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कैलाश मानसरोवर के प्राचीन मार्ग को विकसित करने की कवायद, वैज्ञानिक बोले- डेवलपमेंट और नेचर को बैलेंस करने की जरूरत

Ancient route of Kailash Mansarovar Yatra पीएम मोदी के कैलाश पर्वत के दर्शन के बाद कैलाश मानसरोवर की यात्रा उत्तराखंड से ही यानी अपने प्राचीन मार्ग से किए जाने की आस जगी है. ऐसे में प्राचीन मार्ग को विकसित किया जाएगा. लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ों में विकास कार्य कई बार बड़ी घटना का रूप ले लेते हैं. ऐसे में प्राचीन मार्ग को कितना और कैसे विकसित किया जाए, इस पर वैज्ञानिकों ने अपनी राय रखी है.

Kailash Mansarovar Yatra
कैलाश मानसरोवर यात्रा
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 22, 2023, 4:44 PM IST

Updated : Oct 22, 2023, 4:55 PM IST

डेवलपमेंट और नेचर को बैलेंस करके कैलाश मानसरोवर के प्राचीन मार्ग को विकसित करने की जरूरत

देहरादून (उत्तराखंड): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 अक्टूबर को उत्तराखंड आए थे. उनके एक दिवसीय पिथौरागढ़ दौरे के दौरान उन्होंने धारचूला के ज्योलिकांग प्राचीन मार्ग से कैलाश मानसरोवर के दर्शन किए थे. अब उस प्राचीन मार्ग यानी नीतीघाटी मार्ग को विकसित करने की कवायद की जा रही है. लेकिन इस क्षेत्र को विकसित किए जाने से पहले वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि उत्तराखंड के लगभग सभी पहाड़ न्यू और ग्रोइंग पहाड़ हैं. ऐसे में साइंटिफिक पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है. प्रकृति और विकास के बीच बेहतर तालमेल बनाकर ही विकास कार्य किए जाने चाहिए.

Kailash Mansarovar Yatra
कैलाश मानसरोवर के प्राचीन मार्ग को विकसित करने की पहल

दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तराखंड के जिस भी क्षेत्र में गए, उसे मोदी ट्रेल के रूप में प्रमोट किया गया. इसका असर यह रहा कि वे क्षेत्र काफी विख्यात हुए और वहां भारी संख्या में लोग पहुंचने भी लगे. इसी क्रम में 12 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड पहुंचे थे, जहां उन्होंने कैलाश मानसरोवर यात्रा के पुराने यानी प्राचीन मार्ग से कैलाश पर्वत की पूजा अर्चना और साधना की. ऐसे में संभावनाएं जताई जा रही है कि अब कैलाश मानसरोवर की यात्रा उत्तराखंड से ही यानी अपने प्राचीन मार्ग से की जा सकेगी. ऐसे में इस मार्ग के आबाद होने की प्रबल संभावनाएं हैं.
ये भी पढ़ेंः कैलाश पर्वत दर्शन के लिए चीन का वीजा भूल जाइए, अब कुमाऊं की इन दो चोटियों से दिखेंगे भगवान शिव

नीतीघाटी मार्ग से होती थी कैलाश मानसरोवर यात्रा: बता दें कि नीतीघाटी मार्ग से ही साल 1954 तक कैलाश मानसरोवर की यात्रा की जाती थी. लेकिन साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद इस क्षेत्र के व्यापारियों के ना सिर्फ व्यापारिक रिश्ते खत्म हुए, बल्कि इस मार्ग से मानसरोवर यात्रा भी बंद हो गई. इसके बाद साल 1981 से भारतीय विदेश मंत्रालय और चीन सरकार के समन्वय के बाद कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) यात्रा को संचालित कर रहा है.

Kailash Mansarovar Yatra
पीएम मोदी ने 12 अक्टूबर को प्राचीन मार्ग (नीतीघाटी मार्ग) से किए कैलाश पर्वत के दर्शन.

वैज्ञानिकों के इंपैक्ट एसेसमेंट के मुताबिक ही विकास हो: नीतीघाटी मार्ग को धार्मिक पर्यटन के लिहाज से विकसित करने के सवाल पर देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्‍थान के डायरेक्टर डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि उत्तराखंड के पहाड़ नाजुक हैं. लिहाजा, इनको संरक्षण और सुरक्षित करने की जरूरत है. हालांकि, कैलाश मानसरोवर मार्ग के साथ ही प्रदेश के अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में तमाम पर्यटक स्थल हैं, जिसे विकसित किया गया है. लेकिन ये एक बड़ा मुद्दा है कि कितना डेवलपमेंट होना चाहिए. किस तरह से फ्रेजाइल इकोसिस्टम को मेंटेन करना चाहिए. लिहाजा, वैज्ञानिक जो इंपैक्ट एसेसमेंट करते हैं, उसके अनुसार ही विकास के कार्य होने चाहिए.
ये भी पढ़ेंः Mount Kailash: अब उत्तराखंड के लिपुलेख से होंगे कैलाश पर्वत के दर्शन, पहाड़ी से साफ दिख रहा बाबा भोले का 'घर'

ये फैक्टर्स आपदा के लिए जिम्मेदार: डायरेक्टर डॉ. कालाचंद साईं कहते हैं कि अगर प्रकृति और विकास को बैलेंस कर विकास करेंगे, तो बेहतर होगा. लेकिन अगर बैलेंस नहीं करते हैं तो फ्रेजाइल एनवायरमेंट (नाजुक वातावरण) पर असर पड़ता है. हालांकि, प्रदेश में जो आपदा दिखाई दे रही है, उसके लिए तमाम फैक्टर्स जिम्मेदार हैं. जिसमें क्लाइमेटिक फैक्टर (जलवायु कारक), एंथ्रोप्रोजनिक फैक्टर (मानवजनित कारक), ज्योमैट्रिक फैक्टर (ज्यामितीय कारक) और नेचुरल प्रोसेस (प्राकृतिक प्रक्रिया) शामिल है. ऐसे में इन तमाम फैक्टर को संबंधित संस्थान से अध्ययन कराकर रिपोर्ट देखने की जरूरत है कि किस हद तक विकास के कार्य किए जा सकते हैं.

