नई दिल्ली : गुजरात दंगे, नाथूराम गोडसे, मुगल इतिहास और अन्य विषय पर एनसीईआरटी ने कुछ अंश कम करने की हालिया चूक के कुछ दिनों बाद प्रमुख कवि और पूर्व सिविल सेवक अशोक वाजपेयी ने कहा, 'भारत का विचार (Idea of India) खतरे में है और यह वास्तविक है लेकिन कोई कार्रवाई हमारी नींव हिला नहीं सकती है.'
अन्य प्रमुख इतिहासकारों, कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों के साथ शनिवार को नई दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में 'डिफेंडिंग द आइडिया ऑफ इंडिया' विषय पर बोलते हुए वाजपेयी ने कहा, 'हम उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में विनाशकारी चीजें देख रहे हैं. राज्य बुलडोजर पॉलिटिक्स करते हैं और इसका जश्न मनाया जा रहा है, लेकिन ऐसे घटनाक्रम 'इंडिया' के विचार को खतरे में डाल रहे हैं, लेकिन इस देश की नींव को हिला नहीं सकते.'
वाजपेयी ने कहा कि 'हिंदू और हिंदुत्व दो अलग-अलग चीजें हैं और एक-दूसरे से अलग ध्रुव हैं. सत्तारूढ़ शासन बाद के एक निश्चित आख्यान को थोपने की कोशिश कर रहा है लेकिन इसका हिंदुओं से कोई लेना-देना नहीं है.' उन्होंने कहा कि 'प्रजा के मन से भय को दूर करना राजा का काम है लेकिन इस समय तो राजा ही सबको डरा रहा है.'
चार दशकों से अधिक समय तक जेएनयू में समकालीन इतिहास पढ़ाने वाले प्रमुख इतिहासकार आदित्य मुखर्जी ने कहा, 'भारत का विचार बोलने की स्वतंत्रता, संप्रभुता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और नागरिक स्वतंत्रता सहित कुछ सिद्धांतों पर रखा गया था, लेकिन इस अशांत समय में यह सब खतरे में है.'
एनसीईआरटी ने हाल ही में किताबों से कुछ अंश कम कर दिए हैं, जिसके बाद से आलोचना हो रही है. मुखर्जी ने कहा कि एनसीईआरटी के निदेशक ने कहा कि 'ऐसा छात्रों पर कोविड-19 के कारण पैदा हुए पाठ्यक्रम के बोझ को कम करने के लिए है.' मुखर्जी ने कहा कि लेकिन हम सभी जानते हैं कि यह वर्तमान समय के विचार के अनुरूप किया गया था. मुगल इतिहास के अंशों और अध्यायों को हटाकर, वे और अधिक शत्रुता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और अल्पसंख्यकों को यहूदी बस्ती में धकेल रहे हैं.
मुखर्जी ने कहा, 'जनसंहार की खुली पुकार की जा रही है और उसके बाद भी इन दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. यह मुसोलिनी का सीधा पाठ है जिसका विचार एक राष्ट्र, एक धर्म और एक संस्कृति पर आधारित था. ऐसा लग सकता है कि मैं अतिशयोक्ति कर रहा हूं, लेकिन मुझे यह कहने में संकोच नहीं होगा कि हम गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहे हैं.'
इसी तरह एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने भी निशाना साधा. उन्होंने कहा कि 'सरकार उन लोगों पर हमला कर रही है जो जवाबदेही पर वास्तविक सवाल पूछ रहे हैं. आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या की जा रही है, सवाल पूछने वालों को जेलों में डाला जा रहा है और यूएपीए के साथ जेलों में डाला जा रहा है. यह सरकार जवाबदेही में विश्वास नहीं करती है और इसलिए सवाल पूछना अपराध बन गया है.'
अंजलि ने कहा कि 'देखिए कैसे चुनावी बांड लोकतंत्र के लिए खतरा हैं. हम यह भी नहीं जानते कि जवाबदेही और लोकतंत्र की प्रकृति पर एक वास्तविक खतरा पैदा करने वाली इन पार्टियों को कौन फिर से फंडिंग कर रहा है. सीबीआई निदेशकों और अन्य को एक्सटेंशन दिया जा रहा है. हम अशांत समय में रह रहे हैं.'
कार्यक्रम में कई शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, जिनमें प्रमुख इतिहासकार मृदुला मुखर्जी, वरिष्ठ पत्रकार पामेला फिलिपोस, प्रोफेसर अविनाश कुमार, अकादमिक और राजनीतिक वैज्ञानिक जोया हसन सहित अन्य शामिल थे.