रांची : योगिनी एकादशी को बेहद खास एकादशी माना जाता है, क्योंकि आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाले योगिनी एकादशी के कई विशेष महत्व हैं. योगिनी एकादशी को लेकर रांची के ज्योतिषाचार्य स्वामी दिव्यानंद महाराज बताते हैं कि हर माह दो एकादशी होता है और साल में 24 एकादशी का पर्व मनाया जाता है, लेकिन आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाले एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं.
इस मंत्र का करें जप
मान्यता है कि योगिनी एकादशी के लिए भक्त 'ॐ नमो: भगवते वासुदेवाए' मंत्र का जाप कर सकते हैं, जिससे भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं. योगिनी एकादशी मनाने के विधि को लेकर स्वामी दिव्यानंद महाराज बताते हैं की धूप, दीप, अगरबत्ती, प्रसाद को ब्रह्म मुहूर्त में सच्ची भावना के साथ यदि भगवान विष्णु को चढ़ाया जाए तो भक्तों की हर मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है.
जानें क्या है कथा
स्वामी दिव्यानंद महाराज ने बताया कि इस एकादशी को मनाने के पीछे एक कथा है, जिसके बारे में कहा जाता है कि स्वर्ग लोक के मानसरोवर में राजा कुबेर ने अपने हेम नाम के माली को फूल लाने के लिए भेजा, लेकिन हेम माली अपनी पत्नी विशालाक्षी के प्रेम में घंटों तक उसके साथ ही समय बिताते रह गया, जिस वजह से राजा कुबेर को पूजा करने के लिए समय पर फूल नहीं मिल पाया और उन्हें पूजा करने में विलंब हो गया.
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क्रोधित होकर राजा कुबेर ने हेम माली को शापित किया कि वह अपनी पत्नी से हमेशा के लिए दूर चला जाएगा. जिसके बाद हेम माली स्वर्ग लोक के मानसरोवर को छोड़कर भूमि लोक पर पहुंच गया और वह कुष्ठ बीमारी से ग्रसित हो गया. तब जाकर धरती पर ऋषि मार्कंडेय ने शापित हेम माली को योगिनी एकादशी का व्रत करने को कहा. जिससे हेम माली शाप मुक्त हुआ और वह फिर से अपनी पत्नी विशालाक्षी के पास स्वर्ग लोक के मानसरोवर जा सका.
भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की मिलती है कृपा
स्वामी दिव्यानंद महाराज ने बताया कि योगिनी एकादशी व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. इस व्रत को हिंदू धर्म से जुड़े लोगों को अवश्य करना चाहिए, जिससे भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
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