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Uniform Civil Code: यूनिफॉर्म सिविल कोड की राह में रोड़े, भाजपा के सामने क्या हैं चुनौतियां? - समान नागरिक संहिता के पक्षधर

बीजेपी, यूनिफॉर्म सिविल कोड के मुद्दे पर काफी गंभीर है मगर इस राह में उसके लिए चुनौतियां काफी हैं. वैसे तो पार्टी इस पर पूरा माहौल तैयार कर रही है मगर पार्टी के लिए इस मुद्दे पर समर्थन जुटाना बड़ी चुनौती है क्योंकि सिर्फ विपक्षी पार्टियां ही नहीं बल्कि कुछ राज्यों के गठबंधन की पार्टियां भी इसपर बीजेपी को समर्थन देने को तैयार नहीं. आइए जानते हैं यूसीसी पर ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की इस रिपोर्ट में..

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Published : Jul 1, 2023, 8:31 PM IST

नई दिल्ली: यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता, जो आजकल राजनीतिक सियासत में चर्चा का मुख्य विषय बना हुआ है और देश की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के एजेंडे में भी सबसे ऊपर है मगर इसकी राह में कई रोड़े हैं, जिनमें खासतौर पर आदिवासी समुदायों और पूर्वोत्तर के राज्यों में है.

वैसे तो कांग्रेस ने अभी तक इसपर अपनी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं की है, वहीं मुस्लिम संगठन और राजनीतिक पार्टियां इसका विरोध कर रहीं हैं. मगर पीएम मोदी के द्वारा भोपाल की रैली में ये साफ तौर पर कहे जाने के बाद कि देश में एक कानून लागू करने का सुप्रीम कोर्ट का दबाव उनपर है. बीजेपी ने अपने राजनीतिक एजेंडे तय कर लिए हैं और कांग्रेस के लिए ये स्थिति कुछ ऐसी है कि ना तो वो विरोध कर पा रही है और ना ही समर्थन. वहीं कुछ विरोधी पार्टियां जिनमें आम आदमी पार्टी ने समान नागरिक संहिता पर खुलकर समर्थन का ऐलान कर दिया है और इस मुद्दे पर वो मोदी सरकार के साथ कदम-ताल करती नजर आ रही है. वहीं शिवसेना उद्धव गुट ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, जबकि डीएमके पुरजोर विरोध कर रही है. इसी तरह जेडीयू और राजद ने भी विरोध करते हुए इसे महंगाई और बेरोजगारी से ध्यान भटकाने का मोदी सरकार का एजेंडा तक बता दिया. वहीं एमआइएम जैसी पार्टियां इस मुद्दे पर पहले से ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विरोध जता रहीं हैं.

ये तो थी विरोधियों की बात मगर मोदी सरकार के सामने यूसीसी के मुद्दे आर समर्थन जुटाना कुछ अपने ही गठबंधन की पार्टियों से मुश्किल हो रहा है और मुख्य तौर पर वो पार्टियां पूर्वोत्तर की हैं, जो भाजपा गठबंधन में सरकार चला रही है. उदाहरण के तौर पर मिजोरम में एमएनएफ जो बीजेपी की सहयोगी पार्टी है, वो पहले ही इस मुद्दे पर अपनी अलग राय बता चुकी है और पीछे हट चुकी है. कुछ ही महीनों में इस राज्य में चुनाव है और पार्टी एमएनफ के साथ मिलकर चुनाव दोबारा भी लड़ना चाहती है. ऐसे में पार्टी अपने सहयोगी को कैसे मनाएं, इस कश्मकश में हैं. विरोध यहाँ तक कि वहां विधानसभा में साल के शुरुआत में ही सर्वसम्मति से यूसीसी पास नहीं करने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया.

इसी तरह आदिवासी बहुल इलाका मणिपुर में भी इसका विरोध हो रहा है और वहां की संस्था, जो आदिवासियों के लिए काम करती है और जो लगभग 11 करोड़ आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है, उसने अपनी संस्कृति और बहु-विवाह का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट तक में गुहार लगाई थी.

वैसे तो श्री राम मंदिर निर्माण, आर्टिकल 370 हटाना और समान नागरिक संहिता पहले से ही बीजेपी के एजेंडे में शामिल रहा है, जिनमें से दो पूरे हो चुके हैं और अब प्रधानमंत्री ने तीसरे की बात छेड़ दी है. ये मुद्दा कांग्रेस जैसी पार्टियों के लिए भी गले की हड्डी बन गया है क्योंकि देश में 2014 के बाद से राजनीति का माहौल बदल चुका है और जो अल्पसंख्यक पहले हर चुनाव के वोट बैंक और एजेंडा हुआ करते थे, आज वो बहुसंख्यक में बदल गए हैं. अब कांग्रेस जैसी पार्टियां भी मात्र अल्पसंख्यक के एजेंडे पर चुनाव लड़ने का रिस्क नहीं ले सकती और पीएम के भोपाल में दिए भाषण से पहले ही लॉ कमीशन यूसीसी पर आमलोगों की राय 14 जुलाई तक देने की अपील कर चुका है. सूत्रों की मानें तो सितंबर तक G20 की बैठकें हैं और इस दौरान सरकार कोई हंगामा नहीं चाहती. इसलिए इस एजेंडे पर अभी गति धीमी है, सूत्रों की मानें तो इसके बाद पार्टी पूरी तरह अपने एजेंडे पर आ जाएगी ताकि लोकसभा से पहले राज्यों में इस मुद्दे पर लिटमस टेस्ट हो सके.

