कोटा. जिले में रिवरफ्रंट को अद्भुत बनाया जा रहा है. यहां विश्व की सबसे बड़ी घंटी भी स्थापित की जाएगी. बेल टावर पर स्थापित होने के बाद यह घंटी दुनिया की एकमात्र व सबसे बड़ी सिंगल पीस कास्टिंग होगी. यहां एक घंटाघर का निर्माण भी यहां किया जा रहा है. यहां स्थापित होने वाली घंटी तीन गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाएगी (Kota bell to be in Guinness Records).
यह दुनिया की सबसे भारी सिंगल पीस कास्टिंग वाली नॉन फेरस घंटी होगी, यानि की इसमें कोई ज्वाइंट नहीं होगा. दूसरा रिकॉर्ड विश्व की सबसे बड़ी घंटी व तीसरा रिकॉर्ड विश्व की पहली पहली ज्वाइंट लेस चैन इसमें लगाई जाएगी. यह घंटी करीब 57 हजार किलो की है (Kota Biggest Bell Weight). चेन का वजन करीब 100 किलो के आसपास है. इसकी लागत करीब 12 से 15 करोड़ के बीच में आएगी.
विश्व की सबसे बड़ी घंटी अभी चीन और उसके बाद मॉस्को में है. मास्को में पांच पीस में लगी थी. जिसे स्थापित नहीं कर पाए हैं. चीन में स्थापित घंटी पांच पीस की थी. इसको स्थापित करते समय एक हिस्सा निकल गया था. दोनों घंटियों को अभी तक भी लटकाया नहीं जा सका है. कोटा की घंटी 8.5 गुना 9.25 मीटर की है. वह इन दोनों से भी बड़ी होगी. इसे बजाकर लोग आनंद ले सकेंगे. इस घंटी को बनाने में महज 45 मिनट का समय लगेगा. जबकि उसकी तैयारी 6 महीने तक चलेगी.
विश्व की सबसे बड़ी घंटी को तैयार कर रहे इंजीनियर
देवेंद्र कुमार आर्य का कहना है कि देसी तरीका अपनाकर विश्व की सबसे बड़ी बेल बनाई जाएगी. जिसमें मेटल को गर्म करके लिक्विड किया जाएगा और उसके बाद में उसे फ्रीज करवा कर एक घंटी का शेप दिया जाएगा. इसके लिए फैक्ट्री स्थापित कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इसका 15 दिन में पूरा शेड स्थापित कर देंगे. करीब 1 महीने के अंदर इसका प्रतिरूप तैयार हो जाएगा. प्रतिरूप भी हम फाइबर का तैयार कर रहे हैं, जो की पूरी तरह से मॉडल होगा. इसके लिए ग्रीन सिलिका सैंड मंगाई गई है.
देवेंद्र कुमार आर्य का कहना है कि इसके भीतर ही इस मॉडल को स्थापित कर देंगे. इसमें मोलासेस, प्लास्टिक और कई दूसरे केमिकल मिलाए जाएंगे. इसको ऑक्सीजन की मदद से ड्राई करके फाइनल कन्वर्ट किया जाएगा. फाइनल कन्वर्ट होने के बाद उस पर सिरामोल की पेंटिंग की जाएगी, ताकि वह हार्ड में कन्वर्ट हो जाए. करीब 45 सीढ़ियों की मदद से 2 घंटे के अंदर इस पूरे मेटल को लिक्विड किया जाएगा. इसके लिए बड़ी 45 सीढ़ियां तैयार की जा रही है. मेटल लिक्विड को ही इस शेप में डालकर घंटी का आकार दिया जाएगा. 45 मिनट से ज्यादा समय होने पर यह लिक्विड मेटल फ्रीज हो सकता है. साथ ही उसमें जॉइंट आने की संभावना भी बनी रहती है. यह पूरा प्रोसेस अंतिम दिन ढाई से तीन घंटे में ही पूरा करना है.
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रात के समय 8 किमी तक सुनाई देगी आवाज
इंजीनियरों ने दावा किया है कि विश्व की सबसे बड़ी घंटी की आवाज करीब 8 किलोमीटर तक सुनाई देगी. यह जमीनी सतह से 70 फीट ऊंचाई पर लटकाई जाएगी. इंजीनियरों ने यह भी दावा किया है कि इसका केमिकल कंपोजिशन इस तरह से तैयार किया जा रहा है कि इसका रंग अपने आप में बेमिसाल रहेगा. साथ ही यह गोल्डन लुक में नजर आएगी. इस घंटी का रंग 15 सालों तक ऐसा ही बना रहेगा. हर 15 सालों बाद इसको पॉलिश करवाने से चमक वापस आ जाएगी. इस घंटी की उम्र करीब 5000 साल है.
अस्थाई फैक्ट्री स्थापित करके बनेगी घंटी
घंटी के निर्माण का कार्य भी चंबल रिवरफ्रंट पर अस्थाई फैक्ट्री स्थापित करके किया जाएगा. इंजीनियर का दावा है कि इस स्थिति के निर्माण में 225 ट्रक ग्रीन सेंड, 5 मिनट तक सोडियम सिलीकेट, 12 ट्रक ऑक्सीजन, तीन ट्रक एलपीजी और 20 हजार लीटर डीजल का उपयोग होगा. करीब 150 दिनों में यह प्रोजेक्ट बनकर तैयार होगा.
शुरुआती तौर पर 15 इंजीनियर और कार्मिक काम करेंगे. यह संख्या बाद में 500 के आसपास पहुंच जाएगी. घंटी को तैयार करवा रहे इंजीनियर देवेंद्र कुमार आर्य को स्टील मैन ऑफ इंडिया के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने इससे पहले अमरकंटक में भगवान महावीर की प्रतिमा स्थापित की है जो कि 25000 किलो की दुनिया की सबसे बड़ी सिंगल पीस नॉन फेरस कॉस्टिंग है. इस घंटी का मॉडल बनाने वाले भी विश्व विख्यात कलाकार हरिराम कुम्भावत हैं, जो राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हैं.