बीकानेर : पूरी दुनिया में राजस्थान के बीकानेर की एक अलग पहचान यहां की संस्कृति, खानपान और लोगों के जीने के अंदाज से जुड़ी है. आज भी इस भागमभाग की दुनिया में बीकानेर उतनी रफ्तार नहीं पकड़ पाया है. उसका एक कारण यहां के लोगों का सुकून से जिंदगी जीने का फलसफा है. चाहे बात यहां के त्योहारों की हो या फिर खुशियों को बांटने की. बात जब होली की मस्ती की हो (Bikaner Holi Celebration) तो यहां के लोगों के सिर इसका नशा चढ़कर बोलता है.
अपनी परंपराओं को शिद्दत से निभाने के लिए यहां के लोग जाने जाते हैं. वैसे तो होली से जुड़ी कई परंपराएं बीकानेर में कई शताब्दियों से चली आ रही हैं, जिनमें रम्मतों का मंचन हो या फिर डोलची का खेल या फिर तणी तोड़ने की परंपरा और भी कई परंपरा बीकानेर में होली से जुड़ी हुई हैं, जिन्हें लोग आज भी निभाते हैं. ऐसी ही एक परंपरा बीकानेर में पुष्करणा समाज के जोशी जाति से जुड़ी हुई है. होली के 8 दिन पहले यानी कि होलाष्टक (Holashtak 2022 in Bikaner) लगने के साथ ही बीकानेर में जोशी जाति के लोगों के घरों में छौंक नहीं लगता है. मतलब की किसी भी तरह की कोई सब्जी नहीं बनती या यूं कह सकते हैं कि अब बदलते समय में जोशी जाति के लोग होलाष्टक के बाद घरों में खाना नहीं बनाते हैं.
जोशी जाति के बुजुर्ग गोपीराम जोशी कहते हैं कि इसके पीछे भी एक बड़ा कारण है जो पूर्वजों ने हमें बताया और बचपन से जो हम देखते आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि करीब 350 साल पहले पोकरण के पास मांडवा नाम से एक गांव है, जहां एक बार होलिका दहन के समय जोशी जाति की एक महिला अपने हाथ में बच्चे को लिए परिक्रमा लगा रही थी. इस दौरान बच्चा हाथ से छूटकर होलिका अग्नि में गिर गया और उसको बचाने के लिए मां ने भी प्रयास किया और दोनों की इस दौरान होलिका दहन में मौत हो गई. तब से जोशी जाति के लोग होलाष्टक के बाद धुलंडी के दिन दोपहर तक अपने घरों में छौंक नहीं लगाते हैं.
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गंगादासाणी जोशी चौवटिया कल्याण प्रन्यास के अध्यक्ष गोकुल जोशी कहते हैं कि उस घटना के बाद छौंक नहीं लगाया जाता है. जिसके चलते घरों में सब्जी नहीं बनती है. गोकुल जोशी कहते हैं कि तब से यह परंपरा चली आ रही है और इन 8 दिनों में जोशी जाति के लोगों के घरों में खाना सगे-संबंधी लेकर आते हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि पहले के जमाने में केवल रिश्तेदारों के घरों से सब्जी आती थी, क्योंकि रोटी बनाई जा सकती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे बदलते जमाने में यह परंपरा हो गई है और पूरा खाना ही सगे-संबंधी और रिश्तेदारों के घरों से आता है.
वे कहते हैं कि जिस जगह पर यह घटना हुई थी, वहां अब एक पेड़ है और वह हर वक्त हरा रहता है. जोशी जाति के लोग वहां अपनी श्रद्धा के मुताबिक (holika dahan 2022) दर्शन के लिए भी जाते हैं. बुजुर्ग गोपीराम जोशी कहते हैं कि विभाजन के बाद वर्तमान पाकिस्तान का वह हिस्सा जहां उस वक्त जोशी जाति के लोग रहते थे, वहां पर भी यह परंपरा आज भी निभाई जाती है.
इसके अलावा दुनिया के किसी भी भाग में यदि जोशी जाति के लोग रहते हैं तो होली के मौके पर यह परंपरा निभाते हैं. कुल मिलाकर होलाष्टक से लेकर धुलंडी के दिन दोपहर तक जोशी जाति के लोगों में अब खाना नहीं बनता है. ऐसे में करीब 350 साल पुरानी इस परंपरा को बीकानेर ही नहीं, बल्कि देश और विदेश के किसी भी भाग में रह रहे जोशी जाति के लोग निभाते हैं.
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