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ऐसा फैसला जो देशभर के मंदिरों के लिए बना मिसाल, देवभूमि उत्तराखंड में 'शक्ति' का सम्मान

Women priest in Yogeshwar Shri Krishna Temple Pithoragarh उत्तराखंड ने महिला सशक्तिकरण की एक ऐसी मिसाल पेश की है, जो समाज को महिलाओं के प्रति एक आईना दिखाने का काम करेगा. एक तरफ जहां आज भी देशभर के कई मंदिरों में महिलाओं को पूजा-पाठ नहीं करने दी जाती है तो वहीं उत्तराखंड में एक प्राचीन मंदिर में लोगों ने इन रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ते हुए महिलाओं को ही मंदिर की मुख्य पुजारी बनाया है और उन्हें ही मंदिर की देखरेख का जिम्मा सौंपा है. Women Chief Priest in Pithoragarh

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 1, 2023, 4:18 PM IST

Updated : Nov 1, 2023, 5:43 PM IST

पिथौरागढ़ (उत्तराखंड): आज भी देश के कई हिस्सों में पूजा पद्धति और मान्यताओं को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं. मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश से लेकर पूजा पाठ की परंपराओं में महिलाओं को दूर रखा जाता है. ऐसी ही कुछ परंपराएं लंबे समय से उत्तराखंड में कई मंदिरों में चलती आ रही हैं. इन मंदिरों में या तो महिलाओं का प्रवेश ही वर्जित था या फिर मंदिर में पुजारी बनने का अधिकार सिर्फ पुरुषों को ही था. गढ़वाल और कुमाऊं में कई ऐसी परंपराओं और रूढ़िवादी परंपराओं को महिलाएं तोड़कर अब आगे बढ़ रही हैं. ऐसा ही कुछ हुआ उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में. यहां मंदिर कमेटी ने बड़ा फैसला लेते हुए दो महिलाओं को मंदिर का मुख्य पुजारी बनाया है.

पेश की गई मिसाल: उत्तराखंड के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है. यहां के मंदिरों की मान्यता और पूजा पाठ की विधि भी बेहद प्रचलित है. मौजूदा समय में पिथौरागढ़ के योगेश्वर श्री कृष्ण मंदिर की चर्चा जोरों पर है. अब तक आपने देश भर के तमाम मंदिरों में देखा होगा कि वहां मुख्य पुजारी की भूमिका हमेशा से पुरुष निभाते आए हैं. लेकिन पिथौरागढ़ के योगेश्वर श्री कृष्ण मंदिर में महिला पुजारी बनाने को लेकर लंबे समय से आवाज उठ रही थी और महिलाएं भी मंदिर कमेटी से बार-बार यह आग्रह कर रही थीं. इसको लेकर मंथन चिंतन और धर्माचार्यों से बातचीत हुई. इसके बाद कमेटी ने जो फैसला लिया, वो देशभर के मंदिरों और महिलाओं के लिए एक मिसाल बन गया.
पढ़ें- इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश है वर्जित, सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपरा का आज भी हो रहा पालन

मंदिर कमेटी का बड़ा फैसला: मंदिर कमेटी ने फैसला लेते हुए दो महिला पुजारियों को मंदिर में नियुक्त किया है. खास बात यह है कि अब इस मंदिर में मुख्य पुजारी और सहायक पुजारी भी केवल महिला ही होंगी. पिथौरागढ़ की ही रहने वाली मंजुला अवस्थी को मुख्य पुजारी बनाया गया है, जबकि सुमन बिष्ट को सहायक पुजारी का दायित्व सौंपा गया है.

देश का पहला मंदिर: उत्तराखंड में ऐसा पहली बार है, जब किसी मंदिर की मुख्य पुजारी महिला को बनाया गया है. मंदिर कमेटी के अध्यक्ष आचार्य पीतांबर बताते हैं कि उत्तराखंड में कई मंदिरों में आज भी महिलाओं को लेकर रूढ़िवादी परंपराएं प्रचलित हैं और हम यह चाहते हैं कि इन परंपराओं को खत्म करके महिलाओं को आगे किया जाए.

