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तैरने वाले पत्थरों से बना है रामप्पा मंदिर, 800 साल बाद भी कम नहीं हुई सुंदरता

तेलंगाना का रामप्पा मंदिर दुनिया का ऐसा मंदिर है, जिसका नामकरण उसके शिल्पकार पर रखा गया है. इसमें तैरते हुए पत्थर का इस्तेमाल किया गया है. आज की तारीख में ऐसे पत्थर नहीं मिलते हैं. ऐसी ही कई खासियतें लिए है यह मंदिर. 800 साल हो गए हैं, लेकिन मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है. मंदिर की पूरी विशेषता जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर.

रामप्पा मंदिर
रामप्पा मंदिर
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Published : Jul 27, 2021, 3:58 PM IST

Updated : Jul 27, 2021, 7:08 PM IST

हैदराबाद : तेलंगाना के मुलुगु जिले में स्थित रामप्पा मंदिर (Ramappa Temple) को यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) की सूची में जगह मिली है. हालांकि, तेलंगाना में कई ऐतिहासिक इमारतें व किले हैं, मगर रामप्पा मंदिर को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिलना बड़ी उपलब्धि है.

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रामप्पा मंदिर

यह दर्जा हासिल करना कोई आसान रास्ता था. इस मंदिर की विशेषता को पूरी दुनिया के सामने लाने के लिए, राज्य और केंद्र सरकार ने कई प्रयास किए और अलग रणनीतियां अपनाईं, तब जाकर यह संभव हो सका. रामप्पा मंदिर को इसकी विशेष संरचना, वास्तुकला और विशेष सामग्री से निर्माण के लिए विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई, जो कई दशकों से समय की कसौटी पर खरी उतरी है.

मंदिर की मुख्य संरचना के आसपास कई निर्माण और अतिक्रमण न होने जैसे समेकित भौगोलिक लाभों ने भी यह दर्जा प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

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रामप्पा मंदिर

इससे पहले गोलकुंडा किला, चारमीनार और कुतुब शाही मकबरों को यूनेस्को की मान्यता के लिए प्रयास किए गए हैं. राज्य सरकार द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पास प्रस्ताव भी भेजे गए. हालांकि, इसमें अभी तक सफलता नहीं मिली है.

यूनेस्को के नियमों के अनुसार विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त करने के लिए उस भवन के 100 मीटर के दायरे में कोई अन्य संरचना नहीं होनी चाहिए. संरचना के चारों ओर 200 मीटर के दायरे को संरक्षित क्षेत्र माना जाना चाहिए. साथ ही संरचना यूनिक होनी चाहिए, दुनिया में किसी अन्य इमारत से मेल न खाती हो.

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रामप्पा मंदिर

इन विनियमों और अन्य मुद्दों का पालन न करने के कारण इन संरचनाओं का अब तक विश्व धरोहर स्थल का दर्जा नहीं मिल सका है. हजार स्तंभों वाले रामप्पा मंदिर और वारंगल किले को शुरू में यूनेस्को के नियमों का पालन न करने के लिए अलग रखा गया था. हालांकि, रामप्पा मंदिर को अब यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दे दिया गया है.

रामप्पा मंदिर का इतिहास

आंंध्र प्रदेश के काकतिया वंश के महाराजा गणपति देव ने 13वीं सदी में रामप्पा मंदिर का निर्माण कराया था. उन्होंने अपने शिल्पकार रामप्पा से ऐसा मंदिर बनाने को कहा, जो वर्षों तक टिका रहे. माना जाता है कि मंदिर का निर्माण सन 1213 में शुरू हुआ था और लगभग 40 साल में निर्माण कार्य पूरा हुआ था. रामप्पा ने अपने शिल्प कौशल से ऐसा मंदिर तैयार किया, जो दिखने में बहुत ही खूबसूरत था. जिससे खुश होकर राजा ने मंदिर का नाम उसी शिल्पी के ही नाम पर रख दिया. यही खूबसूरती आज इसे यूनेस्को की धरोहर में शामिल करवा दिया.

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रामप्पा मंदिर

काकतिय राजा गणपति देव के एक सेनापति रेचारला रुद्र थे. उनकी देखरेख में पूरा निर्माण कार्य हुआ.

रामप्पा मंदिर में भगवान शिव विराजमान हैं, इसलिए इसे रामलिंगेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यह भगवान शिव को समर्पित मंदिर है और मंदिर के अधिष्ठाता देवता रामलिंगेश्वर स्वामी हैं.

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रामप्पा मंदिर की चित्रकारी

रामप्पा मंदिर की विशेषताएं

13वीं सदी में बना भगवान शिव का यह मंदिर भारतीय शिल्पकला का बेजोड़ नमूना है. अपनी विशेष संरचना और विशेष निर्माण सामग्री के कारण रामप्पा मंदिर 800 वर्ष बाद भी अपने इतिहास की गवाही पेश कर रहा है.