इस मुद्दे पर पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल का कहना है कि यूसीसी भाजपा आज से नहीं शुरू से अपने एजेंडे में कहती आई है और पीएम ने बताया भी कि इस पर अदालत का भी दबाव है क्योंकि एक देश एक विधान काफी जरूरी है. अब ये कैसे और कब होना है इसपर लॉ कमीशन अपना काम कर रहा है, इसमें पार्टी का कोई काम नहीं.

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नई दिल्ली: यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता, जो आजकल राजनीतिक सियासत में चर्चा का मुख्य विषय बना हुआ है और देश की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के एजेंडे में भी सबसे ऊपर है मगर इसकी राह में कई रोड़े हैं, जिनमें खासतौर पर आदिवासी समुदायों और पूर्वोत्तर के राज्यों में है.

वैसे तो कांग्रेस ने अभी तक इसपर अपनी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं की है, वहीं मुस्लिम संगठन और राजनीतिक पार्टियां इसका विरोध कर रहीं हैं. मगर पीएम मोदी के द्वारा भोपाल की रैली में ये साफ तौर पर कहे जाने के बाद कि देश में एक कानून लागू करने का सुप्रीम कोर्ट का दबाव उनपर है. बीजेपी ने अपने राजनीतिक एजेंडे तय कर लिए हैं और कांग्रेस के लिए ये स्थिति कुछ ऐसी है कि ना तो वो विरोध कर पा रही है और ना ही समर्थन. वहीं कुछ विरोधी पार्टियां जिनमें आम आदमी पार्टी ने समान नागरिक संहिता पर खुलकर समर्थन का ऐलान कर दिया है और इस मुद्दे पर वो मोदी सरकार के साथ कदम-ताल करती नजर आ रही है. वहीं शिवसेना उद्धव गुट ने भी इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, जबकि डीएमके पुरजोर विरोध कर रही है. इसी तरह जेडीयू और राजद ने भी विरोध करते हुए इसे महंगाई और बेरोजगारी से ध्यान भटकाने का मोदी सरकार का एजेंडा तक बता दिया. वहीं एमआइएम जैसी पार्टियां इस मुद्दे पर पहले से ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विरोध जता रहीं हैं.

ये तो थी विरोधियों की बात मगर मोदी सरकार के सामने यूसीसी के मुद्दे आर समर्थन जुटाना कुछ अपने ही गठबंधन की पार्टियों से मुश्किल हो रहा है और मुख्य तौर पर वो पार्टियां पूर्वोत्तर की हैं, जो भाजपा गठबंधन में सरकार चला रही है. उदाहरण के तौर पर मिजोरम में एमएनएफ जो बीजेपी की सहयोगी पार्टी है, वो पहले ही इस मुद्दे पर अपनी अलग राय बता चुकी है और पीछे हट चुकी है. कुछ ही महीनों में इस राज्य में चुनाव है और पार्टी एमएनफ के साथ मिलकर चुनाव दोबारा भी लड़ना चाहती है. ऐसे में पार्टी अपने सहयोगी को कैसे मनाएं, इस कश्मकश में हैं. विरोध यहाँ तक कि वहां विधानसभा में साल के शुरुआत में ही सर्वसम्मति से यूसीसी पास नहीं करने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया.

इसी तरह आदिवासी बहुल इलाका मणिपुर में भी इसका विरोध हो रहा है और वहां की संस्था, जो आदिवासियों के लिए काम करती है और जो लगभग 11 करोड़ आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है, उसने अपनी संस्कृति और बहु-विवाह का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट तक में गुहार लगाई थी.

वैसे तो श्री राम मंदिर निर्माण, आर्टिकल 370 हटाना और समान नागरिक संहिता पहले से ही बीजेपी के एजेंडे में शामिल रहा है, जिनमें से दो पूरे हो चुके हैं और अब प्रधानमंत्री ने तीसरे की बात छेड़ दी है. ये मुद्दा कांग्रेस जैसी पार्टियों के लिए भी गले की हड्डी बन गया है क्योंकि देश में 2014 के बाद से राजनीति का माहौल बदल चुका है और जो अल्पसंख्यक पहले हर चुनाव के वोट बैंक और एजेंडा हुआ करते थे, आज वो बहुसंख्यक में बदल गए हैं. अब कांग्रेस जैसी पार्टियां भी मात्र अल्पसंख्यक के एजेंडे पर चुनाव लड़ने का रिस्क नहीं ले सकती और पीएम के भोपाल में दिए भाषण से पहले ही लॉ कमीशन यूसीसी पर आमलोगों की राय 14 जुलाई तक देने की अपील कर चुका है. सूत्रों की मानें तो सितंबर तक G20 की बैठकें हैं और इस दौरान सरकार कोई हंगामा नहीं चाहती. इसलिए इस एजेंडे पर अभी गति धीमी है, सूत्रों की मानें तो इसके बाद पार्टी पूरी तरह अपने एजेंडे पर आ जाएगी ताकि लोकसभा से पहले राज्यों में इस मुद्दे पर लिटमस टेस्ट हो सके.

इस मुद्दे पर पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल का कहना है कि यूसीसी भाजपा आज से नहीं शुरू से अपने एजेंडे में कहती आई है और पीएम ने बताया भी कि इस पर अदालत का भी दबाव है क्योंकि एक देश एक विधान काफी जरूरी है. अब ये कैसे और कब होना है इसपर लॉ कमीशन अपना काम कर रहा है, इसमें पार्टी का कोई काम नहीं.

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