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जानिए क्यों मनाया जाता है विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस?

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Published : Sep 10, 2021, 5:29 PM IST

हर साल 10 सितंबर को इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (International Association for Suicide Prevention) विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Suicide Prevention Day) का आयोजन करती है. इसका उद्देश्य विश्व में तेजी से बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति पर रोक लगाना है.

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस
विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस

हैदराबाद : विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस हर साल 10 सितंबर को मनाया जाता है. हर साल 10 सितंबर को इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (International Association for Suicide Prevention) विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Suicide Prevention Day) का आयोजन करती है.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (World Health Organization) भी इसमें भागीदार है. विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Suicide Prevention Day) मनाने के पीछे का उद्देश्य विश्व में तेजी से बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति पर रोक लगाना है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के अनुसार हर 40 सेकेंड में कोई न कोई आत्महत्या करता है. दुनिया भर में हर साल लगभग 8 लाख लोग अलग-अलग कारणों के चलते मौत को गले लगा लेते हैं. हालांकि कुछ अनुमानों ने यह संख्या एक मिलियन के करीब है.रिपोर्ट के मुताबिक15 से 29 वर्ष की आयु के लोग सबसे अधिक आत्महत्या करते हैं.

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस का इतिहास

इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) ने 2003 में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की शुरुआत की. यह दिन वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ एंड वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (World Federation for Mental Health and World Health Organization) द्वारा सह-प्रायोजित है.

इस दिन का उद्देश्य आत्महत्या के व्यवहार पर शोध और डेटा एकत्र करना है. इसके अलावा इसका मकसद आत्महत्या के विभिन्न कारणों का निर्धारण करना और इसके संकेतों पर किसी का ध्यान नहीं जाना और आत्महत्या की रोकथाम के लिए ध्वनि प्रथाओं और नीतियों का विकास करना है.

डब्ल्यूएचओ के 1999 से वैश्विक आत्महत्या रोकथाम (suicide prevention campaign) अभियान का उल्लेख 2003 में पहले विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर किया गया था.

कोविड -19 और मानसिक स्वास्थ्य पर संयुक्त राष्ट्र संगठन (United Nations Organisation) की नीति रिपोर्ट कहती है कि हालांकि अधिकांश देश अपने स्वास्थ्य बजट का केवल 2 प्रतिशत ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं, भारत में स्थिति बदतर है.

चीन सहित कई देश पिछले कुछ वर्षों में आत्महत्या रोकथाम नीति लागू करने के बाद आत्महत्या के प्रयास की दर को काफी कम करने में सक्षम हुए हैं. भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान अभी भी अपर्याप्त है.

स्वास्थ्य कार्यकर्ता अभी भी तीन साल पहले 2017 में पेश किए गए मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए दबाव डाल रहे हैं, जो सभी को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने और आत्महत्या रोकथाम नीति पेश करने का वादा करता है.

आत्महत्या रोकथाम

WHO का लाइव लाइफ दृष्टिकोण (LIVE LIFE approach ) प्रमुख हस्तक्षेपों की सिफारिश करता है, जो प्रभावी साबित हुए हैं.

इनमें आत्महत्या के साधनों तक पहुंच सीमित करने, किशोरों में सामाजिक-भावनात्मक जीवन कौशल को बढ़ावा देना, आत्महत्या के व्यवहार से प्रभावित किसी भी व्यक्ति की शीघ्र पहचान, आकलन, प्रबंधन और अनुवर्ती कार्रवाई करना शामिल हैं,

भारत में आत्महत्या का आंकड़ा

नवीनतम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau) के आंकड़ों के अनुसार भारत ने 2019 में प्रतिदिन आत्महत्या से औसतन 381 मौतें दर्ज कीं. इस तरह भारत में साल भर कुल 1,39,123 मौतें आत्महत्या के कारण हुईं.

आंकड़ों के मुताबिक यह आंकड़ा 2018 में 1,34,516 और 2017 1,29,887 था. आंकड़ों के अनुसार आत्महत्या की दर 2019 में 2018 की तुलना में 0.2 प्रतिशत बढ़ी है.

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2019 में पूरे भारत में आत्महत्या दर (10.4 फीसदी) की तुलना में शहरों में आत्महत्या दर (13.9 फीसदी) थी.

पढ़ें - जानें 25 मई काे ही क्याें मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय गुमशुदा बाल दिवस

रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या करने वाले लोगों में से 53.6 प्रतिशत ने फांसी, 25.8 प्रतिशत ने जहर का सेवन 5.2 प्रतिशतने डूबकर और 3.8 प्रतिशत ने आत्मदाह द्वारा आत्महत्या की.

2019 के दौरान देश में हुई कुल आत्महत्याओं में से 32.4 फीसदी आत्महत्याओं के पीछे पारिवारिक समस्याएं (विवाह संबंधी मुद्दों के अलावा) थीं, शादी से जुड़ी समस्याएं (5.5 फीसदी) और बीमारी (17.1 फीसदी) मुख्य कारण रहा. देश में कुल इन कारणों से 55 फीसदी लोगों ने जान दी.

पुलिस द्वारा दर्ज किए गए मामलों के अनुसार आत्महत्या करने वालों में 70.2 पुरुष और 29.8 महिलाएं थीं.आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग 68.4 प्रतिशत पुरुष पीड़ित विवाहित थे, जबकि महिला पीड़ितों के लिए यह अनुपात 62.5 प्रतिशत था. सबसे अधिक आत्महत्याएं महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में में हुईं.

