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मासिक धर्म के कचरे को निपटाने के लिए तकनीकी इस्तेमाल की जरूरत

मासिक धर्म को लेकर हमारे देश में आज भी तमाम तरह की चुनौतियां मौजूद हैं. लोगों का इसके प्रति जागरूक न होना तो समस्या है ही लेकिन इससे जुड़ी एक नई समस्या खड़ी हो गई है. हर वर्ष इससे जुड़ा लाखों टन कचरा पैदा होता है, जिसका सुरक्षित निष्पादन एक बड़ी समस्या है.

solutions to manage menstrual waste
प्रतीकात्मक फोटो
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Published : Nov 21, 2020, 10:01 AM IST

Updated : Nov 21, 2020, 10:22 AM IST

कोविड-19 की वजह से हुए लॉकडाउन ने महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित किया है. इसने मासिक धर्म से जुड़ी पहले से मौजूद चुनौतियों को और बढ़ा दिया है. महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन की खरीद में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ा क्योंकि पूरे देश में लॉकडाउन लागू होने के सात दिन बाद यानी 30 मार्च तक यह आवश्यक वस्तुओं की सूची में शामिल नहीं हो पाया था. हाल के दिनों में महामारी को जन्म देने वाली एक और समस्या सामने आई देती है वह इस्तेमाल हो चुके सैनिटरी नैपकिन का सुरक्षित तरीके से निष्पादन है.

भारत में मासिक धर्म की चर्चा में खुलेपन को प्रोत्साहित करने और स्वच्छता से जुड़े उत्पादों को ज्यादा सुलभ बनाने के लिए सामूहिक प्रयास किया गया लेकिन मासिक धर्म से जुड़े उत्पादों को इस्तेमाल करने के बाद उनका किस तरह से निष्पादन किया जाए इस पर बहुत कम काम हुआ. इस पर चर्चा वर्जित बात ही बनी रही.

मूसे फाउंडेशन की ओर से ठाणे की मलिन बस्तियों में किए गए अध्ययन से पता चला कि 71 फीसद महिलाओं ने डिस्पोजेबल सेनेटरी नैपकिन (डीएसएन ) का उपयोग किया और कम से कम 45 फीसद ने अपने सैनिटरी कचरे को सार्वजनिक शौचालयों में जमा किया क्योंकि वहां डस्टबिन उपलब्ध नहीं थे. अगर हम इसमें इस्तेमाल किए गए सैनिटरी नैपकिन और कपड़े के पैड के निस्तारण और महामारी के दौरान मासिक धर्म से जुड़े स्वच्छता के उत्पादों की खरीद की समस्या को जोड़ दें तो परिणाम भयावह हैं.

यह न केवल यह दर्शाता है कि महिलाओं के लिए स्थिति कितनी विकट है बल्कि यह भी दर्शाता है कि खराब कचरा प्रबंधन संक्रमण और रोगो को फैलाने में किस तरह से योगदान देता है. वैश्विक स्तर पर मानवीय कार्यों में मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन को शामिल करने पर ध्यान दिया जा रहा है लेकिन अक्सर प्रमुख तत्वों में से एक मासिक धर्म से जुड़ी सामग्री का निपटान और अपशिष्ट प्रबंधन गायब रहता है.

एक आकलन के मुताबिक, भारत में ठोस अपशिष्ट 6.3 करोड़ टन पैदा होता है. हर वर्ष 35 करोड़ 30 लाख महिलाएं 441 करोड़ 25 लाख किलो मासिक धर्म का अपशिष्ट पैदा करती हैं. ठोस कचरा प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम ) नियम, 2016 सभी मासिक धर्म अपशिष्ट के हस्तांतरण और बड़े पैमाने पर बायो मेडिकल भट्टी में जलाने की सलाह देते हैं. हालांकि कानून को लागू करने के लिए इनको छांट कर अलग करने, संग्रह करने और इनके परिवहन का स्थाई चेन का होना महत्वपूर्ण है.

इसे अलग-अलग करने के लिए घरों में कागज के बैग के उपयोग करने के साथ शुरू किया जा सकता है जो अपशिष्ट चुनने वालों के काम को तब आसान बना देते हैं जब वे कचरे को अलग करते हैं. यह उन्हें कूड़ाघर में पड़े रहने या यूं ही जलाए जाने से रोकता है जिससे खतरनाक कैंसरकारी तत्व का उत्सर्जन हो सकता है.

फाइनैंनशियल इन्क्लूजन इम्प्रूव्स सैनिटेशन एंड हेल्थ (फिनिश) सोसायटी ने पूरे भारत के पहले, दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों की ऐसी 243 मासिक धर्म वाली महिलाओं पर अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला कि कुल आबादी की 68 फीसद महिलाओं के पैड जैविकरूप से नष्ट होने वाले नहीं थे. जबकि 24 फीसद ने ऐसी सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल किया जो जैविक रूप से सड़कर खाद बन सकते थे. इस अध्ययन में दिखाया गया है कि प्लास्टिक के उपयोग वाले एक सैनेटरी पैड को नष्ट करने में 500 से 800 साल लग सकते हैं.

