नई दिल्ली: संसद के मानसून सत्र से पहले समान नागरिक संहिता (UCC) को लेकर बहल छिड़ी हुई है. पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश के दौरे पर यूसीसी को लेकर बड़ा बयान दिया था. इसको लेकर राष्ट्रवादी मुस्लिम पसमांदा समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष आतिफ रशीद ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की है. उन्होंने कहा है कि हम यूसीसी पर अफवाहों को दबाने के लिए पसमांदाओं के प्रति एक अखिल भारतीय अभियान शुरू कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जो लोग यूसीसी का विरोध कर रहे हैं, वे ही तीन तलाक और बहुविवाह का समर्थन करते हैं.
प्रश्न-1. समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर आपका क्या कहना है?
उत्तर- यूसीसी के खिलाफ अफवाहें और झूठ फैलाया जा रहा है. मेरा मानना है कि यूसीसी पर सरकार की ओर से, भाजपा की ओर से और जिम्मेदार मुसलमानों की ओर से स्पष्टीकरण होना चाहिए. लोग अपने राजनीतिक लाभ के लिए यूसीसी को अपने उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे मुझे लगता है कि इससे कोई फायदा नहीं होगा. ये वही लोग हैं जिन्होंने तीन तलाक पर रुकावटें पैदा कीं लेकिन सरकार ने कानून पारित कर दिया. अब आप ही बताइए, क्या किसी मुसलमान की जिंदगी बदली या खराब हुई? गोवा में एक यूसीसी है, जहां मुस्लिम भी रहते हैं. उदाहरण के लिए यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया को लें, वहां लाखों मुसलमान रहते हैं लेकिन इन सभी देशों में यूसीसी है.
प्रश्न-2. लेकिन रिपोर्टों में कहा गया है कि सरकार ने आदिवासियों और ईसाइयों को यूसीसी से छूट का आश्वासन दिया है, क्योंकि उत्तर-पूर्व, छत्तीसगढ़, झारखंड और अन्य कई आदिवासी संगठनों ने यूसीसी का विरोध किया है?
उत्तर- तो फिर यह यूसीसी कैसे हो सकता है? ऐसी चयनात्मकता क्यों? यूसीसी सभी के लिए होना चाहिए और सभी को स्वीकार करना चाहिए.
प्रश्न-3. एआईएमपीएलबी, जमीयत उलेमा और अन्य मुस्लिम संगठन यूसीसी का कड़ा विरोध करते रहे हैं?
उत्तर- मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि वे इसका विरोध क्यों कर रहे हैं, जबकि इसका मसौदा अभी तक जनता के सामने नहीं आया है. मुझे खुशी होती अगर वे स्वयं बिना कोई बयान दिए यूसीसी पर अपने विचार आयोग को सौंप देते. सभी को यह समझना चाहिए कि यह यूनियन मुस्लिम कोड नहीं है ! इसलिए, मुसलमानों को यूसीसी से डरना नहीं चाहिए और इस विकास को एकरूपता और न्याय लाने के लिए सरकार की एक सकारात्मक पहल के रूप में देखना चाहिए।.
प्रश्न-4. 2018 में भारत के विधि आयोग ने कहा कि यूसीसी 'इस स्तर पर न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है.' आप अनुच्छेद-44 की बात करते हैं लेकिन यूसीसी पर डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि यह जरूरी है लेकिन जब तक देश सामाजिक रूप से तैयार न हो जाए तब तक इसे स्वैच्छिक रहना चाहिए? क्या यह सही समय है?
उत्तर- यूसीसी लागू करने के लिए माहौल बिल्कुल ठीक है. आपत्ति क्या है? हम खुद ही अफवाहों पर यकीन करके बखेड़ा खड़ा कर रहे हैं. क्या सिर्फ विरोध के लिए हर बात का विरोध करना जरूरी है? अगर मैं खुद ही यूसीसी का विरोध करने लगूं तो क्या होगा? इसका कोई उद्देश्य नहीं होगा और केवल मूड खराब होगा.
प्रश्न-5. आप कह रहे हैं कि यूसीसी लाने का यही सही समय है लेकिन हम मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक घटनाएं, नफरत भरे भाषण और हिंसा देख रहे हैं. क्या यह सचमुच अच्छा समय है? आप कह रहे हैं कि मुसलमानों को बीजेपी पर भरोसा करना चाहिए, क्या वे वाकई पार्टी से खुश हैं?
