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MP: सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को मिला देश में दूसरा स्थान, बेहतर मैनेजमेंट ने दिलाया तमगा

पीएम मोदी ने प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने पर आकड़े पेश कर दिए. भारत में बाघों की संख्या बढ़कर 3167 हो गई है. एमपी के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को बेस्ट टाइगर रिजर्व बेहतर प्रबंधन के मामले में देश में दूसरा स्थान मिला है.

tiger census 2023
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व
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Published : Apr 9, 2023, 7:33 PM IST

Updated : Apr 9, 2023, 7:49 PM IST

नर्मदापुरम। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को प्रबंधन के मामले में देश में दूसरा स्थान मिला है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को दूशरा स्थान बेहतर प्रबंधन, बेहतर मैनेजमेंट, बेहतर टीम के चलते हासिल हुआ है. देशभर में एसटीआर दूसरे स्थान पर है पहले स्थान पर केरला का पेरियार (MEE Score 94.38%) , तो वहीं दूसरे स्थान पर सतपुड़ा टाइगर रिजर्व मध्यप्रदेश और बांदीपुर कर्नाटक (MEE Score 93.18%) मिला है. कर्नाटक के नागरहोल (MEE Score 92.42%) को तीसरा स्थान मिला है. बता दें रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने पर बाघों से जुड़े आकड़े पेश किए. प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत एक अप्रैल 1973 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी.

tiger census 2023
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व

एसटीआर में बेहतर मैनेजमेंट: टाइगर रिजर्व के 50 साल होने पर आंकड़े जारी किए गए हैं. जिसमें प्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है. बेहतर प्रबंधन एवं बेहतर मैनेजमेंट के चलते पूरी टीम के सहयोग से यह है मुकाम एसटीआर ने हासिल किया है. एसटीआर क्षेत्र में बाघों के बेहतर प्रबंधन के लिए एसटीआर ने बेहतर काम किए हैं. इस वन्य परिक्षेत्र क्षेत्र में हिमालय में पाई जाने वाली वनस्पतियों में 26 प्रजातियां और नीलगिरि के वनों में पाई जाने वाली 42 प्रजातियां सतपुड़ा वन क्षेत्र में भी भरपूर पाई जाती हैं. इसलिये विशाल पश्चिमी घाट की तरह इसे उत्तरी घाट का नाम भी दिया गया है. कुछ प्रजातियां जैसे कीटभक्षी घटपर्णी, बांस, हिसालू, दारूहल्दी सतपुड़ा और हिमालय दोनों जगह मिलती हैं. इसी तरह पश्चिमी घाट और सतपुड़ा दोनों जगह जो प्रजातियां मिलती हैं उनमें लाल चंदन मुख्य हैं. सिनकोना का पौधा, जिससे मलेरिया की दवा कुनैन बनती है, यहां बड़े संकुल में मिलता है.

tiger census 2023
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व
tiger census 2023
बाघ जनगणना 2023

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ऐसे हुआ बाघों की संख्या में इजाफा: रिजर्व में बाघों की सुरक्षा के लिए काम किए गए हैं. इसके लिए पिछले लंबे समय से उनके रहवास भोजन आदि प्रबंधन पर काम हुआ है. जिसकी बदौलत अब बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का करीब 2150 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से पिछले एक दशक के दौरान 50 से अधिक वन्य ग्रामों को खाली कराया गया है. वहां रहने वाले लोगों को दूसरे स्थानों पर विस्थापित किया गया है. करीब 11 हजार हेक्टेयर भूमि को बाघों के रहवास के लिए बनाया गया है. 85 प्रकार की घास लगाकर शाकाहारी वन्य प्राणियों के पौष्टिक भोजन की व्यवस्था की गई है. पेंच टाइगर रिजर्व से करीब 1600 चीतल सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में छोड़े गए है. एसटीआर क्षेत्र के डिप्टी डायरेक्टर संदीप फेलोज बताते हैं कि यह सब बेहतर प्रबंधन एवं पूरी टीम के कारण यह स्थान मिला है. एसटीआर क्षेत्र के हर छोटे से बड़े कर्मचारी का इस में योगदान रहा है.

