ETV Bharat / bharat

सर्दियों में ग्लेशियर फटना खतरनाक संकेत, तत्काल अध्ययन की आवश्यकता - सर्दियों में ग्लेशियर फटना खतरनाक संकेत

चमोली में ग्लेशियर का फटना जो कि सर्दियों में बहुत कम होता है. हालांकि, ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालयी क्षेत्रों में तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है. वरिष्ठ पत्रकार संजीब कुमार बरुआ लिखते हैं कि हमें तत्काल अध्ययन की आवश्यकता है.

Urgent
Urgent
author img

By

Published : Feb 8, 2021, 6:57 PM IST

Updated : Feb 8, 2021, 7:25 PM IST

नई दिल्ली : जल विज्ञान और नदी इंजीनियरिंग के विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र में लगभग 8000 ग्लेशियर हैं. उन तक पहुंच के आधार पर मैपिंग करने और उनका आकलन करने की तत्काल आवश्यकता है. अन्यथा उत्तराखंड की चमोली जैसी तबाही जैसी घटनाएं नियमित रूप से अधिक से अधिक होती रहेंगी.

उत्तराखंड ने पिछले कुछ वर्षों में ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का खामियाजा भुगता है. लेकिन किसी भी सरकार ने इसके अध्ययन की सिफारिश पर कोई कार्रवाई नहीं की. ग्लोबल वार्मिंग से तापमान में वृद्धि हुई है और इससे हिमालय क्षेत्र में बर्फ पिघलने से ग्लेशियर प्रभावित हुए हैं. नतीजतन ग्लेशियर विखंडन आसानी से नदियों में गिर जाते हैं जिससे प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है. इससे हिमनद फट जाते हैं और बाढ़ आती है. उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों में हाल के दिनों में इस तरह की घटनाओं की आवृत्ति बढ़ रही है. तीन दशक तक IIT रुड़की में जल संसाधनों के विकास और प्रबंधन को पढ़ाने वाले प्रमुख नदी इंजीनियर प्रो. नयन शर्मा ने ईटीवी भारत को बताया कि ग्लेशियर बहुत धीमी गति से चलने वाली बर्फ के बड़े हिस्से हैं जो ताजे पानी के भंडार हैं.

ग्लोबल वार्मिंग का असर

सबसे खतरनाक पहलू यह है कि हिमालयी क्षेत्र में अध्ययन से पता चलता है कि सर्दियों के तापमान में वृद्धि बहुत तेजी से हुई है. सर्दियों में तापमान उतना नहीं गिरता जितना वे सर्दियों में गिरना चाहिए. शायद यह समझाना होगा कि हिमनदों के फटने (जिसे ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स भी कहा जाता है) की घटनाएं सर्दियों में हो रही हैं जब बर्फ की संरचनाएं बहुत अधिक सुसंगत होनी चाहिए. हिमालय के हिमनद (जिसे थर्ड पोल भी कहा जाता है) दुनिया भर में अधिकांश स्थानों की तुलना में अधिक तेजी से तापमान बढ़ने वाले क्षेत्र में शामिल है. यह ग्लोबल वार्मिंग के साथ सबसे गर्म स्थान है.

तेजी से बढ़ रहा तापमान

ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ हिमालय के ग्लेशियरों पर जो प्रभाव पड़ रहा है, वह यह है कि इस विशेष क्षेत्र में बहुत सारे वायुमंडलीय वायु धाराएं थर्मल ग्रैडिएंट्स और इस तरह के बनाने से मिलती हैं. बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और पूर्वी यूरोप की दिशा से वायु धाराएं यहां मिलती हैं. प्रो. ने कहा कि अल नीनो परिचलन की जटिलताओं के साथ यह एक घटना भी जटिल है. जलवायु परिवर्तन (IPCC) पर एक अंतर-सरकारी पैनल द्वारा जलवायु परिवर्तन 2014 रिपोर्ट के अनुसार विश्व स्तर पर 1880-2012 से 132 वर्षों में तापमान में औसत वृद्धि 0.85 डिग्री सेंटीग्रेड (°C) है. लेकिन हिमालयी-काराकोरम (एचके) क्षेत्र में तापमान में वृद्धि 1991-2015 से महज 24 वर्षों में 0.65 °C के साथ-साथ बर्फबारी में उल्लेखनीय कमी आई है.