तैरने वाले पत्थरों से बना है मंदिर

इस प्राचीन मंदिर की प्रमुख विशेषता यह है कि इसका निर्माण बलुआ पत्थरों से किया गया है. पुरातत्व वैज्ञानिकों की मानें तो रामप्पा मंदिर में लगे पत्थर काफी हल्के हैं, जो पानी में भी तैर सकते हैं.

दरअसल, पुरातत्व वैज्ञानिकों की टीम मंदिर की मजबूती का रहस्य पता लगाने के लिए शोध कर रही थी. जब उन्होंने मंदिर के पत्थर के एक टुकड़े को काटा तो पाया कि पत्थर वजन में बहुत हल्का है, उन्होंने पत्थर के टुकड़े को पानी में डाला तो पानी में तैरने लगा.

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रामप्पा मंदिर

पुरातत्व वैज्ञानिकों के मुताबिक रामप्पा मंदिर के पत्थरों का वजन बहुत कम है, इसलिए यह मंदिर आज भी शान से खड़ा है. वैज्ञानिक इसकी खोज कर रहे हैं कि आखिर रामप्पा ने ये पत्थर कहां से लाए थे.

बलुआ पत्थर और 6 फीट ऊंचे एक प्लेटफॉर्म (सैंडबॉक्स नींव) पर निर्मित इस मंदिर को ग्रेनाइट से बने बीम और स्तंभों को सजाया है. मंदिर की अनूठी विशेषता इसकी मीनार या विमान (क्षैतिज टॉवर- हॉरिजॉन्टल स्टेप्ड टॉवर) है, जो एक पिरामिड के आकार में है.

मंदिर का स्तंभ
मंदिर का स्तंभ

विमान (Vimana) का निर्माण सुराखदार ईंटों का उपयोग करके किया गया है, जो वजन में हल्के होते हैं. काकतीय शासकों की विशेषताओं में से एक, इन ईंटों को तैरती ईंट के रूप में जाना जाता है.

रामप्पा मंदिर
रामप्पा मंदिर

जीवित लगती हैं मूर्तियां

रामप्पा मंदिर में बनी मूर्तियां अद्भुत हैं जो विशेष रूप से कठोर डॉलराइट पत्थर (dolerite stone) से उकेरी गई हैं. देखने में ऐसा लगता है कि ये जीवित हैं और अभी चलने लगेंगी.

रामप्पा मंदिर में बनी मूर्ति
रामप्पा मंदिर में बनी मूर्ति

तारे के आकार कारण यह मंदिर त्रिकुटल्यम के नाम से भी प्रसिद्ध है. मंदिर में एक साथ भगवान शिव, विष्णु और सूर्य देवता विराजमान हैं. ब्रह्मा, विष्णु और महेश की एक साथ पूजा की परंपरा नहीं है, लेकिन इस मंदिर में ब्रह्मा की जगह सूर्य देव को आराध्य के रूप में स्थापित किया गया है.

हैदराबाद : तेलंगाना के मुलुगु जिले में स्थित रामप्पा मंदिर (Ramappa Temple) को यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) की सूची में जगह मिली है. हालांकि, तेलंगाना में कई ऐतिहासिक इमारतें व किले हैं, मगर रामप्पा मंदिर को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिलना बड़ी उपलब्धि है.

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रामप्पा मंदिर

यह दर्जा हासिल करना कोई आसान रास्ता था. इस मंदिर की विशेषता को पूरी दुनिया के सामने लाने के लिए, राज्य और केंद्र सरकार ने कई प्रयास किए और अलग रणनीतियां अपनाईं, तब जाकर यह संभव हो सका. रामप्पा मंदिर को इसकी विशेष संरचना, वास्तुकला और विशेष सामग्री से निर्माण के लिए विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई, जो कई दशकों से समय की कसौटी पर खरी उतरी है.

मंदिर की मुख्य संरचना के आसपास कई निर्माण और अतिक्रमण न होने जैसे समेकित भौगोलिक लाभों ने भी यह दर्जा प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

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रामप्पा मंदिर

इससे पहले गोलकुंडा किला, चारमीनार और कुतुब शाही मकबरों को यूनेस्को की मान्यता के लिए प्रयास किए गए हैं. राज्य सरकार द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पास प्रस्ताव भी भेजे गए. हालांकि, इसमें अभी तक सफलता नहीं मिली है.

यूनेस्को के नियमों के अनुसार विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त करने के लिए उस भवन के 100 मीटर के दायरे में कोई अन्य संरचना नहीं होनी चाहिए. संरचना के चारों ओर 200 मीटर के दायरे को संरक्षित क्षेत्र माना जाना चाहिए. साथ ही संरचना यूनिक होनी चाहिए, दुनिया में किसी अन्य इमारत से मेल न खाती हो.

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रामप्पा मंदिर

इन विनियमों और अन्य मुद्दों का पालन न करने के कारण इन संरचनाओं का अब तक विश्व धरोहर स्थल का दर्जा नहीं मिल सका है. हजार स्तंभों वाले रामप्पा मंदिर और वारंगल किले को शुरू में यूनेस्को के नियमों का पालन न करने के लिए अलग रखा गया था. हालांकि, रामप्पा मंदिर को अब यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दे दिया गया है.

