श्रीनगर(उत्तराखंड): उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बाढ़, बारिश और एवलांच ही तबाही का कारण नहीं हैं. यहां गिरने वाली आकाशीय बिजली से भी उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में भारी नुकसान होता है. ऐसे में अगर आकाशीय बिजली गिरने की सटीक जानकारी पहले ही मिल जाये तो इससे होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है. इसे लेकर मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा श्रीनगर गढ़वाल में लाइटनिंग लोकेशन सेंसर स्थापित किया गया है. जिसमें उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में थंडरस्टॉर्म की घटनाओं का लगातार अध्यन किया जा रहा है. जिसमें कई चौंकाने वाले तथ्य पता चले हैं.
हाई एल्टिट्यूट में होती हैं थंडरस्टॉर्म की घटनाएं: हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदायें कोई नई बात नहीं हैं. बारिश, बाढ़, भूकंप, एवलांच यहां तबाही का बड़ा कारण हैं. इसके साथ ही आकाशीय बिजली यानी थंडरस्टॉर्म भी पर्वतीय क्षेत्रों में तबाही की एक बड़ी वजह है. जिसे अक्सर नजर अंदाज किया जाता रहा है. हालांकि, बारिश, बाढ़, भूकंप, एवलांच की अपेक्षा, थंडरस्टॉर्म से भारी मात्रा में जान-माल का नुकसान नहीं होता है, फिर भी अगर इसकी पहले से जानकारी मिल जाये तो इससे होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है.
क्लाउड टू अर्थ थंडरस्टॉर्म ज्यादा खतरनाक: उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में थंडरस्टॉर्म की घटनाओं का अध्यन कर रहे भौतिकी विभाग के शोध छात्रों को कई चौंकाने वाले तथ्य पता चले हैं. मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा श्रीनगर गढ़वाल में लाइटनिंग लोकेशन सेंसर स्थापित करने के बाद शोध छात्र लगातार गढ़वाल मंडल के पर्वतीय क्षेत्रों में गिरने वाली आकाशीय बिजली का अध्ययन कर रहे हैं. अध्ययन के दौरान पता चला है कि यहां क्लाउड टू क्लाउड व क्लाउड टू ग्राउंड दोनों तरह की घटनाएं देखने को मिल रही हैं, लेकिन इनमें क्लाउड टू अर्थ थंडरस्टॉर्म ज्यादा नुकसानदायक है. जिससे भारी नुकसान की आशंका बनी रहती है.
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हिमालय का नॉर्थ और उत्तरी भाग थंडरस्टॉर्म के लिए उपयुक्त: अक्सर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बिजली गिरने की संभावनाएं बनी रहती हैं. भौतिक विज्ञान के शोध छात्र संदीप कुमार लंबे अरसे से थंडरस्टॉर्म पर शोध कर रहे हैं. उनका कहना है उच्च हिमालय का नॉर्थ और उत्तरी भाग थंडरस्टॉर्म के लिए उपयुक्त है. यहां बदलों के बीच बनने वाली ऊर्जा को अच्छा वातावरण मिलता है. जिसके इन इलाकों में बिजली गिरने की घटनाएं अधिक होती हैं. अगर थंडरस्टॉर्म को लेकर पूर्व में जानकारी दी जाए तो यहां होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है.
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थंडरस्टॉर्म की आधे घंटे पहले मिल सकती है जानकारी: उत्तराखंड में कई पर्यटक स्थल हैं. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में कई ट्रेकिंग स्पॉट हैं. यहां चारधाम हैं, जहां प्रत्येक साल लाखों लोग पहुंचते हैं. गढ़वाल विवि के भौतिक विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर आलोक सागर गौतम का कहना हैं अक्सर आकाशीय बिजली गिरने की संभावना हाई एल्टिट्यूट में ही होती हैं, अगर उत्तराखंड में लाइटनिंग लोकेशन सेंसर का एक मेकेनिजम तैयार किया जाये, प्रत्येक जिले में एक-एक लाइटनिंग लोकेशन सेंसर लगाया जाए तो आकाशीय बिजली गिरने की सटीक जानकारी आधे घंटे पहले ही मिल सकती है. जिससे जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकता है.
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बदलते वक्त के साथ प्रकृति में कई बदलाव आ रहे हैं. मौसम परिवर्तन के कारण अप्रैल माह में बारिश, बर्फबारी का होना, लगातार उच्च हिमालयी क्षेत्रों में थंडरस्टॉर्म की घटनाओं का बढ़ना इस बात का संकेत है कि आने वाले वक्त में कई बड़ी प्राकृतिक घटनायें हो सकती हैं. प्राकृतिक आपदाओं को रोका तो नहीं जा सकता लेकिन विज्ञान की मदद से इन घटनाओं की भविष्यवाणी करते हुए, इनसे बचा जरूर जा सकता है.