ग्वालियर : भारत की आजादी में ग्वालियर का प्रमुख योगदान रहा है. ग्वालियर आजाद हिंदुस्तान की आन-बान-शान कहे जाने वाले तिरंगे का निर्माण करके अभी भी पूरे देश में अपना नाम रोशन कर रहा है. राष्ट्रीय ध्वज किसी भी देश की प्रमुख पहचान होती है और आपको यह जानकर गर्व होगा कि देशभर की शासकीय और अशासकीय कार्यालय के साथ-साथ कई मंत्रालयों पर लहराने वाला तिरंगा झंडा ग्वालियर में तैयार होता है. ग्वालियर शहर में तिरंगा इस देश का तीसरा और प्रदेश का इकलौता मध्य भारत खादी संघ बना रहा है. खास बात यह है कि जब भी देश के किसी कोने में तिरंगा फहराया जाता है, तब ग्वालियर का जिक्र सभी की जुबान पर होता है.
तिंरगा देश में मुंबई, हुगली और ग्वालियर के केंद्र में ही बनाया जाता है. खादी केंद्र की मैनेजर का कहना है कि किसी भी आकार के तिरंगे को तैयार करने में उनकी टीम को पांच से 6 दिन का समय लगता है. इन दोनों यूनिट में 26 जनवरी के लिए तिरंगा तैयार किया जा रहा है. यहां बनने वाले तिरंगे मध्यप्रदेश के अलावा बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात सहित एक दर्जन से अधिक राज्यों में पहुंचाए जाते हैं. गौरव की बात यह है कि देश के अलग-अलग शहरों में स्थित आर्मी इमारतों पर ग्वालियर में बने तिरंगे शान बढ़ाते हैं.
9 मानकों को ध्यान में रख कर तैयार होता है तिरंगा
ग्वालियर मध्य भारत खादी संघ में आईएसआई प्रमाणित तीन साइज के तिरंगे तैयार किए जाते हैं, जिनमें 2 बाई 3 फीट, 6 बाई 4 फीट और 3 बाई साढ़े 4 फीट के झंडे शामिल हैं. राष्ट्रध्वज बनाने के लिए मार्को का ख्याल रखना होता है, जिसमें कपड़े की क्वालिटी, रंग और चक्र का साइज बहुत जरूरी है. उसके बाद खादी संघ जिले में इन सभी चीजों का टेस्ट किया जाता है. कुल 9 मानकों को ध्यान में रखते हुए हमारे राष्ट्रीय ध्वज तैयार किए जाते हैं.
अन्य राज्यों को 18 लाख रुपये के राष्ट्रीय ध्वज हो चुके हैं सप्लाई
26 जनवरी के लिए मध्य भारत खादी संघ के द्वारा 18 लाख के तिरंगे सप्लाई किए जा चुके हैं. यह तिरंगे देश के अलग-अलग राज्यों में सप्लाई किए जा रहे हैं, लेकिन अबकी बार तिरंगों की यह सप्लाई पहले की तुलना में बहुत कम है और इसका सबसे ज्यादा असर कोरोना संक्रमण से हुआ है. कोरोना संक्रमण के कारण अबकी बार तिरंगे की बिक्री पर खासा प्रभाव पड़ा है.
कोरोना संक्रमण के कारण प्रोडक्शन में 40 फ़ीसदी की कमी
साल 2020 में कोरोना संक्रमण के कारण ग्वालियर की मध्य भारत खादी संघ पर भी काफी असर देखने को मिला था, जिससे खादी संघ के प्रोडक्शन में 40 फ़ीसदी की कमी आई थी, जिससे संस्था को लगभग 30 लाख रुपये का नुकसान हुआ था. खादी संघ इकाई का टर्नओवर साल में लगभग 40 से 50 लाख रुपये का है. कोरोना संक्रमण के कारण टर्नओवर में काफी गिरावट आई है, लेकिन उम्मीद है आगे आने वाले समय में अब हालात सामान्य होते जा रहे हैं.
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ग्वालियर में स्थित इस केंद्र की स्थापना साल 1925 में चरखा संघ के तौर पर हुई थी. साल 1956 में मध्य भारत खादी संघ को आयोग का दर्जा मिला. इस संस्था से मध्य भारत के कई प्रमुख राजनीतिक हस्तियां भी जुड़ी रहीं. उनका मानना है कि किसी भी खादी संघ के लिए तिरंगे तैयार करना बड़ी मुश्किल का काम होता है, क्योंकि सरकार की अपनी गाइडलाइन है उसी के अनुसार तिरंगे तैयार करने होते हैं, यही कारण है कि जब यहां तिरंगे तैयार किए जाते हैं तो उनकी कई बार बारीकी से मॉनिटरिंग की जाती है.