डेवलपमेंट और नेचर को बैलेंस करके कैलाश मानसरोवर के प्राचीन मार्ग को विकसित करने की जरूरत

देहरादून (उत्तराखंड): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 अक्टूबर को उत्तराखंड आए थे. उनके एक दिवसीय पिथौरागढ़ दौरे के दौरान उन्होंने धारचूला के ज्योलिकांग प्राचीन मार्ग से कैलाश मानसरोवर के दर्शन किए थे. अब उस प्राचीन मार्ग यानी नीतीघाटी मार्ग को विकसित करने की कवायद की जा रही है. लेकिन इस क्षेत्र को विकसित किए जाने से पहले वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि उत्तराखंड के लगभग सभी पहाड़ न्यू और ग्रोइंग पहाड़ हैं. ऐसे में साइंटिफिक पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है. प्रकृति और विकास के बीच बेहतर तालमेल बनाकर ही विकास कार्य किए जाने चाहिए.

Kailash Mansarovar Yatra
कैलाश मानसरोवर के प्राचीन मार्ग को विकसित करने की पहल

दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तराखंड के जिस भी क्षेत्र में गए, उसे मोदी ट्रेल के रूप में प्रमोट किया गया. इसका असर यह रहा कि वे क्षेत्र काफी विख्यात हुए और वहां भारी संख्या में लोग पहुंचने भी लगे. इसी क्रम में 12 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड पहुंचे थे, जहां उन्होंने कैलाश मानसरोवर यात्रा के पुराने यानी प्राचीन मार्ग से कैलाश पर्वत की पूजा अर्चना और साधना की. ऐसे में संभावनाएं जताई जा रही है कि अब कैलाश मानसरोवर की यात्रा उत्तराखंड से ही यानी अपने प्राचीन मार्ग से की जा सकेगी. ऐसे में इस मार्ग के आबाद होने की प्रबल संभावनाएं हैं.
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नीतीघाटी मार्ग से होती थी कैलाश मानसरोवर यात्रा: बता दें कि नीतीघाटी मार्ग से ही साल 1954 तक कैलाश मानसरोवर की यात्रा की जाती थी. लेकिन साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद इस क्षेत्र के व्यापारियों के ना सिर्फ व्यापारिक रिश्ते खत्म हुए, बल्कि इस मार्ग से मानसरोवर यात्रा भी बंद हो गई. इसके बाद साल 1981 से भारतीय विदेश मंत्रालय और चीन सरकार के समन्वय के बाद कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) यात्रा को संचालित कर रहा है.

Kailash Mansarovar Yatra
पीएम मोदी ने 12 अक्टूबर को प्राचीन मार्ग (नीतीघाटी मार्ग) से किए कैलाश पर्वत के दर्शन.

वैज्ञानिकों के इंपैक्ट एसेसमेंट के मुताबिक ही विकास हो: नीतीघाटी मार्ग को धार्मिक पर्यटन के लिहाज से विकसित करने के सवाल पर देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्‍थान के डायरेक्टर डॉ. कालाचंद साईं ने बताया कि उत्तराखंड के पहाड़ नाजुक हैं. लिहाजा, इनको संरक्षण और सुरक्षित करने की जरूरत है. हालांकि, कैलाश मानसरोवर मार्ग के साथ ही प्रदेश के अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में तमाम पर्यटक स्थल हैं, जिसे विकसित किया गया है. लेकिन ये एक बड़ा मुद्दा है कि कितना डेवलपमेंट होना चाहिए. किस तरह से फ्रेजाइल इकोसिस्टम को मेंटेन करना चाहिए. लिहाजा, वैज्ञानिक जो इंपैक्ट एसेसमेंट करते हैं, उसके अनुसार ही विकास के कार्य होने चाहिए.
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ये फैक्टर्स आपदा के लिए जिम्मेदार: डायरेक्टर डॉ. कालाचंद साईं कहते हैं कि अगर प्रकृति और विकास को बैलेंस कर विकास करेंगे, तो बेहतर होगा. लेकिन अगर बैलेंस नहीं करते हैं तो फ्रेजाइल एनवायरमेंट (नाजुक वातावरण) पर असर पड़ता है. हालांकि, प्रदेश में जो आपदा दिखाई दे रही है, उसके लिए तमाम फैक्टर्स जिम्मेदार हैं. जिसमें क्लाइमेटिक फैक्टर (जलवायु कारक), एंथ्रोप्रोजनिक फैक्टर (मानवजनित कारक), ज्योमैट्रिक फैक्टर (ज्यामितीय कारक) और नेचुरल प्रोसेस (प्राकृतिक प्रक्रिया) शामिल है. ऐसे में इन तमाम फैक्टर को संबंधित संस्थान से अध्ययन कराकर रिपोर्ट देखने की जरूरत है कि किस हद तक विकास के कार्य किए जा सकते हैं.

Last Updated : Oct 22, 2023, 4:55 PM IST
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