इस वजह से लिया है फैसला: पीतांबर अवस्थी की मानें तो कमेटी ने जो फैसला लिया है, वह महिला सशक्तिकरण के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा. महिलाएं अपने परिवार और समाज के लिए जितना कार्य और त्याग करती हैं, उतना शायद ही पुरुष करता हो. महिलाएं घर में पूजा-पाठ से लेकर व्रत आदि जितना करती हैं, शायद ही घर का कोई पुरुष करता हो. इसीलिए पूरी मंदिर कमेटी ने यह फैसला लिया कि योगेश्वर श्री कृष्ण मंदिर की जिम्मेदारी महिलाओं को दी जाए. इस फैसले के बाद महिलाएं बेहद खुश हैं और हमें उम्मीद है कि पिथौरागढ़ के इस प्राचीन मंदिर में पूजा पाठ और रख रखाव महिलाएं बेहतर तरीके से कर पाएंगी.
पढ़ें- Woman Cab Driver: पिता ने दिया Motivation, तो बेटी ने थामा स्टेयरिंग, छोटी ऑल्टो में पूरे हो रहे इमराना के बड़े सपने

देहरादून में भी टूटी महिलाओं के लिए ये परम्परा: बीते कुछ सालों में उत्तराखंड में महिलाओं ने पुरानी कुरीतियों को पूरी तरह से दरकिनार न केवल खुद को आगे किया है, बल्कि समाज से भी यह मनवा कर छोड़ा है कि महिलाएं किसी भी पैमाने पर पुरुषों से काम नहीं हैं. ऐसा ही एक मामला राजधानी देहरादून के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के सुदूर गांव चिल्हाड़ से सामने आया था.

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पिथौरागढ़ के योगेश्वर श्री कृष्ण मंदिर की महिला पुजारी.

इस गांव में बलाणी देवी मंदिर है. मान्यता के अनुसार मंदिर में अनुसूचित जाति के लोगों का प्रवेश तो वर्जित था ही, साथ ही साथ महिलाएं भी इस मंदिर में पूजा पाठ इत्यादि नहीं कर सकती थी. लेकिन महिलाओं ने और समाज ने मिलकर यह फैसला लिया कि सालों से चली आ रही इस गलत परंपरा को तोड़ा जाए. समाज ने छुआछूत व भेदभाव की जंजीरों को तोड़ते हुए यह फैसला लिया गया कि महिलाओं और अनुसूचित जाति के लोगों को भी पूजा का अधिकार दिया जाएगा.

यह मंदिर जनजातीय क्षेत्र में हनोल महासू देवता की बहन का मंदिर है. इस मंदिर में मुख्य रूप से ब्राह्मण पुजारी हुआ करते थे, लेकिन बिजल्वाण परिवार के पुरुषों और महिलाओं ने इस को प्रथा को भी पूरी तरह से बंद कर दिया. अब इस मंदिर में महिलाएं भी पूजा पाठ करती हैं. दलितों को भी मंदिर में पूजा पाठ करने का पूरा अधिकार है.
पढ़ें- Women Empowerment : 11 महिलाओं ने मिलकर कुछ इस तरह 28 हजार महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

यहां तो सिर्फ महिलाएं ही करती हैं अपने आराध्य का श्रृंगार: उत्तराखंड के चमोली में भी कई परंपराओं को आज भी महिलाएं निभा रही हैं. ऐसी ही एक परंपरा का सदियों से महिलाएं निर्वहन कर रही हैं. चमोली जिले की दुर्गम घाटी में स्थित है बेहद प्राचीन भगवान विष्णु के फ्यूंलानारायण मंदिर. यहां सदियों से महिलाएं ही परंपरा को निभाते आ रही हैं, जो बेहद अलग और अनूठी है.

इस मंदिर में भगवान के श्रृंगार का अधिकार सिर्फ और सिर्फ महिलाओं को ही है. हर साल 4 महीने के लिए इस मंदिर के कपाट खुलते हैं और मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति का श्रृंगार हर साल एक नई परिवार की महिला को दिया जाता है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ महिलाएं फूल इत्यादि से ही इनका श्रृंगार करती हैं, बल्कि रोजाना 4 महीने तक सुबह-सुबह महिलाएं इस मंदिर में दूध, दही, मक्खन और सत्तू का भोग लगाती हैं. रंग-बिरंगे फूलों से भगवान विष्णु को सजाती हैं. इस परंपरा के पीछे भी सदियों पुरानी एक कहानी मौजूद है.