रामप्पा मंदिर का इतिहास

आंंध्र प्रदेश के काकतिया वंश के महाराजा गणपति देव ने 13वीं सदी में रामप्पा मंदिर का निर्माण कराया था. उन्होंने अपने शिल्पकार रामप्पा से ऐसा मंदिर बनाने को कहा, जो वर्षों तक टिका रहे. माना जाता है कि मंदिर का निर्माण सन 1213 में शुरू हुआ था और लगभग 40 साल में निर्माण कार्य पूरा हुआ था. रामप्पा ने अपने शिल्प कौशल से ऐसा मंदिर तैयार किया, जो दिखने में बहुत ही खूबसूरत था. जिससे खुश होकर राजा ने मंदिर का नाम उसी शिल्पी के ही नाम पर रख दिया. यही खूबसूरती आज इसे यूनेस्को की धरोहर में शामिल करवा दिया.

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रामप्पा मंदिर

काकतिय राजा गणपति देव के एक सेनापति रेचारला रुद्र थे. उनकी देखरेख में पूरा निर्माण कार्य हुआ.

रामप्पा मंदिर में भगवान शिव विराजमान हैं, इसलिए इसे रामलिंगेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यह भगवान शिव को समर्पित मंदिर है और मंदिर के अधिष्ठाता देवता रामलिंगेश्वर स्वामी हैं.

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रामप्पा मंदिर की चित्रकारी

रामप्पा मंदिर की विशेषताएं

13वीं सदी में बना भगवान शिव का यह मंदिर भारतीय शिल्पकला का बेजोड़ नमूना है. अपनी विशेष संरचना और विशेष निर्माण सामग्री के कारण रामप्पा मंदिर 800 वर्ष बाद भी अपने इतिहास की गवाही पेश कर रहा है.

तैरने वाले पत्थरों से बना है मंदिर

इस प्राचीन मंदिर की प्रमुख विशेषता यह है कि इसका निर्माण बलुआ पत्थरों से किया गया है. पुरातत्व वैज्ञानिकों की मानें तो रामप्पा मंदिर में लगे पत्थर काफी हल्के हैं, जो पानी में भी तैर सकते हैं.

दरअसल, पुरातत्व वैज्ञानिकों की टीम मंदिर की मजबूती का रहस्य पता लगाने के लिए शोध कर रही थी. जब उन्होंने मंदिर के पत्थर के एक टुकड़े को काटा तो पाया कि पत्थर वजन में बहुत हल्का है, उन्होंने पत्थर के टुकड़े को पानी में डाला तो पानी में तैरने लगा.

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रामप्पा मंदिर

पुरातत्व वैज्ञानिकों के मुताबिक रामप्पा मंदिर के पत्थरों का वजन बहुत कम है, इसलिए यह मंदिर आज भी शान से खड़ा है. वैज्ञानिक इसकी खोज कर रहे हैं कि आखिर रामप्पा ने ये पत्थर कहां से लाए थे.

बलुआ पत्थर और 6 फीट ऊंचे एक प्लेटफॉर्म (सैंडबॉक्स नींव) पर निर्मित इस मंदिर को ग्रेनाइट से बने बीम और स्तंभों को सजाया है. मंदिर की अनूठी विशेषता इसकी मीनार या विमान (क्षैतिज टॉवर- हॉरिजॉन्टल स्टेप्ड टॉवर) है, जो एक पिरामिड के आकार में है.

मंदिर का स्तंभ
मंदिर का स्तंभ

विमान (Vimana) का निर्माण सुराखदार ईंटों का उपयोग करके किया गया है, जो वजन में हल्के होते हैं. काकतीय शासकों की विशेषताओं में से एक, इन ईंटों को तैरती ईंट के रूप में जाना जाता है.

रामप्पा मंदिर
रामप्पा मंदिर

जीवित लगती हैं मूर्तियां

रामप्पा मंदिर में बनी मूर्तियां अद्भुत हैं जो विशेष रूप से कठोर डॉलराइट पत्थर (dolerite stone) से उकेरी गई हैं. देखने में ऐसा लगता है कि ये जीवित हैं और अभी चलने लगेंगी.

रामप्पा मंदिर में बनी मूर्ति
रामप्पा मंदिर में बनी मूर्ति

तारे के आकार कारण यह मंदिर त्रिकुटल्यम के नाम से भी प्रसिद्ध है. मंदिर में एक साथ भगवान शिव, विष्णु और सूर्य देवता विराजमान हैं. ब्रह्मा, विष्णु और महेश की एक साथ पूजा की परंपरा नहीं है, लेकिन इस मंदिर में ब्रह्मा की जगह सूर्य देव को आराध्य के रूप में स्थापित किया गया है.

Last Updated : Jul 27, 2021, 7:08 PM IST
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