उत्तर- भारत में मुसलमान भी बीजेपी से खुश हैं. किसी को उन मुसलमानों से पूछना चाहिए जो अब सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं और मुफ्त सिलेंडर, पक्का घर और अन्य चीजें पा रहे हैं.
प्रश्न-6. क्या आपत्ति दर्ज कराना या विरोध करना बुरा है?
उत्तर- नहीं, लेकिन क्या सिर्फ अपना विरोध जताने के लिए हर बात का विरोध करना जरूरी है.आप किस बात का विरोध कर रहे हैं? CAA के खिलाफ लोगों ने कई दिनों तक विरोध प्रदर्शन किया कि इससे मुसलमानों की नागरिकता छिन जाएगी. अफवाह फैलाई जा रही थी लेकिन क्या सीएए ने किसी की नागरिकता छीनी लेकिन विडंबना यह है कि इसने पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक उत्पीड़कों को नागरिकता प्रदान कर दी. इस तरह के विरोध प्रदर्शन, अफवाहें केवल मूड खराब करती हैं. किसी भी मुसलमान से पूछो कि तुम यूसीसी का विरोध क्यों कर रहे हो? वे कहेंगे कि उनके धार्मिक या सांस्कृतिक अधिकार छीन लिये जायेंगे जो कि पूरी तरह झूठ है. सबसे खास बात यह है कि जो लोग 4 महिलाओं से शादी करते थे, वे अब सिर्फ 1 से ही शादी कर पाएंगे.
प्रश्न-7. राष्ट्रवादी मुस्लिम पसमांदा महाज के अध्यक्ष के रूप में आप यूसीसी के बारे में जानकारी फैलाने के लिए पसमांदा तक एक अखिल भारतीय अभियान शुरू कर रहे हैं.क्या आप हमें इस अभियान के बारे में और बता सकते हैं?
उत्तर- हां, हम यूसीसी पर गलत सूचना को दूर करने के लिए देशभर में पसमांदा समाज तक पहुंच कर रहे हैं और दूरदराज के हिस्सों में भी सभी पसमांदाओं से जुड़ने का प्रयास करेंगे. हम जल्द ही इस महीने में लखनऊ से शुरू होने वाले अपने पहले कार्यक्रम के साथ इस अभियान की शुरुआत करेंगे. आपको बता दें कि 15 फीसदी अशरफ मुसलमानों में भी 15 फीसदी लोग ऐसे होंगे जो तीन तलाक और बहुविवाह में विश्वास रखते हैं लेकिन अब 85 फीसदी मुसलमान गुमराह नहीं होंगे और सड़क पर नहीं उतरेंगे.
हलाला, बहुविवाह और तीन तलाक के समर्थन में मुसलमानों की संख्या पर जनमत संग्रह कराया जाना चाहिए. ऐसा मानने वाले ऐसे लोग सिर्फ मूड खराब कर रहे हैं. गुप्त राजनीतिक उद्देश्यों के लिए मुसलमानों को शिक्षा, ज्ञान से दूर रखा गया और वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया गया लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. भारत में रहने वाले मुसलमानों में 85% पसमांदा हैं लेकिन उनके प्रतिनिधित्व के बारे में क्या? आज तक सिर्फ 40 पसमांदा मुसलमान ही संसद में आये हैं.
हमें याद रखना चाहिए कि इन 15% में से कई लोग ऐसे थे जिन्होंने पोलियो ड्रॉप्स का विरोध करते हुए कहा था कि इससे आदमी नपुंसक हो जाएगा. फिर अफवाहों को शांत करने के लिए सरकार को मौलानाओं से बात करनी पड़ी.
प्रश्न-8. आप प्रतिनिधित्व की बात कर रहे हैं, कैबिनेट या संसद में कितने मुसलमान हैं?
उत्तर- संसद में मुस्लिमों की हिस्सेदारी उनके द्वारा डाले गए वोटों के बराबर होती है. चीजें गिव एंड टेक पर काम करती हैं. मुसलमानों को बीजेपी पर भरोसा करना चाहिए. आप मुझे बताएं कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कितने मुसलमानों ने कांग्रेस को वोट दिया और वहां उन्हें कितनी सीटें दी जा रही हैं. प्रतिनिधित्व के आधार पर हमने मुसलमानों को 10 लोकसभा सीटें दीं लेकिन वे सभी सीटों पर हार गए.