयल का कहना है कि इस प्रणाली में पर्याप्त तरलता है, जो इस वर्ष अतिरिक्त सरकारी उधार को खपा लेगी. ईटीवी भारत के एक सवाल के जवाब में आशिमा गोयल ने कहा कि अब तक इस प्रणाली में पर्याप्त तरलता है, जो जी-सेक दरों को प्रभावित किए बिना सरकारी उधारी को समायोजित करेगी.

अतिरिक्त तरलता के बारे में बात करते हुए उपासना भारद्वाज का कहना है कि बैंक इस अतिरिक्त धन को पूरी तरह से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश कर रहे हैं, क्योंकि निवेश के लिए अन्य विकल्पों की कमी है. कुल मिलाकर इस समय कर्ज लेने के लिए कोई भीड़ नहीं है. यह समस्या केवल तब होती है, जब एक समय में सरकार बहुत अधिक कर्ज लेती है.

हालांकि, आशिमा गोयल ने चेतावनी दी है कि भविष्य में स्थिति बहुत बदल सकती है, क्योंकि महामारी ने खत्म होने का कोई संकेत नहीं दिया है और चिकित्सा विज्ञान को अभी इस वायरस का समाधान ढूंढना बाकी है. आशिमा गोयल ने कहा कि जी-सेक दरें घट रही हैं और बाजार में वास्तविक ब्याज दरें कम हो रही हैं, लेकिन मौजूदा माहौल में भविष्य में कर्ज लेना क्या होगा, इसे लेकर बहुत ज्यादा अनिश्चितता है. वह नोएडा स्थित ईजीआरओडब्ल्यू फाउंडेशन की ओर से आयोजित मौद्रिक नीति समिति की परिचर्चा में बोल रही थीं.

वायरस से वैश्विक अर्थव्यवस्था तबाह

इस संक्रामक वायरस के पिछले वर्ष के अंत में चीन के वुहान क्षेत्र में पाए जाने के बाद के मात्र 10 महीने से भी कम समय में देश भर में 92 हजार से अधिक लोग मारे गए हैं. दुनियाभर में करीब दस लाख लोगों की इससे मौत हुई है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ ) के एक शुरुआती अनुमान के अनुसार सार्स-कोव-2 वायरस से इस साल विश्व अर्थव्यवस्था को नौ खरब डॉलर का नुकसान होने की आशंका है. वायरस की वजह से लॉकडाउन के उपायों के कारण भारत की जीडीपी वृद्धि इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून अवधि) के दौरान लगभग एक चौथाई हो गई.

नई दिल्ली : प्रारंभिक अनुमान है कि वैश्विक महामारी कोविड -19 के कारण हो सकता है कि केंद्र और राज्य मिलकर अपने राजस्व संग्रह में भारी कमी को पूरा करने के लिए इस वित्तीय वर्ष में 8-10 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त कर्ज लें. इससे यह आशंका बढ़ गई है कि निजी क्षेत्र के लोगों के लिए कर्ज मिलने की गुंजाइश ही नहीं बचे.

कोटक महिंद्रा बैंक की वरिष्ठ अर्थशास्त्री और वरिष्ठ वाइस प्रेसीडेंट उपासना भारद्वाज ने कहा कि इस समय बैंकिंग क्षेत्र में दो वजहों से तरलता पर्याप्त मात्रा में है. एक है संरचनात्मक तरलता और दूसरा है कर्ज में बढ़ोतरी और जमा में बढ़ोतरी. भारद्वाज का कहना है कि जमा में बढ़ोतरी करीब दोहरे अंकों में है और कर्ज में स्पष्ट रूप से बढ़ोतरी कम है. इसलिए इस तरह के झुकाव को देखते हुए बैंकिंग प्रणाली में पैसे की आपूर्ति पर्याप्त है.

कोविड -19 महामारी ने उधार लेने की गति को बदल दिया

कोरोना वायरस के तेजी से फैलने से न केवल सरकार का राजस्व संग्रह प्रभावित हुआ, बल्कि देशव्यापी तालाबंदी के दौरान व्यापार और उद्योग तीन महीने के लिए बंद हो गए. इसीलिए सरकार को 1.7 लाख करोड़ रुपये के प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के तहत कोविड-19 के राहत उपायों पर अधिक खर्च करने की जरूरत थी. इस योजना का मकसद देश की करीब दो तिहाई आबादी यानी करीब 80 करोड़ लोगों तक भोजन, ईंधन और खर्च करने के लिए उनके हाथों में कुछ नकदी देकर इस साल नवंबर तक कोविड -19 वायरस के प्रतिकूल आर्थिक प्रभाव से बचाना है.

कोरोना की वजह से राजस्व संग्रह बुरी तरह प्रभावित हुआ

इस साल फरवरी में अपना पहला पूर्ण बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्तीय वर्ष 2020-21 में केंद्र की कुल राजस्व प्राप्तियों को 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान लगाया था. यह संशोधित अनुमान पिछले वित्त वर्ष से 1.7 लाख करोड़ रुपये से अधिक का था, जो पिछले साल की तुलना में 9 फीसद से अधिक था. इस महीने की शुरुआत में एक एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार 15 सितंबर तक पिछले वर्ष की समान अवधि में राजस्व संग्रह 22.5 फीसद घटकर केंद्र का कुल कर संग्रह सिर्फ 2.53 लाख करोड़ रुपये रहा. कुल कर संग्रह में आई भारी गिरावट ने सरकार के भीतर इस सोच की पुष्टि की कि कोविड की वजह से उसके राजस्व संग्रह में आई कमी का तब गंभीर प्रभाव पड़ेगा, जब सरकार को कल्याणकारी योजनाओं और राहत उपायों पर अधिक खर्च करने की जरूरत होगी.

