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लखनऊ नगर निगम में सफाई कर्मचारी की जान की कीमत सिर्फ 1200 रुपये...

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Published : Mar 30, 2022, 7:42 PM IST

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ (Lucknow capital city of Uttar Paradesh) में मंगलवार को सफाई के लिए सीवर में उतरे दो कर्मचारियों को अपनी जान गंवानी पड़ी. इन्हें बिना किसी सुरक्षा उपकरण के सीवर में उतार दिया गया. यह पहला मामला नहीं है, जब सीवर ने किसी कर्मचारी की जान ली है. नगर निगम, निजी कम्पनी और ठेकेदारों की धांधली और मुनाफाखोरी के कारण हर वक्त सफाई कर्मचारी अपनी जान जोखिम में डालते हैं.

Lucknow capital city of Uttar Paradesh
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ

लखनऊः उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में सीवर में उतरकर सफाई करने वाले कर्मचारी की जान की कीमत 1200 रुपए से भी कम है. यह सुनने में अटपटा जरूर लगेगा लेकिन सच है. स्थाई संविदा एवं ठेका सफाई कर्मचारी संघ का दावा है कि सीवर में उतरकर सफाई करने वाले कर्मचारी के सुरक्षा उपकरणों की कीमत सिर्फ 1200 रुपए है. अगर यह उपकरण कर्मचारियों को दे दिए जाए तो उसे जान नहीं गंवानी पड़ेगी. इन उपकरणों की खरीद में नगर निगम और निजी संस्था के घोटाले के कारण सफाई कर्मचारियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है.
ETV Bharat की टीम ने जब इस दावे की पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले सच सामने आए. पड़ताल में सामने आया कि कर्मचारियों की सुरक्षा के नाम पर लखनऊ नगर निगम, कार्यदायी संस्था और ठेकेदारों के स्तर पर करोड़ों रुपए के उपकरण खरीदे जा रहे हैं. लेकिन, सफाई कर्मचारियों तक यह उपकरण नहीं पहुंच रहे हैं. लखनऊ नगर निगम में सफाई कर्मचारियों की संख्या करीब 12 हजार है. इनमें, करीब 8 हजार आउटसोर्सिंग से हैं. 1200 संविदा कर्मी और बाकी नगर निगम के कर्मचारी हैं.
नगर निगम ने खुद पकड़ा घोटाला: लखनऊ नगर निगम ने बीते दिनों खुद स्वीकार किया कि उपकरण की खरीद के नाम पर घोटाला हुआ है. घोटाला 2021 से 2022 के बीच का है. नगर निगम की जांच में सामने आया कि सफाई उपकरण खरीदने के नाम पर निगम अधिकारियों व निजी संस्थाओं ने मिलीभगत से 5.54 करोड़ का गोलमाल किया है. इस पैसे से नगर निगम में सफाई के लिए इस्तेमाल होने वाले झाड़ू, पंजा, फावड़ा, जूता जैसे उपकरण खरीदे जाने थे. इन उपकरणों के नाम पर 5.54 करोड़ रुपए निकाल लिए गए लेकिन, सामान खरीदा गया या नहीं उसकी कोई जानकारी दर्ज नहीं की गई. बिल और वाउचर भी नहीं लगाए गए हैं. इसको खुद नगर आयुक्त ने पकड़ा है. गौरतलब है कि निगम निजी एजेंसियों को सालाना करीब 111 करोड़ रुपए का भुगतान करता है. इस राशि में से उन्हें उपकरण खरीद के लिए 5% का अतिरिक्त भुगतान किया जाता है. उधर, अब नगर निगम के तरफ से खुद उपकरण उपलब्ध कराने की बात की जा रही है.

पढ़ें : हाथ से मैला साफ करने के कारण कोई मौत नहीं, जवाब से मानवाधिकार कार्यकर्ता खफा
यह है जमीनी हकीकत : स्थाई संविदा एवं ठेका सफाई कर्मचारी संघ के महासचिव मनोज कुमार धानुक ने बताया कि सीवर में उतरने वाले सफाई कर्मचारी की सुरक्षा किट करीब 1200 रुपए की आती है. जिसमें, मास्क से लेकर दूसरी आवश्यक उपकरण शामिल हैं. इसके नाम पर करोड़ों का खेल हो रहा है. किसी भी संस्था ने अपने कर्मचारियों को यह उपलब्ध नहीं कराई है. कर्मचारियों को बिना सुरक्षा उपकरणों के उतारा जा रहा है. इसी का नतीजा है कि बीते कई वर्षों में सफाई कर्मी अपनी जान गंवा रहे हैं.
इन्होंने भी गंवाई है जान : सीवर में घुसकर हाथ से नालों की सफाई करते हुए सैकड़ों लोगों ने जान गंवाई है. केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की संस्था राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के इससे जुड़े आंकड़े डराने वाले हैं. आंकड़ों के मुताबिक, 2010 से मार्च 2020 तक सीवर सफाई के दौरान 631 लोगों की मौत हुई. 2019 में सीवर में उतरे 110 लोगों ने जान गंवाई. यह आंकड़ा 2018 में 68 और 2017 में 193 रहा.