नर्मदापुरम। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को प्रबंधन के मामले में देश में दूसरा स्थान मिला है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को दूशरा स्थान बेहतर प्रबंधन, बेहतर मैनेजमेंट, बेहतर टीम के चलते हासिल हुआ है. देशभर में एसटीआर दूसरे स्थान पर है पहले स्थान पर केरला का पेरियार (MEE Score 94.38%) , तो वहीं दूसरे स्थान पर सतपुड़ा टाइगर रिजर्व मध्यप्रदेश और बांदीपुर कर्नाटक (MEE Score 93.18%) मिला है. कर्नाटक के नागरहोल (MEE Score 92.42%) को तीसरा स्थान मिला है. बता दें रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने पर बाघों से जुड़े आकड़े पेश किए. प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत एक अप्रैल 1973 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी.

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सतपुड़ा टाइगर रिजर्व

एसटीआर में बेहतर मैनेजमेंट: टाइगर रिजर्व के 50 साल होने पर आंकड़े जारी किए गए हैं. जिसमें प्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है. बेहतर प्रबंधन एवं बेहतर मैनेजमेंट के चलते पूरी टीम के सहयोग से यह है मुकाम एसटीआर ने हासिल किया है. एसटीआर क्षेत्र में बाघों के बेहतर प्रबंधन के लिए एसटीआर ने बेहतर काम किए हैं. इस वन्य परिक्षेत्र क्षेत्र में हिमालय में पाई जाने वाली वनस्पतियों में 26 प्रजातियां और नीलगिरि के वनों में पाई जाने वाली 42 प्रजातियां सतपुड़ा वन क्षेत्र में भी भरपूर पाई जाती हैं. इसलिये विशाल पश्चिमी घाट की तरह इसे उत्तरी घाट का नाम भी दिया गया है. कुछ प्रजातियां जैसे कीटभक्षी घटपर्णी, बांस, हिसालू, दारूहल्दी सतपुड़ा और हिमालय दोनों जगह मिलती हैं. इसी तरह पश्चिमी घाट और सतपुड़ा दोनों जगह जो प्रजातियां मिलती हैं उनमें लाल चंदन मुख्य हैं. सिनकोना का पौधा, जिससे मलेरिया की दवा कुनैन बनती है, यहां बड़े संकुल में मिलता है.

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सतपुड़ा टाइगर रिजर्व
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ऐसे हुआ बाघों की संख्या में इजाफा: रिजर्व में बाघों की सुरक्षा के लिए काम किए गए हैं. इसके लिए पिछले लंबे समय से उनके रहवास भोजन आदि प्रबंधन पर काम हुआ है. जिसकी बदौलत अब बाघों की संख्या में इजाफा हुआ है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का करीब 2150 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से पिछले एक दशक के दौरान 50 से अधिक वन्य ग्रामों को खाली कराया गया है. वहां रहने वाले लोगों को दूसरे स्थानों पर विस्थापित किया गया है. करीब 11 हजार हेक्टेयर भूमि को बाघों के रहवास के लिए बनाया गया है. 85 प्रकार की घास लगाकर शाकाहारी वन्य प्राणियों के पौष्टिक भोजन की व्यवस्था की गई है. पेंच टाइगर रिजर्व से करीब 1600 चीतल सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में छोड़े गए है. एसटीआर क्षेत्र के डिप्टी डायरेक्टर संदीप फेलोज बताते हैं कि यह सब बेहतर प्रबंधन एवं पूरी टीम के कारण यह स्थान मिला है. एसटीआर क्षेत्र के हर छोटे से बड़े कर्मचारी का इस में योगदान रहा है.

Last Updated : Apr 9, 2023, 7:49 PM IST
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