आंकड़ों से पता चलता है कि इन पांच राज्यों का देश में दर्ज की गई कुल आत्महत्याओं का 49.5 प्रतिशत हिस्सा था और शेष 24 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में 50.5 प्रतिशत आत्महत्या की सूचना दी गई थी.

हैदराबाद : विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस हर साल 10 सितंबर को मनाया जाता है. हर साल 10 सितंबर को इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (International Association for Suicide Prevention) विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Suicide Prevention Day) का आयोजन करती है.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (World Health Organization) भी इसमें भागीदार है. विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (World Suicide Prevention Day) मनाने के पीछे का उद्देश्य विश्व में तेजी से बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति पर रोक लगाना है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के अनुसार हर 40 सेकेंड में कोई न कोई आत्महत्या करता है. दुनिया भर में हर साल लगभग 8 लाख लोग अलग-अलग कारणों के चलते मौत को गले लगा लेते हैं. हालांकि कुछ अनुमानों ने यह संख्या एक मिलियन के करीब है.रिपोर्ट के मुताबिक15 से 29 वर्ष की आयु के लोग सबसे अधिक आत्महत्या करते हैं.

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस का इतिहास

इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर सुसाइड प्रिवेंशन (IASP) ने 2003 में विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस की शुरुआत की. यह दिन वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ एंड वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (World Federation for Mental Health and World Health Organization) द्वारा सह-प्रायोजित है.

इस दिन का उद्देश्य आत्महत्या के व्यवहार पर शोध और डेटा एकत्र करना है. इसके अलावा इसका मकसद आत्महत्या के विभिन्न कारणों का निर्धारण करना और इसके संकेतों पर किसी का ध्यान नहीं जाना और आत्महत्या की रोकथाम के लिए ध्वनि प्रथाओं और नीतियों का विकास करना है.

डब्ल्यूएचओ के 1999 से वैश्विक आत्महत्या रोकथाम (suicide prevention campaign) अभियान का उल्लेख 2003 में पहले विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर किया गया था.

कोविड -19 और मानसिक स्वास्थ्य पर संयुक्त राष्ट्र संगठन (United Nations Organisation) की नीति रिपोर्ट कहती है कि हालांकि अधिकांश देश अपने स्वास्थ्य बजट का केवल 2 प्रतिशत ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं, भारत में स्थिति बदतर है.

चीन सहित कई देश पिछले कुछ वर्षों में आत्महत्या रोकथाम नीति लागू करने के बाद आत्महत्या के प्रयास की दर को काफी कम करने में सक्षम हुए हैं. भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान अभी भी अपर्याप्त है.

स्वास्थ्य कार्यकर्ता अभी भी तीन साल पहले 2017 में पेश किए गए मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए दबाव डाल रहे हैं, जो सभी को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने और आत्महत्या रोकथाम नीति पेश करने का वादा करता है.

आत्महत्या रोकथाम

WHO का लाइव लाइफ दृष्टिकोण (LIVE LIFE approach ) प्रमुख हस्तक्षेपों की सिफारिश करता है, जो प्रभावी साबित हुए हैं.

इनमें आत्महत्या के साधनों तक पहुंच सीमित करने, किशोरों में सामाजिक-भावनात्मक जीवन कौशल को बढ़ावा देना, आत्महत्या के व्यवहार से प्रभावित किसी भी व्यक्ति की शीघ्र पहचान, आकलन, प्रबंधन और अनुवर्ती कार्रवाई करना शामिल हैं,

भारत में आत्महत्या का आंकड़ा

नवीनतम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau) के आंकड़ों के अनुसार भारत ने 2019 में प्रतिदिन आत्महत्या से औसतन 381 मौतें दर्ज कीं. इस तरह भारत में साल भर कुल 1,39,123 मौतें आत्महत्या के कारण हुईं.

आंकड़ों के मुताबिक यह आंकड़ा 2018 में 1,34,516 और 2017 1,29,887 था. आंकड़ों के अनुसार आत्महत्या की दर 2019 में 2018 की तुलना में 0.2 प्रतिशत बढ़ी है.

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2019 में पूरे भारत में आत्महत्या दर (10.4 फीसदी) की तुलना में शहरों में आत्महत्या दर (13.9 फीसदी) थी.

पढ़ें - जानें 25 मई काे ही क्याें मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय गुमशुदा बाल दिवस

रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या करने वाले लोगों में से 53.6 प्रतिशत ने फांसी, 25.8 प्रतिशत ने जहर का सेवन 5.2 प्रतिशतने डूबकर और 3.8 प्रतिशत ने आत्मदाह द्वारा आत्महत्या की.

2019 के दौरान देश में हुई कुल आत्महत्याओं में से 32.4 फीसदी आत्महत्याओं के पीछे पारिवारिक समस्याएं (विवाह संबंधी मुद्दों के अलावा) थीं, शादी से जुड़ी समस्याएं (5.5 फीसदी) और बीमारी (17.1 फीसदी) मुख्य कारण रहा. देश में कुल इन कारणों से 55 फीसदी लोगों ने जान दी.

पुलिस द्वारा दर्ज किए गए मामलों के अनुसार आत्महत्या करने वालों में 70.2 पुरुष और 29.8 महिलाएं थीं.आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग 68.4 प्रतिशत पुरुष पीड़ित विवाहित थे, जबकि महिला पीड़ितों के लिए यह अनुपात 62.5 प्रतिशत था. सबसे अधिक आत्महत्याएं महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में में हुईं.

आंकड़ों से पता चलता है कि इन पांच राज्यों का देश में दर्ज की गई कुल आत्महत्याओं का 49.5 प्रतिशत हिस्सा था और शेष 24 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में 50.5 प्रतिशत आत्महत्या की सूचना दी गई थी.

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