नई दिल्ली / गोड्डा / ग्वालियर / बठिंडा : रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध (ukraine russia war) यूक्रेन में विदेश मंत्रालय से मिलने वाली मदद और ऑपरेशन गंगा के संदर्भ में छात्रों को आज भी कई आशंकाएं हैं. मध्य प्रदेश, पंजाब और झारखंड के इन छात्रों ने ईटीवी भारत को बताया कि आखिर क्यों मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए इंडियन स्टूडेंट्स की पसंद यूक्रेन जैसा देश है. विदेश जाकर मेडिकल की पढ़ाई कर रहे इन छात्रों के सामने भविष्य को लेकर भी अनिश्चितता का माहौल है. ऑपरेशन गंगा के तहत सकुशल भारत लौटे दो छात्र- हर्षाली राजे और निखिल कुरेचिया ग्वालियर पहुंचे. दोनों छात्र यूक्रेन के अलग-अलग शहर में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे. इन दोनों का कहना है कि अचानक से यूक्रेन पर रूस ने हमला कर दिया, जिससे वह डिप्रेशन में थे, लेकिन भारत सरकार की मदद से वह पहले ओरोमिया बॉर्डर पहुंचे. इसके बाद भारत की फ्लाइट मिली. ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत में इन छात्रों ने कहा कि सबसे बड़ी चिंता अपने दोस्तों की हो रही है, क्योंकि वह अभी भी कई ऐसे इलाकों में फंसे हुए हैं. जहां पर कोई मदद नहीं मिल पा रही है. (indian student stuck in ukraine)
20 किमी पैदल चलकर बॉर्डर पर पहुंचे
यूक्रेन से लौटे हर्षाली राजे और निखिल ने बताया कि इस समय युद्ध के कारण हालात भयावह हैं, लगातार हो रही गोलाबारी की वजह से यूक्रेन मलबे में तब्दील हो चुका है. दोनों छात्रों ने बताया भारत वापस आ रहे बच्चों (indians evacuation from ukraine) के पास खाने-पीने से लेकर सर्दी से बचने का भी कोई उपाय नहीं हैं. उनका कहना है कि जिस तरीके से यूक्रेन के हालात हैं, और यूक्रेन के प्रति भारत का जो रवैया है, उससे नहीं लगता कि हम लोग यूक्रेन गए भी तो वहां के लोग दोबारा हमको स्वीकार करेंगे. निखिल ने बताया की बॉर्डर पर बच्चों के साथ मारपीट भी की गई. उनके दोस्त को भी पीटा गया.
अब भविष्य की चिंता
हर्षाली राजे ने कहा कि हम भाग्यशाली हैं कि घर सुरक्षित पहुंच गए. अब सबसे बड़ी चिंता हमारी भविष्य को लेकर है. जिस तरह से यूक्रेन के हालात काफी भयावह हो चुके हैं, अब नहीं लगता कि हम दोबारा से अपनी पढ़ाई सुचारू रूप से शुरू करने के लिए वहां पहुंच पाएंगे. लगातार युद्ध के कारण हालात काफी बुरे हो चुके हैं. ऐसे में अब छात्रों को भी काफी डर लग रहा है. हर्षाली ने बताया कि रूस और यूक्रेन की सेनाओं का व्यवहार भेदभावपूर्ण था. उन्होंने कहा कि भारत, नाइजीरिया के लोगों को प्राथमिकता के आधार पर सीमा पार नहीं कराई जा रही थी, ऐसे में लगा कि भारत के लोगों को ढाल की तरह प्रयोग किया जा रहा है. जिस तरीके से कहा जा रहा है कि भारत यूक्रेन की मदद नहीं कर रहा है, ऐसे में अब यूक्रेन भारतीय छात्रों के लिए सही नहीं है. उन्होंने छात्रों की पढ़ाई पूरी करने और मेडिकल की डिग्री हासिल करने में सरकार से मदद की अपील भी की.
भारत में जितनी एक साल की फी, यूक्रेन में उतने में डिग्री
यूक्रेन जाने की ललक के सवाल पर ऑपरेशन गंगा के तहत भारत पहुंचीं मेडिकल की छात्रा हर्षाली राजे ने बताया, मेडिकल छात्रों का यूक्रेन जाने का मुख्य उद्देश्य है, नीट का एग्जाम पास करने के बाद भी उन्हें कॉलेज में सीट नहीं मिल पाती है. मेडिकल की पढ़ाई हर जगह समान है, लेकिन इंडिया में मेडिकल कॉलेज और सीट कम होने के कारण छात्रों को दूसरे देशों में डिग्रियां लेने के लिए जाना पड़ता है. इंडिया में जो प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं उनकी फीस इतनी ज्यादा है कि वह अफोर्ड नहीं कर पाते हैं. इंडिया में एक साल की फीस है, जितने में छात्र विदेश से मेडिकल की पूरी डिग्री हासिल कर लेता है.
बेटी सुरक्षित, पिता को सता रही लोन की चिंता
मध्य प्रदेश के ही नर्मदापुरम में आयुषी भी यूक्रेन से लौटी हैं. आयुषी के पिता रामप्रकाश बेटी के सुरक्षित घर पहुंचने पर खुश हैं. बेटी को डॉक्टर बनाने के लिए उन्होंने एजुकेशन लोन के लिए 20 लाख रुपए बैंक से कर्ज लिए हैं. बेटी के सुरक्षित घर पहुंचने पर उन्होंने मोदी सरकार की जमकर सराहना भी की. हालांकि, आयुषी के एजुकेशन लोन को लेकर पिता काफी चिंतित हैं. आयुषी टेरनोपिल स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी में मेडिकल की थर्ड ईयर की पढ़ाई कर रही थीं.
