हैदराबाद: जर्दालु, ये एक आम की किस्म है. जो बिहार के भागलपुर जिले में पाई जाती है. इस आम का स्वाद अब विदेशी भी ले सकेंगे. जीआई (GI) प्रमाणित इस आम की किस्म की पहली कमर्शियल खेप ब्रिटेन भेजी गई है. सवाल है कि ये जीआई टैग क्या होता है और इसकी क्या आवश्यकता या महत्व है.
क्या होता है जीआई टैग ?
GI यानि Geographical Indication यानि भौगोलिक संकेत. जीआई टैग एक प्रतीक है, जो मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है. ये टैग उस उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी विशेषता बताता है. कुल मिलाकर जीआई टैग बताता है कि किसी उत्पाद विशेष की पैदावर कहां होती है या कहां बनाया जाता है.
जीआई टैग किसी भी उत्पाद के लिए एक ऐसा प्रतीक होता है, जो उसकी विशेष भौगोलिक उत्पत्ति, पहचान और गुणवत्ता के लिए दिया जाता है. ये टैग उस उत्पाद की गुणवत्ता के साथ-साथ उसकी विशेषता या अलग पहचान का प्रमाण है.
संसद से मिली मान्यता
भारतीय संसद ने 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत 'जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स' लागू किया था, इस आधार पर भारत के किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाली विशेष वस्तु का कानूनी अधिकार उस राज्य को दिया जाता है. ये जीआई टैग किसी खास भौगोलिक परिस्थिति में मिलने वाले उत्पाद का दूसरे स्थान पर गैरकानूनी इस्तेमाल को कानूनी तौर पर रोकता है.
जीआई टैग के फायदे
जीआई टैग के जरिये उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिलता है यानि जीआई टैग उत्पादों की नकल को रोकता है. साथ ही जीआई टैग किसी उत्पाद की अच्छी गुणवत्ता का पैमाना भी होता है जिससे देश के साथ-साथ विदेशों में भी उस उत्पाद के लिए बाजार आसानी से मिल जाता है. इस टैग से किसी उत्पाद के विकास और फिर उस क्षेत्र विशेष के विकास मसलन रोजगार से लेकर राजस्व वृद्धि तक के द्वार खुलते हैं. जीआई टैग मिलने से उस उत्पाद से जुड़े क्षेत्र की विशेष पहचान होती है.
पंजीकरण कैसे, कहां और कितने वक्त के लिए
किसी उत्पाद के जीआई टैग के लिए कोई भी व्यक्तिगत निर्माता, संगठन इसके लिए Controller General of Patents, Designs and Trade Marks (CGPDTM) में आवेदन कर सकता है. जो कि वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आता है. इस संस्था की तरफ से उत्पाद की विशेषताओं से जुड़े हर दावे को परखा जाता है. पूरी जांच पड़ताल और छानबीन के बाद संतुष्ट होने पर ही जीआई टैग मिलता है. जीआई टैग 10 साल के लिए मिलता है जिसे रिन्यू करवाया जा सकता है. एक निर्धारिक फीस जमा करने पर जीआई टैग की अवधि 10 और वर्षों के लिए बढ़ जाती है. लेकिन इसका हस्तांतरण नहीं हो सकता है.
जीआई टैग सरकार की ओर से जारी एक सर्टिफिकेट और लोगो होता है. इस टैग का इस्तेमाल सिर्फ उस क्षेत्र विशेष या वो उत्पादक कर सकता है जिसके उत्पाद को ये टैग मिला है. किसी राज्य विशेष के उत्पाद को ये टैग मिलने पर इसका इस्तेमाल उस उत्पाद के लिए सिर्फ उसी प्रदेश के लोग कर सकते हैं जैसे बंगाल के रसगुल्ले के लिए जो लोगो मिला है उसका इस्तेमाल बंगाल के लोग ही कर सकते हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी होता है जीआई टैग
इस टैग से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी उस उत्पाद की कीमत और महत्व बढ़ जाता है. देश-विदेश से लोग उस खास जगह पर टैग वाले सामान को देखना और खरीदना चाहते हैं. इससे उस क्षेत्र विशेष में व्यापार के साथ-साथ पर्यटन क्षेत्र को भी बढ़ावा मिलता है.
जीआई टैग को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता है. WTO यानि विश्व व्यापार संगठन (world trade organisation) इसके तहत Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights (TRIPS) एक एग्रीमेंट है. सदस्य देशों के बीच इस बात पर सहमति है कि वो एक-दूसरे के जीआई टैग का सम्मान करेंगे. इस एग्रीमेंट के तहत किसी देश के जीआई टैग उत्पाद की किसी भी दूसरे देश में नकली उत्पाद बनाने से रोकने पर भी सहमति बनी हुई है.
पहला जीआई टैग
सबसे पहला जीआई टैग साल 2004 में दार्जिलिंग की चाय को मिला. इसके बाद देश के अलग-अलग राज्यों और क्षेत्र विशेष की पहचान बन चुके 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है. इनमें कश्मीर का केसर और पश्मीना, नागपुर के संतरे, बंगाली रसगुल्ले, बनारसी साड़ी, तिरुपति के लड्डू, रतलाम की सेव आदि शामिल हैं.
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