हैदराबाद: दुनियाभर में डायबिटीज के मामले में भारत नंबर वन है यानि दुनिया में सबसे ज्यादा डायबिटीज के मरीज भारत में रहते हैं. लेकिन डायबिटीज को लेकर जो आंकड़े अब सामने आए हैं वो और भी चौंकाने और डराने वाले हैं.
हिमाचल में बढ़ रहा डायबिटीज
पहाड़ी राज्यों में रहने वाले लोगों को वहां की भौगोलिक दृष्टि के कारण मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों के मुकाबले अधिक स्वस्थ माना जाता है. लेकिन डायबिटीज के मामले में हिमाचल के आंकड़े चौंकाने वाले हैं, हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री निरोग योजना के तहत 24 लाख लोगों की जांच की गई. इनमें से साढ़े 8 लाख लोग मधुमेह (diabetes) के रोगी निकले. ये आंकड़े तब और भी हैरान करते हैं जब पता लगे कि हिमाचल में डायबिटीज के मरीज राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है. मौजूदा दौर में मधुमेह के रोगियों का राष्ट्रीय औसत 10 फीसदी से कम (9.8%) है, जबकि हिमाचल में ये औसत साढे ग्यारह फीसदी (11.5 %) तक पहुंच चुका है. यानि देश की कुल आबादी में से 9.8 फीसदी लोग डायबिटिक हैं जबकि हिमाचल की कुल आबादी का 11.5 फीसदी लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं.
एक तिहाई आबादी डायबिटीज की मरीज
इस औसत के हिसाब से 70 लाख की आबादी वाले हिमाचल प्रदेश में एक तिहाई आबादी डायबिटीज की मरीज है. यानि हर तीसरा शख्स मधुमेह की चपेट में है. प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी के डॉक्टर कुश देव सिंह जरियाल बताते हैं कि हिमाचल में हर 100 में से 8 या 9 लोग इस बीमारी की चपेट में हैं और इतने ही लोग प्री-डायबिटिक यानि डायबिटीज की सीमा तक पहुंचने वाले हैं. इन लोगों ने भी अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दिया तो ये लोग जल्द ही डायबिटिक मरीजों की श्रेणी में आ जाएंगे. इस हिसाब से ये आंकड़ा हर 100 लोगों में 15 से 16 लोगों के डायबिटिक होने तक पहुंच जाएगा, जो बहुत चौंकाने वाला है.
आईजीएमसी के मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. जितेंद्र मोक्टा के मुताबिक हिमाचल में टाइप टू मधुमेह चिंताजनक रूप से बढ़ा है. टाइप टू मधुमेह में हिमाचल देश में सातवें स्थान पर है. जबकि प्रदेश में 31 फीसदी लोग हाई ब्लड प्रेशर का शिकार हैं. तीन साल पहले भी एक सर्वे हुआ था, तब तीस साल और इससे अधिक आयु के 10 लाख लोगों की स्वास्थ्य जांच हुई तो उसमें से 85 हजार लोग मधुमेह की चपेट में पाए गए थे. तब के आंकड़ों के अनुसार हर 12वां व्यक्ति हिमाचल में डायबिटिज का शिकार था.
बच्चों में भी बढ़ रहा है मधुमेह
कभी डायबिटीज को 40 साल और उससे अधिक की उम्र के लोगों की बीमारी कहा जाता था लेकिन धीरे-धीरे ये युवाओं में आम हुई और अब बच्चों पर भी इसका खतरा मंडराने लगा है. पुणे में 700 परिवारों पर किए परीक्षण में इसका खुलासा हुआ है. पुणे स्थित केईएम अस्पताल के वैज्ञानिकों ने करीब 35 साल तक इसका शोध किया. साल 1993 से पुणे के पास के छह गांवों में अध्ययन शुरू हुआ, जिसके तहत 700 से अधिक परिवारों पर स्टडी की. इस दौरान महिलाओं के गर्भधारण से लेकर गर्भावस्था और बच्चों की पैदाइश से लेकर उनके बचपन से युवा और व्यस्क होने तक अध्ययन किया गया.
इस दौरान 6, 12 और 18 साल की उम्र में शरीर में ग्लूकोज से लेकर इंसुलिन से जुड़ी जानकारी ली गई. स्टडी में पाया गया कि 18 साल की उम्र में 37 फीसदी पुरुषों और 18 फीसदी महिलाओं में ग्लूकोज का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया. जो प्रीडायबिटीज की स्टेज है, रिपोर्ट के पाया गया कि छोटे-छोटे बच्चों में भी मधुमेह के अधिक जोखिम वाले कारक होते हैं. बच्चों में 6 से 12 साल की उम्र में ग्लूकोज का स्तर अधिक पाया गया था.
हिमाचल के आंकड़े क्यों डरा रहे हैं ?
हिमाचल से सामने आए डायबिटीज के मामलों में बच्चे भी शामिल हैं. लेकिन हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में आंकड़े इसलिये चौंकाने वाले हैं क्योंकि माना जाता है कि कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण वहां रोजमर्रा का जीवन बहुत ही मुश्किल होता है. रोजमर्रा की जरूरतों के लिए कई किलोमीटर चलने से लेकर दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों के मुकाबले शुद्ध हवा और प्राकृतिक खान-पान के बावजूद डायबिटीज के मरीजों की बढ़ती आबादी खतरे की घंटी है. राष्ट्रीय औसत से अधिक मरीज होने पर ये खतरा और भी बड़ा है, इस मामले में देश के कई राज्य भले हिमाचल से आगे होंगे. लेकिन भूलना नहीं चाहिए कि हिमाचल की आबादी सिर्फ 70 लाख है.