ये है मान्यता: मान्यता के अनुसार इस पूरे क्षेत्र में आदि अनादि काल में अप्सराएं रहा करती थीं. उन्हीं में से एक अप्सरा उर्वशी दुर्गम घाटी में पुष्प लेने पहुंची थी, जहां पर भगवान विष्णु उन्हें दिखाई दिए. तब अप्सरा उर्वशी ने भगवान विष्णु का रंग बिरंगे फूलों से श्रृंगार किया था. कहा जाता है कि तभी से इस पूरे क्षेत्र में यह परंपरा प्रचलित है कि महिलाएं ही भगवान विष्णु के मंदिर में भगवान का श्रृंगार, भोग इत्यादि लगाएंगी. यह मंदिर बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग जोशीमठ से लगभग 12 किलोमीटर पहले हेलंग घाटी के दुर्गम क्षेत्र में मौजूद है.

पिथौरागढ़ (उत्तराखंड): आज भी देश के कई हिस्सों में पूजा पद्धति और मान्यताओं को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं. मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश से लेकर पूजा पाठ की परंपराओं में महिलाओं को दूर रखा जाता है. ऐसी ही कुछ परंपराएं लंबे समय से उत्तराखंड में कई मंदिरों में चलती आ रही हैं. इन मंदिरों में या तो महिलाओं का प्रवेश ही वर्जित था या फिर मंदिर में पुजारी बनने का अधिकार सिर्फ पुरुषों को ही था. गढ़वाल और कुमाऊं में कई ऐसी परंपराओं और रूढ़िवादी परंपराओं को महिलाएं तोड़कर अब आगे बढ़ रही हैं. ऐसा ही कुछ हुआ उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में. यहां मंदिर कमेटी ने बड़ा फैसला लेते हुए दो महिलाओं को मंदिर का मुख्य पुजारी बनाया है.

पेश की गई मिसाल: उत्तराखंड के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है. यहां के मंदिरों की मान्यता और पूजा पाठ की विधि भी बेहद प्रचलित है. मौजूदा समय में पिथौरागढ़ के योगेश्वर श्री कृष्ण मंदिर की चर्चा जोरों पर है. अब तक आपने देश भर के तमाम मंदिरों में देखा होगा कि वहां मुख्य पुजारी की भूमिका हमेशा से पुरुष निभाते आए हैं. लेकिन पिथौरागढ़ के योगेश्वर श्री कृष्ण मंदिर में महिला पुजारी बनाने को लेकर लंबे समय से आवाज उठ रही थी और महिलाएं भी मंदिर कमेटी से बार-बार यह आग्रह कर रही थीं. इसको लेकर मंथन चिंतन और धर्माचार्यों से बातचीत हुई. इसके बाद कमेटी ने जो फैसला लिया, वो देशभर के मंदिरों और महिलाओं के लिए एक मिसाल बन गया.
पढ़ें- इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश है वर्जित, सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपरा का आज भी हो रहा पालन

मंदिर कमेटी का बड़ा फैसला: मंदिर कमेटी ने फैसला लेते हुए दो महिला पुजारियों को मंदिर में नियुक्त किया है. खास बात यह है कि अब इस मंदिर में मुख्य पुजारी और सहायक पुजारी भी केवल महिला ही होंगी. पिथौरागढ़ की ही रहने वाली मंजुला अवस्थी को मुख्य पुजारी बनाया गया है, जबकि सुमन बिष्ट को सहायक पुजारी का दायित्व सौंपा गया है.

देश का पहला मंदिर: उत्तराखंड में ऐसा पहली बार है, जब किसी मंदिर की मुख्य पुजारी महिला को बनाया गया है. मंदिर कमेटी के अध्यक्ष आचार्य पीतांबर बताते हैं कि उत्तराखंड में कई मंदिरों में आज भी महिलाओं को लेकर रूढ़िवादी परंपराएं प्रचलित हैं और हम यह चाहते हैं कि इन परंपराओं को खत्म करके महिलाओं को आगे किया जाए.

इस वजह से लिया है फैसला: पीतांबर अवस्थी की मानें तो कमेटी ने जो फैसला लिया है, वह महिला सशक्तिकरण के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा. महिलाएं अपने परिवार और समाज के लिए जितना कार्य और त्याग करती हैं, उतना शायद ही पुरुष करता हो. महिलाएं घर में पूजा-पाठ से लेकर व्रत आदि जितना करती हैं, शायद ही घर का कोई पुरुष करता हो. इसीलिए पूरी मंदिर कमेटी ने यह फैसला लिया कि योगेश्वर श्री कृष्ण मंदिर की जिम्मेदारी महिलाओं को दी जाए. इस फैसले के बाद महिलाएं बेहद खुश हैं और हमें उम्मीद है कि पिथौरागढ़ के इस प्राचीन मंदिर में पूजा पाठ और रख रखाव महिलाएं बेहतर तरीके से कर पाएंगी.
पढ़ें- Woman Cab Driver: पिता ने दिया Motivation, तो बेटी ने थामा स्टेयरिंग, छोटी ऑल्टो में पूरे हो रहे इमराना के बड़े सपने