केंद्र ने इस साल मई में अपने उधार लेने के लक्ष्य को 7.8 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान से बढ़ाकर 12 लाख करोड़ रुपये कर दिया. इस तरह इसमें 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बढ़ोतरी हो गई. केंद्र ने राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम ) अधिनियम के तहत राज्यों की वैधानिक उधार सीमा को भी बढ़ा दिया है. इससे इस वर्ष राज्यों को 4.26 लाख करोड़ रुपये अलग से उधार लेने की सुविधा मिल गई है.

तीसरी बात कि इस साल केंद्र ने जीएसटी में कमी की भरपाई की संवैधानिक गारंटी देने में असमर्थता जता दी है और इसके बजाय राज्यों से एक विशेष खिड़की के माध्यम से उधार लेने को कहा है. जिसे बाद में केंद्र सरकार चुकाएगी. शुरुआती अनुमानों के अनुसार इससे 1-2 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त उधार मिल सकता है लेकिन इससे बैंकिंग व्यवस्था पर अधिक बोझ पड़ेगा. इन तीनों कारकों से सरकार अकेले 10-12 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त उधार ले सकती है, जिससे कुछ हलकों में चिंता हो सकती है कि इससे खुदरा उधारकर्ताओं सहित निजी क्षेत्र में कर्ज का प्रवाह प्रभावित हो सकता है.

निजी लोन लेने वालों के लिए पैसे की कोई कमी नहीं

ईजीआरडब्ल्यू फाउंडेशन और एसोचैम की ओर से संयुक्त रूप से आयोजित एक चर्चा में ईटीवी भारत के एक सवाल के जवाब में कोटक महिंद्रा बैंक की उपासना भारद्वाज ने कहा कि बैंकिंग प्रणाली में पर्याप्त तरलता बनाए रखना सुनिश्चित करने के लिए भी रिजर्व बैंक उपाय कर रहा है. उन्होंने कहा कि कर्ज की जरूरत कम है, ऐसे वातावरण को देखते हुए आप कर्ज देने के लिए पैसे की कमी नहीं पाएंगे.

बैंकों में है पर्याप्त तरलता

उपासना भारद्वाज का कहना है कि वैश्विक महामारी कोविड -19 से पैदा हुए तनाव के बावजूद भारतीय बैंकों के पास पर्याप्त तरलता है. यदि आप देखते हैं कि बैंक के पास क्या जमापूंजी है, क्या वास्तव में है और क्या होना आवश्यक है तो जिस एसएलआर प्रतिभूति में वे निवेश कर रहे हैं, वह एनडीटीएल (शुद्ध मांग और समय देनदारियों) का लगभग 29 फीसद है, जो उनकी होल्डिंग है, उससे यह लगभग 10 फीसद अधिक है.

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य आशिमा गोयल का कहना है कि इस प्रणाली में पर्याप्त तरलता है, जो इस वर्ष अतिरिक्त सरकारी उधार को खपा लेगी. ईटीवी भारत के एक सवाल के जवाब में आशिमा गोयल ने कहा कि अब तक इस प्रणाली में पर्याप्त तरलता है, जो जी-सेक दरों को प्रभावित किए बिना सरकारी उधारी को समायोजित करेगी.

अतिरिक्त तरलता के बारे में बात करते हुए उपासना भारद्वाज का कहना है कि बैंक इस अतिरिक्त धन को पूरी तरह से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश कर रहे हैं, क्योंकि निवेश के लिए अन्य विकल्पों की कमी है. कुल मिलाकर इस समय कर्ज लेने के लिए कोई भीड़ नहीं है. यह समस्या केवल तब होती है, जब एक समय में सरकार बहुत अधिक कर्ज लेती है.

हालांकि, आशिमा गोयल ने चेतावनी दी है कि भविष्य में स्थिति बहुत बदल सकती है, क्योंकि महामारी ने खत्म होने का कोई संकेत नहीं दिया है और चिकित्सा विज्ञान को अभी इस वायरस का समाधान ढूंढना बाकी है. आशिमा गोयल ने कहा कि जी-सेक दरें घट रही हैं और बाजार में वास्तविक ब्याज दरें कम हो रही हैं, लेकिन मौजूदा माहौल में भविष्य में कर्ज लेना क्या होगा, इसे लेकर बहुत ज्यादा अनिश्चितता है. वह नोएडा स्थित ईजीआरओडब्ल्यू फाउंडेशन की ओर से आयोजित मौद्रिक नीति समिति की परिचर्चा में बोल रही थीं.

वायरस से वैश्विक अर्थव्यवस्था तबाह

इस संक्रामक वायरस के पिछले वर्ष के अंत में चीन के वुहान क्षेत्र में पाए जाने के बाद के मात्र 10 महीने से भी कम समय में देश भर में 92 हजार से अधिक लोग मारे गए हैं. दुनियाभर में करीब दस लाख लोगों की इससे मौत हुई है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ ) के एक शुरुआती अनुमान के अनुसार सार्स-कोव-2 वायरस से इस साल विश्व अर्थव्यवस्था को नौ खरब डॉलर का नुकसान होने की आशंका है. वायरस की वजह से लॉकडाउन के उपायों के कारण भारत की जीडीपी वृद्धि इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून अवधि) के दौरान लगभग एक चौथाई हो गई.

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