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सरकार द्वारा घोषित एमएसपी में 50 फीसदी वृद्धि का दावा झूठ: किसान संगठन

केंद्र सरकार ने वर्ष 2020-21 खरीफ फसल के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित किया गया जिसमें लागत मूल्य पर 50-83% वृद्धि का दावा किया गया है, जो देश के लगभग सभी बड़े किसान संगठनों के मुताबिक महज आंकड़ों का खेल है और उन्हें इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा है.

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न्यूनतम समर्थन मूल्य
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Published : Jun 3, 2020, 10:14 PM IST

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने वर्ष 2020-21 खरीफ फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित किया, जिसमें लागत मूल्य पर 50% से 83% वृद्धि का दावा किया गया है. कुल 14 फसलों के लिए एमएसपी घोषित करते हुए यह कहा गया कि लागत मूल्य का आकलन करते हुए मानव श्रम, बैल/मशीन श्रम, पट्टा भूमि के लिए दिया गया किराया, बीज, उर्वरक, खाद, सिचाई जैसे सभी खर्चों का ध्यान रखा गया है. हालांकि, किसान संगठन सरकार के द्वारा की गई एमएसपी की घोषणा को एक और जुमला बता रहे हैं.

किसान नेताओं का आरोप है कि लागत मूल्य को कमतर आंक कर सरकार ए2+एफएल फॉर्मूले के तहत लागत मूल्य निकाल रही है, जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में ही यह वायदा किया था कि उनकी सरकार सी2+50% एमएसपी देगी. मोदी सरकार के कृषि मंत्री लगातार यह दावा करते रहे हैं कि वो स्वामीनाथन आयोग की शिफारिश के अनुसार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दे रहे हैं लेकिन किसान संगठनों ने इन बातों को वास्तविकता से परे बताया है.

क्या है ए2, ए2+एफएल और सी2 फॉर्मूला?

निर्धारित फसलों की लागत निकालने के लिए कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने तीन वर्ग बनाए हैं. ए2 में किसानों द्वारा किए सभी वास्तिक खर्च जैसे बीज, खाद, सिंचाई लागत आदि आते हैं, वहीं ए2+एल में वास्तिविक लागत के साथ पारिवारिक श्रम को भी जोड़ा जाता है और सी2 में वास्तविक लागत और पारिवारिक श्रम के साथ-साथ खेत की जमीन का किराया और दूसरे ब्याज को भी शामिल किया जाता है.

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिती के राष्ट्रीय संयोजक सरदार वीएम सिंह ने बताया कि साल 2019-20 के लागत मूल्य अनुमान को देख तो कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) के अनुसार ज्वार का लागत मूल्य 2,324 रुपए प्रति क्विंटल था लेकिन सरकार ने इसका लागत मूल्य मात्र 1,746 रुपए प्रति क्विंटल माना है. सी2+50% के हिसाब से ज्वार का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3,486 रुपए प्रति क्विंटल होना चाहिए था लेकिन सरकार ने 2,620 रुपए प्रति क्विंटल एमएसपी तय किया है. यह एमएसपी स्वामीनाथन आयोग के सी2+50% के फॉर्मूले से 886 रुपए प्रति क्विंटल कम है. इससे यह साफ होता है कि सरकार द्वारा लागत मूल्य से 50-83% ज्यादा देने का दावा महज जुमला है. इसी तरह से सभी 14 फसलों के लागत मूल्य को सीएसीपी द्वारा दिए गए सी2 लागत मूल्य और ए2+एफएल लागत मूल्य के बीच तुलना करें तो दोनों में बड़े अंतर सामने आते हैं.

ये भी पढ़ें: भारत लाया जा रहा है भगोड़ा कारोबारी विजय माल्या

अरहर दाल का लागत मूल्य सीएसीपी के सी2 लागत मूल्य आंकलन के मुताबिक 5,417 रुपए प्रति क्विंटल आता है. वहीं ए2+एफएल के मुताबिक लागत 3,796 रुपए प्रति क्विंटल है. सरकार ने खरीफ वर्ष 2020-21 के लिए अरहर की एमएसपी 6,000 रुपए प्रति क्विंटल तय की है, लेकिन स्वामीनाथन आयोग की शिफारिश के मुताबिक अगर सरकार सी2+50% या लागत का डेढ़ गुना देने की बात करती है तो एमएसपी 8,125.5 रुपए प्रति क्विंटल होनी चाहिए थी.

वीएम सिंह का कहना है कि इसके बावजूद भी अगर सरकार अपने द्वारा घोषित कीमत पर ही किसानों से पूरी खरीद की गारंटी दे तो भी किसान खुश हो जाएंगे, लेकिन गौरतलब है कि घोषित एमएसपी पर भी सरकार किसान से खरीद नहीं कर पा रही है और उन्हें मजबूरन मंडियों में कम कीमत पर फसल को बेचना पड़ रहा है.