देहरादून में भी टूटी महिलाओं के लिए ये परम्परा: बीते कुछ सालों में उत्तराखंड में महिलाओं ने पुरानी कुरीतियों को पूरी तरह से दरकिनार न केवल खुद को आगे किया है, बल्कि समाज से भी यह मनवा कर छोड़ा है कि महिलाएं किसी भी पैमाने पर पुरुषों से काम नहीं हैं. ऐसा ही एक मामला राजधानी देहरादून के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के सुदूर गांव चिल्हाड़ से सामने आया था.

uttarakhand
पिथौरागढ़ के योगेश्वर श्री कृष्ण मंदिर की महिला पुजारी.

इस गांव में बलाणी देवी मंदिर है. मान्यता के अनुसार मंदिर में अनुसूचित जाति के लोगों का प्रवेश तो वर्जित था ही, साथ ही साथ महिलाएं भी इस मंदिर में पूजा पाठ इत्यादि नहीं कर सकती थी. लेकिन महिलाओं ने और समाज ने मिलकर यह फैसला लिया कि सालों से चली आ रही इस गलत परंपरा को तोड़ा जाए. समाज ने छुआछूत व भेदभाव की जंजीरों को तोड़ते हुए यह फैसला लिया गया कि महिलाओं और अनुसूचित जाति के लोगों को भी पूजा का अधिकार दिया जाएगा.

यह मंदिर जनजातीय क्षेत्र में हनोल महासू देवता की बहन का मंदिर है. इस मंदिर में मुख्य रूप से ब्राह्मण पुजारी हुआ करते थे, लेकिन बिजल्वाण परिवार के पुरुषों और महिलाओं ने इस को प्रथा को भी पूरी तरह से बंद कर दिया. अब इस मंदिर में महिलाएं भी पूजा पाठ करती हैं. दलितों को भी मंदिर में पूजा पाठ करने का पूरा अधिकार है.
पढ़ें- Women Empowerment : 11 महिलाओं ने मिलकर कुछ इस तरह 28 हजार महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

यहां तो सिर्फ महिलाएं ही करती हैं अपने आराध्य का श्रृंगार: उत्तराखंड के चमोली में भी कई परंपराओं को आज भी महिलाएं निभा रही हैं. ऐसी ही एक परंपरा का सदियों से महिलाएं निर्वहन कर रही हैं. चमोली जिले की दुर्गम घाटी में स्थित है बेहद प्राचीन भगवान विष्णु के फ्यूंलानारायण मंदिर. यहां सदियों से महिलाएं ही परंपरा को निभाते आ रही हैं, जो बेहद अलग और अनूठी है.

इस मंदिर में भगवान के श्रृंगार का अधिकार सिर्फ और सिर्फ महिलाओं को ही है. हर साल 4 महीने के लिए इस मंदिर के कपाट खुलते हैं और मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति का श्रृंगार हर साल एक नई परिवार की महिला को दिया जाता है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ महिलाएं फूल इत्यादि से ही इनका श्रृंगार करती हैं, बल्कि रोजाना 4 महीने तक सुबह-सुबह महिलाएं इस मंदिर में दूध, दही, मक्खन और सत्तू का भोग लगाती हैं. रंग-बिरंगे फूलों से भगवान विष्णु को सजाती हैं. इस परंपरा के पीछे भी सदियों पुरानी एक कहानी मौजूद है.

ये है मान्यता: मान्यता के अनुसार इस पूरे क्षेत्र में आदि अनादि काल में अप्सराएं रहा करती थीं. उन्हीं में से एक अप्सरा उर्वशी दुर्गम घाटी में पुष्प लेने पहुंची थी, जहां पर भगवान विष्णु उन्हें दिखाई दिए. तब अप्सरा उर्वशी ने भगवान विष्णु का रंग बिरंगे फूलों से श्रृंगार किया था. कहा जाता है कि तभी से इस पूरे क्षेत्र में यह परंपरा प्रचलित है कि महिलाएं ही भगवान विष्णु के मंदिर में भगवान का श्रृंगार, भोग इत्यादि लगाएंगी. यह मंदिर बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग जोशीमठ से लगभग 12 किलोमीटर पहले हेलंग घाटी के दुर्गम क्षेत्र में मौजूद है.

Last Updated : Nov 1, 2023, 5:43 PM IST
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