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25 सालों से बांस के पेड़ों पर घर बनाकर रह रहा है यह व्यक्ति

इंसानी सभ्यता शुरू होने के शुरुआती दौर में मनुष्य गुफाओं और पेड़ों पर रहा करते थे. पश्चिम बंगाल के कटवा जिले में एक व्यक्ति आदि सभ्यता की तरह रह रहा है. वह बांस के पेड़ों पर घर बनाकर रह रहा है.

man living on bamboo trees
बांस के पेड़ों पर रह रहा व्यक्ति
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Published : Nov 17, 2022, 10:10 PM IST

कटवा: बर्दवान शहर से आगे जाकर कटवा की ओर करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर पालितपुर गांव है. दो किलोमीटर गांव की सड़क के किनारे, धान के खेत के किनारे एक सूखी नहर देखने को मिलती है. उसके बगल में बांस का झुरमुट है. वहीं पलितपुर गांव के रहने वाले लोकू राय ने अपने जीवन के करीब 25 साल बांस के उस पेड़ पर गुजारे हैं जो दूर से नजर नहीं आता. हैरानी की बात है, लेकिन यह सच है.

नेशनल ज्योग्राफिक चैनल पर द लीजेंड ऑफ माइक डॉज नामक एक टेलीविजन श्रृंखला एक बड़ी हिट थी, क्योंकि माइक नाम के एक व्यक्ति ने आधुनिक सभ्यता से बचने के लिए प्रशांत नॉर्थवेस्ट वर्षावन के पास एक ट्रीहाउस बनाया था. बर्दवान के पालितपुर के लोकू रे ने उसी कड़ी से एक पत्ता लेते हुए एक बांस के पेड़ के ऊपर एक घर बना लिया है. गांव में रॉय का एक गरीब परिवार था, उनकी पत्नी, बेटा और दो बेटियां थीं. 25 साल पहले अचानक लगी आग में उसकी पत्नी की मौत हो गई थी.

बांस के पेड़ों पर रह रहा व्यक्ति

तब से, वह अपनी मानसिक स्थिरता खो चुका है. वर्षों तक ऐसे ही रहकर वह एक बांस के पेड़ के ऊपर मचान बांधने लगा. बाद में लोकू ने वहां बांस, प्लास्टिक, चाट और रस्सी से किसी तरह सिर छिपाने की जगह बना ली. उन्होंने बांस के पेड़ों के चारों ओर बाड़ वाला एक छोटा सा बगीचा भी बनाया है. छोटे फूलों के पेड़ों से लेकर वहां अन्य पेड़ भी लगाए गए हैं. उसने मिट्टी खोदकर तालाब बनाया और उसे नहर से जोड़ दिया. वह बरसात के मौसम में वहां मछली भी पकड़ता है.

सुबह होते ही लोकू बगीचे की देखभाल करने के बाद खेत में चला जाता है. दोपहर के समय रॉय छोटे-मोटे कामों से मिलने वाले पैसों को लेकर गांव में अपनी बेटी के घर चला जाता है. वहीं लंच करते हैं और बांस के फर्श पर आराम करते हैं. कुछ देर इधर-उधर घूमने के बाद शाम होते ही वह वापस बांस की झोपड़ी में चला जाता है. वह हर रात वहां मोमबत्तियां जलाकर बिताता है.

लोकू राय ने कहा कि उनका मूल घर बिहार में था. वे अपने माता-पिता के साथ बर्दवान चले गए. तब से वह बर्दवान के पालितपुर गांव में रहता था. एक दिन अचानक उसकी पत्नी की आग में जलकर मृत्यु हो गई. तभी से वह उस बांस की झाड़ी में बैठा करता था. इस तरह उसने बांस के पेड़ों में एक छोटा सा घर बनाना शुरू किया. ऐसे ही करीब 25 साल बीत गए. वह दिन भर इधर-उधर काम करने के अलावा अपना खाली समय बागवानी में बिताते हैं. वह अपना शेष जीवन इसी तरह व्यतीत करना चाहता है.

पढ़ें: महाराष्ट्र: एक पैर से चलाई दो लाख किमी साइकिल, कैंसर पीड़ित होने के बावजूद बनाया रिकॉर्ड

एक ग्रामीण मोंटू रॉय ने कहा कि 'वह बहुत दिनों से पेड़ पर रह रहा है. वह सारा दिन खेतों में या जहां भी काम मिलता है, काम करता है. वह अपनी बेटी के घर खाता-पीता है.' लोकू रॉय के दामाद सैलू दुबे ने कहा 'मेरी सास की मौत के बाद ससुर बांस के घर में रहने लगे. वह दोपहर में ही खाना खाने घर आते हैं. वह रात में बांस के मकान में रहते हैं. हमें एक घर चाहिए अगर सरकार इसे बनाए. लेकिन जब घर में आग लगी तो सारे दस्तावेज जल गए. इसलिए मकान बनाने के लिए कोई दस्तावेज जमा नहीं करा सके.'