अधिकांश महिलाएं अपने उपयोग किए जा चुके मासिक धर्म के उत्पादों को घरेलू ठोस अपशिष्ट या कचरा बिन में डाल देती हैं. अंततः ये ठोस कचरे का एक हिस्सा बन जाता हैं. यूनिसेफ के अध्ययन से पता चलता है कि मासिक धर्म से जुड़ी स्वच्छता सामग्री के निपटान सुविधा की अक्सर लड़कियां अनदेखी करती हैं. इस घटना में कि कचरा निस्तारण केंद्र के निपटान के विकल्पों की कमी की वजह से मासिक धर्म वाली महिलाएं अक्सर उपयोग की जा चुकीं मासिक धर्म सामग्री को शौचालय में डाल देती हैं जो सेप्टिक टैंक सफाई के दौरान पाइप के खाली स्थान जाम कर सकता है.

इसकी जगह सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल स्वच्छता के उत्पादों को अपनाना न केवल बदलाव करने की इच्छा का बल्कि विकल्पों को लेकर जागरूकता और पहुंच या सामर्थ्य को भी दर्शाता है. इसलिए यह आवश्यक है कि इसकी समस्या के उन्नत और व्यवहारिक समाधान के लिए सामूहिक रूप से ठोस प्रयास के माध्यम से शौचालयों के उपयोग की निगरानी करके, व्यवहार में परिवर्तन शुरू करके, मासिक धर्म के अपशिष्ट को जल्द निपटाने के लिए तकनीकी समाधान खोजने के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है.

अभिनव मोबाइल प्रौद्योगिकी में निवेश करना भी जरूरी है ताकि लागत कम करने में सहायता मिले और मासिक धर्म के स्वास्थ्य प्रबंधन के विकास के संकेतकों में तेजी से बदलाव की निगरानी की जा सके. 2000 के बाद से ठोस कचरे को लेकर भारत का कानून प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम) लागू हुआ और उचित बदलाव किए गए ताकि उभरती हुई प्रौद्योगिकियां, खाद बनाना, शहरी स्थानीय निकायों की क्षमता को मजबूत करना, कचरे को अलग करके, रीसाइक्लिंग करके फिर से उसका उपयोग किया जा सके.

आज जब दुनिया महामारी से लड़ रही है दूषित और खतरनाक उत्पादों का सुरक्षित निपटान अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है. इसलिए नए जमाने के लिए यह जरूरी हो गया है कि मासिक धर्म के कचरे के प्रबंधन के लिए देश में तकनीक संचालित निदान के लिए एक उचित वातावरण बने.

-निशा जगदीश, निदेशक जेंडर एंड राइट्स, फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया

कोविड-19 की वजह से हुए लॉकडाउन ने महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित किया है. इसने मासिक धर्म से जुड़ी पहले से मौजूद चुनौतियों को और बढ़ा दिया है. महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन की खरीद में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ा क्योंकि पूरे देश में लॉकडाउन लागू होने के सात दिन बाद यानी 30 मार्च तक यह आवश्यक वस्तुओं की सूची में शामिल नहीं हो पाया था. हाल के दिनों में महामारी को जन्म देने वाली एक और समस्या सामने आई देती है वह इस्तेमाल हो चुके सैनिटरी नैपकिन का सुरक्षित तरीके से निष्पादन है.

भारत में मासिक धर्म की चर्चा में खुलेपन को प्रोत्साहित करने और स्वच्छता से जुड़े उत्पादों को ज्यादा सुलभ बनाने के लिए सामूहिक प्रयास किया गया लेकिन मासिक धर्म से जुड़े उत्पादों को इस्तेमाल करने के बाद उनका किस तरह से निष्पादन किया जाए इस पर बहुत कम काम हुआ. इस पर चर्चा वर्जित बात ही बनी रही.

मूसे फाउंडेशन की ओर से ठाणे की मलिन बस्तियों में किए गए अध्ययन से पता चला कि 71 फीसद महिलाओं ने डिस्पोजेबल सेनेटरी नैपकिन (डीएसएन ) का उपयोग किया और कम से कम 45 फीसद ने अपने सैनिटरी कचरे को सार्वजनिक शौचालयों में जमा किया क्योंकि वहां डस्टबिन उपलब्ध नहीं थे. अगर हम इसमें इस्तेमाल किए गए सैनिटरी नैपकिन और कपड़े के पैड के निस्तारण और महामारी के दौरान मासिक धर्म से जुड़े स्वच्छता के उत्पादों की खरीद की समस्या को जोड़ दें तो परिणाम भयावह हैं.