यह है नियम : मैनुअल स्‍कैवेंजिंग एक्‍ट 2013 के तहत किसी भी व्‍यक्ति को उतारना पूरी तरह गैर-कानूनी है. इस पर रोक का प्रावधान है. किसी परिस्थिति में उतारना भी पड़ता है तो जो व्‍यक्ति सीवर की सफाई के लिए उतर रहा है, उसे ऑक्सिजन सिलेंडर, स्‍पेशल सूट, मास्‍क, सेफ्टी उपकरण इत्‍यादि देना जरूरी है.

लखनऊः उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में सीवर में उतरकर सफाई करने वाले कर्मचारी की जान की कीमत 1200 रुपए से भी कम है. यह सुनने में अटपटा जरूर लगेगा लेकिन सच है. स्थाई संविदा एवं ठेका सफाई कर्मचारी संघ का दावा है कि सीवर में उतरकर सफाई करने वाले कर्मचारी के सुरक्षा उपकरणों की कीमत सिर्फ 1200 रुपए है. अगर यह उपकरण कर्मचारियों को दे दिए जाए तो उसे जान नहीं गंवानी पड़ेगी. इन उपकरणों की खरीद में नगर निगम और निजी संस्था के घोटाले के कारण सफाई कर्मचारियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है.
ETV Bharat की टीम ने जब इस दावे की पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले सच सामने आए. पड़ताल में सामने आया कि कर्मचारियों की सुरक्षा के नाम पर लखनऊ नगर निगम, कार्यदायी संस्था और ठेकेदारों के स्तर पर करोड़ों रुपए के उपकरण खरीदे जा रहे हैं. लेकिन, सफाई कर्मचारियों तक यह उपकरण नहीं पहुंच रहे हैं. लखनऊ नगर निगम में सफाई कर्मचारियों की संख्या करीब 12 हजार है. इनमें, करीब 8 हजार आउटसोर्सिंग से हैं. 1200 संविदा कर्मी और बाकी नगर निगम के कर्मचारी हैं.
नगर निगम ने खुद पकड़ा घोटाला: लखनऊ नगर निगम ने बीते दिनों खुद स्वीकार किया कि उपकरण की खरीद के नाम पर घोटाला हुआ है. घोटाला 2021 से 2022 के बीच का है. नगर निगम की जांच में सामने आया कि सफाई उपकरण खरीदने के नाम पर निगम अधिकारियों व निजी संस्थाओं ने मिलीभगत से 5.54 करोड़ का गोलमाल किया है. इस पैसे से नगर निगम में सफाई के लिए इस्तेमाल होने वाले झाड़ू, पंजा, फावड़ा, जूता जैसे उपकरण खरीदे जाने थे. इन उपकरणों के नाम पर 5.54 करोड़ रुपए निकाल लिए गए लेकिन, सामान खरीदा गया या नहीं उसकी कोई जानकारी दर्ज नहीं की गई. बिल और वाउचर भी नहीं लगाए गए हैं. इसको खुद नगर आयुक्त ने पकड़ा है. गौरतलब है कि निगम निजी एजेंसियों को सालाना करीब 111 करोड़ रुपए का भुगतान करता है. इस राशि में से उन्हें उपकरण खरीद के लिए 5% का अतिरिक्त भुगतान किया जाता है. उधर, अब नगर निगम के तरफ से खुद उपकरण उपलब्ध कराने की बात की जा रही है.

पढ़ें : हाथ से मैला साफ करने के कारण कोई मौत नहीं, जवाब से मानवाधिकार कार्यकर्ता खफा
यह है जमीनी हकीकत : स्थाई संविदा एवं ठेका सफाई कर्मचारी संघ के महासचिव मनोज कुमार धानुक ने बताया कि सीवर में उतरने वाले सफाई कर्मचारी की सुरक्षा किट करीब 1200 रुपए की आती है. जिसमें, मास्क से लेकर दूसरी आवश्यक उपकरण शामिल हैं. इसके नाम पर करोड़ों का खेल हो रहा है. किसी भी संस्था ने अपने कर्मचारियों को यह उपलब्ध नहीं कराई है. कर्मचारियों को बिना सुरक्षा उपकरणों के उतारा जा रहा है. इसी का नतीजा है कि बीते कई वर्षों में सफाई कर्मी अपनी जान गंवा रहे हैं.
इन्होंने भी गंवाई है जान : सीवर में घुसकर हाथ से नालों की सफाई करते हुए सैकड़ों लोगों ने जान गंवाई है. केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की संस्था राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के इससे जुड़े आंकड़े डराने वाले हैं. आंकड़ों के मुताबिक, 2010 से मार्च 2020 तक सीवर सफाई के दौरान 631 लोगों की मौत हुई. 2019 में सीवर में उतरे 110 लोगों ने जान गंवाई. यह आंकड़ा 2018 में 68 और 2017 में 193 रहा.

यह है नियम : मैनुअल स्‍कैवेंजिंग एक्‍ट 2013 के तहत किसी भी व्‍यक्ति को उतारना पूरी तरह गैर-कानूनी है. इस पर रोक का प्रावधान है. किसी परिस्थिति में उतारना भी पड़ता है तो जो व्‍यक्ति सीवर की सफाई के लिए उतर रहा है, उसे ऑक्सिजन सिलेंडर, स्‍पेशल सूट, मास्‍क, सेफ्टी उपकरण इत्‍यादि देना जरूरी है.

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