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार बस 50% और 83 % जैसे आंकड़ों को दिखा कर किसानों को रिझाने के प्रयास कर रही है. धान का ही उदाहरण ले लें तो इस पर 53 पैसा प्रति किलो बढ़ाया गया है. वास्तविकता में उन्होंने किसानों से किया अपना वादा कभी नहीं निभाया है. किसान नेता राकेश टिकैत ने सरकार को चुनौती देते हुए सरकार को अपने द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही खरीद करने की गारंटी दे कर दिखाने को कहा है.

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि एमएसपी का वादा तो सीएसीपी के द्वारा बताए गए सम्पूर्ण लागत (सी2) पर 50% देने का था लेकिन सरकार ए2+एफएल पर 50% या उससे ज्यादा दे कर अपनी पीठ थपथपा रही है. कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के मुताबिक धान का लागत मूल्य (सी2) 2019-20 में 1,619 रुपए प्रति क्विंटल था लेकिन 2020-21 की लागत (ए2+एफएल) 1,245 तय की गई है. सी2+50% के मुताबिक एमएसपी 2,428.5 होनी चाहिए थी, लेकिन सरकार ने धान की एमएसपी 2020-21 खरीफ वर्ष के लिए महज 1,868 रुपए प्रति क्विंटल तय की है. यह सरकार के द्वारा किए गए वादे से 560 रुपए कम है.

उन्हेंने कहा कि कोरोना महामारी ने पहले ही किसानों की कमर तोड़ दी है अब सरकार को दोबारा एमएसपी घोषित करनी चाहिए. इतना ही नहीं, लॉकडाउन की वजह से किसानों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकार को रबी की फसलों पर भी 250 से 500 रुपए प्रति क्विंटल का अतिरिक्त बोनस देना चाहिए नहीं तो किसान सरकार का विरोध करने को मजबूर होंगे.

ये भी पढ़ें: अनाज, दाल, प्याज आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बाहर होंगे, दो अध्यादेश मंजूर

राष्ट्रीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहार ने कहा कि किसान महासंघ इसके लिए सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहा है. सरकार लगातार यह दावा कर रही है कि वो लागत मूल्य की देढ़ गुणा कीमत किसानों को दे रही है लेकिन यह सच नहीं है.

सीपीआईएम की किसान इकाई अखिल भारतीय किसान सभा ने सीएसीपी द्वारा 2019-20 के लिए सभी फसलों की सम्पूर्ण लागत (सी2), इस वर्ष के ए2+एफएल, सरकार द्वारा घोषित एमएसपी और सी2+50% के मुताबिक वास्तविक मूल्य और तय एमएसपी के बीच का अंतर आंकड़ों के साथ जारी किया है. ऑल इंडिया किसान सभा ने देश भर के किसानों से इसके खिलाफ एकजुट हो कर विरोध करने का आव्हान भी किया है.

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने वर्ष 2020-21 खरीफ फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित किया, जिसमें लागत मूल्य पर 50% से 83% वृद्धि का दावा किया गया है. कुल 14 फसलों के लिए एमएसपी घोषित करते हुए यह कहा गया कि लागत मूल्य का आकलन करते हुए मानव श्रम, बैल/मशीन श्रम, पट्टा भूमि के लिए दिया गया किराया, बीज, उर्वरक, खाद, सिचाई जैसे सभी खर्चों का ध्यान रखा गया है. हालांकि, किसान संगठन सरकार के द्वारा की गई एमएसपी की घोषणा को एक और जुमला बता रहे हैं.

किसान नेताओं का आरोप है कि लागत मूल्य को कमतर आंक कर सरकार ए2+एफएल फॉर्मूले के तहत लागत मूल्य निकाल रही है, जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में ही यह वायदा किया था कि उनकी सरकार सी2+50% एमएसपी देगी. मोदी सरकार के कृषि मंत्री लगातार यह दावा करते रहे हैं कि वो स्वामीनाथन आयोग की शिफारिश के अनुसार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दे रहे हैं लेकिन किसान संगठनों ने इन बातों को वास्तविकता से परे बताया है.

क्या है ए2, ए2+एफएल और सी2 फॉर्मूला?

निर्धारित फसलों की लागत निकालने के लिए कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने तीन वर्ग बनाए हैं. ए2 में किसानों द्वारा किए सभी वास्तिक खर्च जैसे बीज, खाद, सिंचाई लागत आदि आते हैं, वहीं ए2+एल में वास्तिविक लागत के साथ पारिवारिक श्रम को भी जोड़ा जाता है और सी2 में वास्तविक लागत और पारिवारिक श्रम के साथ-साथ खेत की जमीन का किराया और दूसरे ब्याज को भी शामिल किया जाता है.

