बोलपुर (पश्चिम बंगाल) : बोलपुर हायर सेकेंडरी स्कूल के प्रधानाध्यापक डॉ. सुप्रिया कुमार साधु (Dr. Surpiya Kumar Sadhu) पिछले 35 वर्षों से साइकिल से ही स्कूल जा रहे हैं. इन 35 वर्षों से वह पौधरोपण को बढ़ावा देने के लिए गांव-गांव साइकिल यात्रा कर रहे हैं. डॉ. साधु ने अपनी साइकिल पर पर्यावरण संरक्षण के नारे लिख रहे हैं. वे 35 वर्षों से लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करते आ रहे हैं.
डॉ. साधु ने हरियाली बढ़ाने के लिए अपने स्कूल में पेड़ भी लगाए. ऐसे समय में जब शिक्षक भर्ती भ्रष्टाचार ने राज्य भर में शिक्षकों के प्रति नकारात्मक धारणा पैदा कर दी है, डॉ. साधु जैसे आदर्श शिक्षक सामाजिक जिम्मेदारी निभा रहे हैं और शिक्षण की गुणवत्ता को बरकरार रख रहे हैं. बोलपुर में सुरुल लोअर प्राइमरी स्कूल (Surul Lower Primary School) में प्राथमिक शिक्षा करने के बाद, डॉ. सुप्रिया कुमार साधु ने विश्व-भारती में अध्ययन किया और भारत में कृषि पर शोध किया, फिर उन्होंने मुर्शिदाबाद जिले के रघुनाथगंज के एक गांव के स्कूल में पढ़ाया. वहां 10 साल पढ़ाने के बाद उन्होंने बोलपुर हाई स्कूल में अध्यापन किया.
बाद में उन्हें इस स्कूल का प्रधानाध्यापक नियुक्त किया गया. उन्होंने इस स्कूल में 25 साल तक पढ़ाया और इस सितंबर में सेवानिवृत्त होने वाले हैं. 2018 में उन्हें 'शिक्षा रत्न' पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. वह साइंस फोरम के सदस्य भी हैं. डॉ. साधु को 35 साल के शानदार करियर में पर्यावरण संरक्षण के कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है. वह बोलपुर के सुरुल गांव के रहने वाले हैं और उनका स्कूल घर से करीब 5 किमी दूर है. हालांकि वह बाइक चलाना जानते हैं, लेकिन वह साइकिल चलाना पसंद करते हैं. इसका एक कारण खनिज संसाधनों की रक्षा करना और पर्यावरण प्रदूषण को कम करना है, दूसरा साइकिल पर पर्यावरण संरक्षण के बारे में लिखकर लोगों में जागरूकता पैदा करना है.
पौधे बांटते हैं, उनके फायदे भी बताते हैं : उनकी साइकिल में 'प्लास्टिक छोड़ो,' 'पेड़ लगाओ', 'पर्यावरण बचाओ' जैसे शब्द लिखे हैं. डॉ. साधु स्कूल की छुट्टियों के बाद कभी छात्रों के साथ तो कभी अकेले बाहर जाते थे. वह तरह-तरह के पेड़-पौधे लगाते. कभी-कभी वह 20 से 30 किमी दूर गांवों में जाते हैं. वहां पौधे बांटकर पर्यावरण को अनुकूल बनाने का संदेश देते हैं, उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए छात्रों को पौधे भी बांटे हैं.
डॉ. साधु का कहना है 'मैंने साइकिल पर ऐसे स्लोगन इसलिए लिखे हैं क्योंकि जो कोई इन्हें पढ़ता है और देखता है वह बाजार में प्लास्टिक की चीजें मांगने से बचता है और पेड़ लगाता है. यह एक बड़ी संतुष्टि है. मैं जागरूकता पैदा करने के लिए यह काम कर रहा हूं. मेरे स्कूल के कई शिक्षक और छात्र इस काम में मेरी मदद कर रहे हैं.'
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