कोरोना काल में बढ़ा है डायबिटीज का खतरा
कोरोना संक्रमण के दौर में डायबिटीज के मामले बढ़े हैं. एक्सपर्ट मानते हैं कि कोविड-19 संक्रमण के दौरान ऐसे लोगों की तादाद बढ़ी है. कई मरीजों में कोरोना संक्रमण के इलाज के दौरान स्टेरॉयड के इस्तेमाल और तनाव के कारण शरीर में शुगर का लेवल बढ़ा है. जिसके कारण जिन लोगों में डायबिटीज के लक्षण नहीं थे वो कोविड संक्रमित होने के बाद इसकी चपेट में आए हैं. कई मामलों में शुगर बॉर्डर लेवल पर होता है, इन्हें प्री-डायबेटिक कहा जाता है. ऐसे लोग जब कोरोना संक्रमित होते हैं तो उनका शुगर लेवल बढ़ जाता है.
कितनी तरह की होती है डायबिटीज?
1) टाइप-1 डायबिटीज- जब शरीर में इंसुलिन बनना पूरी तरह से बंद हो जाता है तो ये डायबिटीज का टाइप-1 प्रकार कहलाता है. ये ज्यादातर पैदाइशी या अनुवांशिक होता है. भारत में इस तरह के मरीज बहुत कम हैं. माना जाता है कि हजारों बच्चों में से एक में इसके लक्षण मिलते हैं. इसमें मरीज का शरीर जरा भी इंसुलिन नहीं बनाता इसलिए ग्लूकोज को कंट्रोल करने के लिए बाहर से लगातार इंसुलिन लेना पड़ता है.
2) टाइप-2 डायबीटीज- जब शरीर में इंसुलिन कम मात्रा में बनता है तो ये टाइप-2 डायबिटीज कहलाता है. इसे डायबीटीज मेलिटस (Diabetes Mellitus) भी कहते हैं. ये मोटापा, गलत लाइफस्टाइल, बढ़ती उम्र की वजह से भी होती है. अगर इसपर ध्यान नहीं दिया तो ये स्वास्थ्य के लिए ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है.
क्यों बढ़ रही है डायबिटीज़ की समस्या ?
मौजूदा दौर में बदलता लाइफस्टाइल इसकी सबसे बड़ी वजह है. जिसके कारण बच्चों से लेकर युवा तक डायबिटीज के मरीज बन रहे हैं. बच्चों में बढ़ते डायबिटीज के मामले कई अभिभावकों के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि डायबिटीज की वजह को उनकी नाक के नीचे ही बढ़ावा मिल रहा होता है.
1. खान-पान- घर के पौष्टिक खाने की बजाय आजकल लोग जंक फूड या बाहर के खाने को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं. छोटे बच्चों से लेकर स्कूल-कॉलेज जाने वाले छात्रों और ऑफिस जाने वाले युवाओं तक में खाने-पीने की आदतें बहुत ज्यादा बदल गई हैं. जिसका सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ रहा है और फिर इसकी वजह से मोटापा होने के कारण डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है.
2. कसरत या खेल-कूद में कमी- आजकल बच्चों हों या बड़े सभी लोग मोबाइल, टीवी, ऑनलाइन गेम से चिपके रहते हैं. सबके दिन का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं पर खर्च हो जाता है, जबकि पहले बच्चे और युवा क्रिकेट, फुटबॉल जैसे खेल-कूद से जुड़े रहते थे. जो उनके लिए शारीरिक कसरत का काम करता था, जिससे वो स्वस्थ रहते थे और मोटापा, बीपी जैसी बीमारियां उनसे दूर रहती थीं.
3) लक्षणों की अनदेखी- कई बार बच्चे का वजन ज्यादा होने पर उसे खाते-पीते घरकर बताकर या बढ़ती उम्र का हवाला देखकर मोटापे को इग्नोर किया जाता है लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ ये मोटापा कई बीमारियों की जड़ बनता है और डायबिटीज उन्हीं में से एक है. इसलिए डायबिटीज के लक्षणों से पहले डायबिटीज की स्टेज तक पहुंचने वाले लक्षणों को अनदेखा ना करें.
डायबिटीज से बचने के लिए क्या करें ?
- स्वाद के लिए सेहत से खिलवाड़ ना करते हुए खान-पान का विशेष ध्यान दें. बच्चों को जंक फूड से जितना हो सके उतना दूर रखें और उन्हें पौष्टिक आहार से जुड़े फायदे समझाएं.
- शारीरिक गतिविधि बढ़ाएं, बच्चों से लेकर युवाओं और बुजुर्गों से लेकर डायबिटीज के शिकार लोगों तक को डॉक्टर इसकी हिदायत देते हैं. बच्चों को मोबाइल गेम से ज्यादा पार्क में खेल-कूद के लिए प्रोत्साहित करें. युवा भी खेल-कूद और जिम, योग, कसरत करें.
- जंक फूड और फास्ट फूड से दूरी और खेल-कूद, शारीरिक गतिविधि बढ़ाने को इसलिये कहा जाता है ताकि आप मोटापे का शिकार ना हों. क्योंकि मोटापे ही कई बीमारियों की जड़ है.