यह भी पढ़ें-जल्द ही सफलता की उम्मीद, तपोवन सुरंग में फंसे लोगों को बचाने की कवायद जारी

हाल के मॉडल अनुमानों से पता चला है कि उत्सर्जन की स्थिति के आधार पर वर्तमान सदी के अंत तक तापमान में लगभग 2.36 डिग्री सेल्सियस से 5.51 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है. यदि तापमान 5.51 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है तो अतिरिक्त हिमनदों का नुकसान लगभग 27 प्रतिशत होगा.

नई दिल्ली : जल विज्ञान और नदी इंजीनियरिंग के विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र में लगभग 8000 ग्लेशियर हैं. उन तक पहुंच के आधार पर मैपिंग करने और उनका आकलन करने की तत्काल आवश्यकता है. अन्यथा उत्तराखंड की चमोली जैसी तबाही जैसी घटनाएं नियमित रूप से अधिक से अधिक होती रहेंगी.

उत्तराखंड ने पिछले कुछ वर्षों में ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का खामियाजा भुगता है. लेकिन किसी भी सरकार ने इसके अध्ययन की सिफारिश पर कोई कार्रवाई नहीं की. ग्लोबल वार्मिंग से तापमान में वृद्धि हुई है और इससे हिमालय क्षेत्र में बर्फ पिघलने से ग्लेशियर प्रभावित हुए हैं. नतीजतन ग्लेशियर विखंडन आसानी से नदियों में गिर जाते हैं जिससे प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है. इससे हिमनद फट जाते हैं और बाढ़ आती है. उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों में हाल के दिनों में इस तरह की घटनाओं की आवृत्ति बढ़ रही है. तीन दशक तक IIT रुड़की में जल संसाधनों के विकास और प्रबंधन को पढ़ाने वाले प्रमुख नदी इंजीनियर प्रो. नयन शर्मा ने ईटीवी भारत को बताया कि ग्लेशियर बहुत धीमी गति से चलने वाली बर्फ के बड़े हिस्से हैं जो ताजे पानी के भंडार हैं.

ग्लोबल वार्मिंग का असर

सबसे खतरनाक पहलू यह है कि हिमालयी क्षेत्र में अध्ययन से पता चलता है कि सर्दियों के तापमान में वृद्धि बहुत तेजी से हुई है. सर्दियों में तापमान उतना नहीं गिरता जितना वे सर्दियों में गिरना चाहिए. शायद यह समझाना होगा कि हिमनदों के फटने (जिसे ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स भी कहा जाता है) की घटनाएं सर्दियों में हो रही हैं जब बर्फ की संरचनाएं बहुत अधिक सुसंगत होनी चाहिए. हिमालय के हिमनद (जिसे थर्ड पोल भी कहा जाता है) दुनिया भर में अधिकांश स्थानों की तुलना में अधिक तेजी से तापमान बढ़ने वाले क्षेत्र में शामिल है. यह ग्लोबल वार्मिंग के साथ सबसे गर्म स्थान है.

तेजी से बढ़ रहा तापमान

ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ हिमालय के ग्लेशियरों पर जो प्रभाव पड़ रहा है, वह यह है कि इस विशेष क्षेत्र में बहुत सारे वायुमंडलीय वायु धाराएं थर्मल ग्रैडिएंट्स और इस तरह के बनाने से मिलती हैं. बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और पूर्वी यूरोप की दिशा से वायु धाराएं यहां मिलती हैं. प्रो. ने कहा कि अल नीनो परिचलन की जटिलताओं के साथ यह एक घटना भी जटिल है. जलवायु परिवर्तन (IPCC) पर एक अंतर-सरकारी पैनल द्वारा जलवायु परिवर्तन 2014 रिपोर्ट के अनुसार विश्व स्तर पर 1880-2012 से 132 वर्षों में तापमान में औसत वृद्धि 0.85 डिग्री सेंटीग्रेड (°C) है. लेकिन हिमालयी-काराकोरम (एचके) क्षेत्र में तापमान में वृद्धि 1991-2015 से महज 24 वर्षों में 0.65 °C के साथ-साथ बर्फबारी में उल्लेखनीय कमी आई है.

यह भी पढ़ें-जल्द ही सफलता की उम्मीद, तपोवन सुरंग में फंसे लोगों को बचाने की कवायद जारी

हाल के मॉडल अनुमानों से पता चला है कि उत्सर्जन की स्थिति के आधार पर वर्तमान सदी के अंत तक तापमान में लगभग 2.36 डिग्री सेल्सियस से 5.51 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है. यदि तापमान 5.51 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है तो अतिरिक्त हिमनदों का नुकसान लगभग 27 प्रतिशत होगा.

Last Updated : Feb 8, 2021, 7:25 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.