हंगरी सीमा से लौटीं झारखंड की श्रुति (ukraine crisis students of jharkhand)
यूक्रेन संकट के बीच सरकार की ओर से चलाए गए ऑपरेशन गंगा के झारखंड के गोड्डा जिले में रहने वाली छात्रा श्रुति सुमन भी सकुशल अपने घर पहुंची. श्रुति सुमन तो सुरक्षित घर वापस लौट आईं, लेकिन यूक्रेन में गोड्डा के 11 छात्र अब भी फंसे हुए हैं. युद्धग्रस्त यूक्रेन से घर पहुंचने के बाद श्रुति सुमन ने बताया कि युद्ध शुरू होने के बाद छात्रों की हालत बुरी हो गई है. उसने बताया कि वो किसी तरह मिनी बस से हंगरी बॉर्डर पहुंची फिर वहां से इंडियन फ्लाइट से दिल्ली और फिर रांची होते हुए गोड्डा पहुंची. श्रुति सुमन यूक्रेन के विनित्सा नेशनल यूनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी.
जगकर गुजरी पांच रातें
युद्धग्रस्त यूक्रेन के अनुभवों पर श्रुति ने बताया, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद 5 दिन के अनुभव काफी बुरे रहे. उन्होंने बताया कि हर रात 10 बजे वे बंकर में चली जाती थीं. पूरी रात जगकर गुजारनी पड़ती थी. 15 से 20 छात्र-छात्रा बंकर में शरण लिए हुए थे. यूक्रेन में सबसे बड़ी चुनौती खाने की व्यवस्था करने की थी. उन्होंने कहा कि कई जगहों पर छात्रों के पास ठंड से बचने के इंतजाम नहीं हैं. इनके बारे में सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए. उन्होंने छात्रों के जल्द इवैक्यूएशन की अपील भी की.
बठिंडा के छात्र ने बताया- पैदल चलने को मजबूर हैं बच्चे
यूक्रेन से पंजाब लौटने की कोशिश में जुटे दीपवसु ने बताया कि यूक्रेन में भारतीयों को ट्रेन में चढ़ने की इजाजत नहीं दी जा रही थी. दूतावास से कोई मदद नहीं मिली. पंजाब के बठिंडा में रहने वाले दीपवसु ने अपनी मां के साथ एक वीडियो कॉल के दौरान बताया कि खारकीव में संकट बढ़ने के बाद उन्होंने बॉर्डर की ओर जाने का फैसला लिया, लेकिन ट्रेन में चढ़ने की अनुमति नहीं मिली. मां ने पूछा कि भारत सरकार रूस बॉर्डर खुलने की बात कह रही है, ऐसे में वह क्या करेगा ? दीपवसु ने कहा, सरकार की ओर से मिलने वाले निर्देश का इंतजार कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि स्थानीय लोगों की ओर से उनके खाने-पीने का इंतजाम किया जा रहा है. बड़ी संख्या में छात्र पैदल यात्रा करने पर मजबूर हैं.
सरकार की ओर से मिलने वाली मदद के सवाल पर बठिंडा के दीपवसु ने कहा, छात्र अपने खर्चे पर यूक्रेन के पड़ोसी देशों की सीमा की ओर जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हर बच्चे से लगभग 500 डॉलर लिए जा रहे हैं. रूस की सीमा खुलने में विलंब को लेकर दीपवसु ने कहा, उन्हें करीब 1300 किमी लवीव की ओर ले जाया जा रहा है.
सरकार के बयान
गौरतलब है कि इन छात्रों के अनुभव से इतर विदेश मंत्रालय ने सरकार की ओर से आधिकारिक बयान जारी कर छात्रों को बंधक बनाने के आरोपों का खंडन कर चुकी है. गत तीन मार्च को एक बयान में विदेश मंत्रालय ने कहा, भारतीय दूतावास अपने नागरिकों से सतत सम्पर्क बनाये हुए है और किसी छात्र के बंधक बनाए जाने जैसी कोई रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि यूक्रेन में हमारे दूतावास भारतीय नागरिकों के साथ लगातार संपर्क में है. यूक्रेनी अधिकारियों के सहयोग से कई छात्रों ने खारकीव छोड़ दिया है. उन्होंने कहा कि अभी तक हमें किसी छात्र को बंधक बनाए जाने संबंधित कोई सूचना नहीं मिली है.
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विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने नागरिकों की सुविधा के लिए किए गए प्रयासों का जिक्र किया और कहा, कीव में दूतावास को भारतीय नागरिकों द्वारा सीमा पार करने की सुविधा के लिए लवीव में एक अस्थायी कार्यालय स्थापित करने के लिए कहा गया है. बागची ने बताया था भारतीय पासपोर्ट खोने वालों को आपातकालीन प्रमाणपत्र जारी करने के लिए एक तंत्र स्थापित किया गया है, जिससे कई भारतीय छात्रों को मदद मिलेगी. बागची ने कहा, 'हम वहां फंसे नागरिकों को निकालने में सहायता के लिए पूर्वी यूक्रेन पहुंचने के विकल्प तलाश रहे हैं. हम देख रहे हैं कि क्या हमारी टीमें वहां पहुंच सकती हैं? यह आसान नहीं है, क्योंकि रास्ता हर समय खुला नहीं रहता है.'