यह न केवल यह दर्शाता है कि महिलाओं के लिए स्थिति कितनी विकट है बल्कि यह भी दर्शाता है कि खराब कचरा प्रबंधन संक्रमण और रोगो को फैलाने में किस तरह से योगदान देता है. वैश्विक स्तर पर मानवीय कार्यों में मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन को शामिल करने पर ध्यान दिया जा रहा है लेकिन अक्सर प्रमुख तत्वों में से एक मासिक धर्म से जुड़ी सामग्री का निपटान और अपशिष्ट प्रबंधन गायब रहता है.

एक आकलन के मुताबिक, भारत में ठोस अपशिष्ट 6.3 करोड़ टन पैदा होता है. हर वर्ष 35 करोड़ 30 लाख महिलाएं 441 करोड़ 25 लाख किलो मासिक धर्म का अपशिष्ट पैदा करती हैं. ठोस कचरा प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम ) नियम, 2016 सभी मासिक धर्म अपशिष्ट के हस्तांतरण और बड़े पैमाने पर बायो मेडिकल भट्टी में जलाने की सलाह देते हैं. हालांकि कानून को लागू करने के लिए इनको छांट कर अलग करने, संग्रह करने और इनके परिवहन का स्थाई चेन का होना महत्वपूर्ण है.

इसे अलग-अलग करने के लिए घरों में कागज के बैग के उपयोग करने के साथ शुरू किया जा सकता है जो अपशिष्ट चुनने वालों के काम को तब आसान बना देते हैं जब वे कचरे को अलग करते हैं. यह उन्हें कूड़ाघर में पड़े रहने या यूं ही जलाए जाने से रोकता है जिससे खतरनाक कैंसरकारी तत्व का उत्सर्जन हो सकता है.

फाइनैंनशियल इन्क्लूजन इम्प्रूव्स सैनिटेशन एंड हेल्थ (फिनिश) सोसायटी ने पूरे भारत के पहले, दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों की ऐसी 243 मासिक धर्म वाली महिलाओं पर अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला कि कुल आबादी की 68 फीसद महिलाओं के पैड जैविकरूप से नष्ट होने वाले नहीं थे. जबकि 24 फीसद ने ऐसी सेनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल किया जो जैविक रूप से सड़कर खाद बन सकते थे. इस अध्ययन में दिखाया गया है कि प्लास्टिक के उपयोग वाले एक सैनेटरी पैड को नष्ट करने में 500 से 800 साल लग सकते हैं.

अधिकांश महिलाएं अपने उपयोग किए जा चुके मासिक धर्म के उत्पादों को घरेलू ठोस अपशिष्ट या कचरा बिन में डाल देती हैं. अंततः ये ठोस कचरे का एक हिस्सा बन जाता हैं. यूनिसेफ के अध्ययन से पता चलता है कि मासिक धर्म से जुड़ी स्वच्छता सामग्री के निपटान सुविधा की अक्सर लड़कियां अनदेखी करती हैं. इस घटना में कि कचरा निस्तारण केंद्र के निपटान के विकल्पों की कमी की वजह से मासिक धर्म वाली महिलाएं अक्सर उपयोग की जा चुकीं मासिक धर्म सामग्री को शौचालय में डाल देती हैं जो सेप्टिक टैंक सफाई के दौरान पाइप के खाली स्थान जाम कर सकता है.

इसकी जगह सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल स्वच्छता के उत्पादों को अपनाना न केवल बदलाव करने की इच्छा का बल्कि विकल्पों को लेकर जागरूकता और पहुंच या सामर्थ्य को भी दर्शाता है. इसलिए यह आवश्यक है कि इसकी समस्या के उन्नत और व्यवहारिक समाधान के लिए सामूहिक रूप से ठोस प्रयास के माध्यम से शौचालयों के उपयोग की निगरानी करके, व्यवहार में परिवर्तन शुरू करके, मासिक धर्म के अपशिष्ट को जल्द निपटाने के लिए तकनीकी समाधान खोजने के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है.

अभिनव मोबाइल प्रौद्योगिकी में निवेश करना भी जरूरी है ताकि लागत कम करने में सहायता मिले और मासिक धर्म के स्वास्थ्य प्रबंधन के विकास के संकेतकों में तेजी से बदलाव की निगरानी की जा सके. 2000 के बाद से ठोस कचरे को लेकर भारत का कानून प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम) लागू हुआ और उचित बदलाव किए गए ताकि उभरती हुई प्रौद्योगिकियां, खाद बनाना, शहरी स्थानीय निकायों की क्षमता को मजबूत करना, कचरे को अलग करके, रीसाइक्लिंग करके फिर से उसका उपयोग किया जा सके.

आज जब दुनिया महामारी से लड़ रही है दूषित और खतरनाक उत्पादों का सुरक्षित निपटान अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है. इसलिए नए जमाने के लिए यह जरूरी हो गया है कि मासिक धर्म के कचरे के प्रबंधन के लिए देश में तकनीक संचालित निदान के लिए एक उचित वातावरण बने.

-निशा जगदीश, निदेशक जेंडर एंड राइट्स, फैमिली प्लानिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया

Last Updated : Nov 21, 2020, 10:22 AM IST
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