कटवा: बर्दवान शहर से आगे जाकर कटवा की ओर करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर पालितपुर गांव है. दो किलोमीटर गांव की सड़क के किनारे, धान के खेत के किनारे एक सूखी नहर देखने को मिलती है. उसके बगल में बांस का झुरमुट है. वहीं पलितपुर गांव के रहने वाले लोकू राय ने अपने जीवन के करीब 25 साल बांस के उस पेड़ पर गुजारे हैं जो दूर से नजर नहीं आता. हैरानी की बात है, लेकिन यह सच है.

नेशनल ज्योग्राफिक चैनल पर द लीजेंड ऑफ माइक डॉज नामक एक टेलीविजन श्रृंखला एक बड़ी हिट थी, क्योंकि माइक नाम के एक व्यक्ति ने आधुनिक सभ्यता से बचने के लिए प्रशांत नॉर्थवेस्ट वर्षावन के पास एक ट्रीहाउस बनाया था. बर्दवान के पालितपुर के लोकू रे ने उसी कड़ी से एक पत्ता लेते हुए एक बांस के पेड़ के ऊपर एक घर बना लिया है. गांव में रॉय का एक गरीब परिवार था, उनकी पत्नी, बेटा और दो बेटियां थीं. 25 साल पहले अचानक लगी आग में उसकी पत्नी की मौत हो गई थी.

बांस के पेड़ों पर रह रहा व्यक्ति

तब से, वह अपनी मानसिक स्थिरता खो चुका है. वर्षों तक ऐसे ही रहकर वह एक बांस के पेड़ के ऊपर मचान बांधने लगा. बाद में लोकू ने वहां बांस, प्लास्टिक, चाट और रस्सी से किसी तरह सिर छिपाने की जगह बना ली. उन्होंने बांस के पेड़ों के चारों ओर बाड़ वाला एक छोटा सा बगीचा भी बनाया है. छोटे फूलों के पेड़ों से लेकर वहां अन्य पेड़ भी लगाए गए हैं. उसने मिट्टी खोदकर तालाब बनाया और उसे नहर से जोड़ दिया. वह बरसात के मौसम में वहां मछली भी पकड़ता है.

सुबह होते ही लोकू बगीचे की देखभाल करने के बाद खेत में चला जाता है. दोपहर के समय रॉय छोटे-मोटे कामों से मिलने वाले पैसों को लेकर गांव में अपनी बेटी के घर चला जाता है. वहीं लंच करते हैं और बांस के फर्श पर आराम करते हैं. कुछ देर इधर-उधर घूमने के बाद शाम होते ही वह वापस बांस की झोपड़ी में चला जाता है. वह हर रात वहां मोमबत्तियां जलाकर बिताता है.

लोकू राय ने कहा कि उनका मूल घर बिहार में था. वे अपने माता-पिता के साथ बर्दवान चले गए. तब से वह बर्दवान के पालितपुर गांव में रहता था. एक दिन अचानक उसकी पत्नी की आग में जलकर मृत्यु हो गई. तभी से वह उस बांस की झाड़ी में बैठा करता था. इस तरह उसने बांस के पेड़ों में एक छोटा सा घर बनाना शुरू किया. ऐसे ही करीब 25 साल बीत गए. वह दिन भर इधर-उधर काम करने के अलावा अपना खाली समय बागवानी में बिताते हैं. वह अपना शेष जीवन इसी तरह व्यतीत करना चाहता है.

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एक ग्रामीण मोंटू रॉय ने कहा कि 'वह बहुत दिनों से पेड़ पर रह रहा है. वह सारा दिन खेतों में या जहां भी काम मिलता है, काम करता है. वह अपनी बेटी के घर खाता-पीता है.' लोकू रॉय के दामाद सैलू दुबे ने कहा 'मेरी सास की मौत के बाद ससुर बांस के घर में रहने लगे. वह दोपहर में ही खाना खाने घर आते हैं. वह रात में बांस के मकान में रहते हैं. हमें एक घर चाहिए अगर सरकार इसे बनाए. लेकिन जब घर में आग लगी तो सारे दस्तावेज जल गए. इसलिए मकान बनाने के लिए कोई दस्तावेज जमा नहीं करा सके.'

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