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिती के राष्ट्रीय संयोजक सरदार वीएम सिंह ने बताया कि साल 2019-20 के लागत मूल्य अनुमान को देख तो कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) के अनुसार ज्वार का लागत मूल्य 2,324 रुपए प्रति क्विंटल था लेकिन सरकार ने इसका लागत मूल्य मात्र 1,746 रुपए प्रति क्विंटल माना है. सी2+50% के हिसाब से ज्वार का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3,486 रुपए प्रति क्विंटल होना चाहिए था लेकिन सरकार ने 2,620 रुपए प्रति क्विंटल एमएसपी तय किया है. यह एमएसपी स्वामीनाथन आयोग के सी2+50% के फॉर्मूले से 886 रुपए प्रति क्विंटल कम है. इससे यह साफ होता है कि सरकार द्वारा लागत मूल्य से 50-83% ज्यादा देने का दावा महज जुमला है. इसी तरह से सभी 14 फसलों के लागत मूल्य को सीएसीपी द्वारा दिए गए सी2 लागत मूल्य और ए2+एफएल लागत मूल्य के बीच तुलना करें तो दोनों में बड़े अंतर सामने आते हैं.

ये भी पढ़ें: भारत लाया जा रहा है भगोड़ा कारोबारी विजय माल्या

अरहर दाल का लागत मूल्य सीएसीपी के सी2 लागत मूल्य आंकलन के मुताबिक 5,417 रुपए प्रति क्विंटल आता है. वहीं ए2+एफएल के मुताबिक लागत 3,796 रुपए प्रति क्विंटल है. सरकार ने खरीफ वर्ष 2020-21 के लिए अरहर की एमएसपी 6,000 रुपए प्रति क्विंटल तय की है, लेकिन स्वामीनाथन आयोग की शिफारिश के मुताबिक अगर सरकार सी2+50% या लागत का डेढ़ गुना देने की बात करती है तो एमएसपी 8,125.5 रुपए प्रति क्विंटल होनी चाहिए थी.

वीएम सिंह का कहना है कि इसके बावजूद भी अगर सरकार अपने द्वारा घोषित कीमत पर ही किसानों से पूरी खरीद की गारंटी दे तो भी किसान खुश हो जाएंगे, लेकिन गौरतलब है कि घोषित एमएसपी पर भी सरकार किसान से खरीद नहीं कर पा रही है और उन्हें मजबूरन मंडियों में कम कीमत पर फसल को बेचना पड़ रहा है.

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार बस 50% और 83 % जैसे आंकड़ों को दिखा कर किसानों को रिझाने के प्रयास कर रही है. धान का ही उदाहरण ले लें तो इस पर 53 पैसा प्रति किलो बढ़ाया गया है. वास्तविकता में उन्होंने किसानों से किया अपना वादा कभी नहीं निभाया है. किसान नेता राकेश टिकैत ने सरकार को चुनौती देते हुए सरकार को अपने द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही खरीद करने की गारंटी दे कर दिखाने को कहा है.

किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि एमएसपी का वादा तो सीएसीपी के द्वारा बताए गए सम्पूर्ण लागत (सी2) पर 50% देने का था लेकिन सरकार ए2+एफएल पर 50% या उससे ज्यादा दे कर अपनी पीठ थपथपा रही है. कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के मुताबिक धान का लागत मूल्य (सी2) 2019-20 में 1,619 रुपए प्रति क्विंटल था लेकिन 2020-21 की लागत (ए2+एफएल) 1,245 तय की गई है. सी2+50% के मुताबिक एमएसपी 2,428.5 होनी चाहिए थी, लेकिन सरकार ने धान की एमएसपी 2020-21 खरीफ वर्ष के लिए महज 1,868 रुपए प्रति क्विंटल तय की है. यह सरकार के द्वारा किए गए वादे से 560 रुपए कम है.

उन्हेंने कहा कि कोरोना महामारी ने पहले ही किसानों की कमर तोड़ दी है अब सरकार को दोबारा एमएसपी घोषित करनी चाहिए. इतना ही नहीं, लॉकडाउन की वजह से किसानों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकार को रबी की फसलों पर भी 250 से 500 रुपए प्रति क्विंटल का अतिरिक्त बोनस देना चाहिए नहीं तो किसान सरकार का विरोध करने को मजबूर होंगे.

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राष्ट्रीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहार ने कहा कि किसान महासंघ इसके लिए सुप्रीम कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहा है. सरकार लगातार यह दावा कर रही है कि वो लागत मूल्य की देढ़ गुणा कीमत किसानों को दे रही है लेकिन यह सच नहीं है.

सीपीआईएम की किसान इकाई अखिल भारतीय किसान सभा ने सीएसीपी द्वारा 2019-20 के लिए सभी फसलों की सम्पूर्ण लागत (सी2), इस वर्ष के ए2+एफएल, सरकार द्वारा घोषित एमएसपी और सी2+50% के मुताबिक वास्तविक मूल्य और तय एमएसपी के बीच का अंतर आंकड़ों के साथ जारी किया है. ऑल इंडिया किसान सभा ने देश भर के किसानों से इसके खिलाफ एकजुट हो कर विरोध करने का आव्हान भी किया है.

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