पिथौरागढ़: उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है. अनेक ऋषि-मुनियों ने यहां गुफाओं में रहकर तपस्या की और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया. ईटीवी भारत आज आपको एक ऐसी प्राचीन गुफा के बारे में बताने जा रहा है, जिसे देश और दुनिया के कम ही लोग जानते हैं, मगर स्थानीय लोगों के लिए इस गुफा का अच्छा खासा महत्व है. जी हां, हम बात कर रहे हैं पिथौरागढ़ जिले की व्यास घाटी में स्थित व्यास गुफा की. ऐसी मान्यता है कि महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने इसी गुफा में वर्षों तक तपस्या की थी. यही वजह है कि इसे व्यास गुफा के नाम से जाना जाता है.
कालापानी में है व्यास गुफा
व्यास गुफा कालापानी में मां काली के मंदिर के समीप स्थित एक पहाड़ी के ऊंचे स्थान पर मौजूद है. इस गुफा तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है. इसी के चलते आज तक कोई भी इस व्यास गुफा तक नहीं पहुंच पाया. लोग मां काली के मंदिर से ही व्यास गुफा के दर्शन करते हैं. यही नहीं, विश्व प्रसिद्ध कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं को भी इस गुफा के दर्शन का सौभाग्य मिलता है.
भगवान शिव की भूमि है व्यास घाटी
कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग में पड़ने वाली व्यास घाटी को भगवान शिव की भूमि माना जाता है. व्यास घाटी में महर्षि व्यास की गुफा के साथ ही प्रसिद्ध ओम पर्वत, आदि कैलाश, पार्वती ताल और कई अन्य तीर्थ स्थल भी मौजूद हैं. यहां के लोग भगवान शिव के साथ ही महर्षि वेदव्यास को भी अपना आराध्य मानते हैं. व्यास घाटी को महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास की तपस्थली कहा जाता है. हर साल भादो माह में धूमधाम से यहां महर्षि वेदव्यास की पूजा-अर्चना की जाती है. पूजा-अर्चना में गुंजी, कुटी, नाबी, रौंककोंग और नपल्च्यू के लोग शिरकत करते हैं.
नेपाली नागरिक भी होते हैं आमंत्रित
इसके साथ ही पड़ोसी मुल्क नेपाल के टिंकर, छांगरू, राप्ला और स्यांकोंग के नागरिकों को भी आमंत्रित किया जाता है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. महर्षि वेदव्यास की पूजा अर्चना से पहले क्षेत्र के मंदिरों में पताकाएं लगाकर उन्हें विशेष रूप से सजाया जाता है. इस अवसर पर लगने वाले मेले को व्यास मेले के नाम से जाना जाता है.
पूजा में सभी दर्ज कराते हैं अपनी उपस्थिति
इस मेले के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि व्यास घाटी में रहने वाले लोग देश-विदेश में कहीं भी हों, इस मौके पर अपने गांव में पूजा के लिए जरूर पहुंचते हैं. पूजा के मौके पर "रं" जनजाति की महिलाएं और पुरुष अपनी पारंपरिक वेशभूषा में नजर आते हैं. इस मौके पर ढोल, नगाड़े और तुरही के साथ "रं" समुदाय के लोग पारंपरिक गीतों और नृत्य के साथ झूमते नजर आते हैं.
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पिथौरागढ़ महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य और क्षेत्रीय संस्कृति के जानकार प्रो. डीएस पांगती बताते हैं कि महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास के नाम पर ही क्षेत्र को व्यास घाटी के नाम से जाना जाता है. क्षेत्र के लोग महर्षि वेदव्यास को आराध्य के रूप में सदियों से पूजते आ रहे हैं. व्यास मेले को लेकर स्थानीय लोगों में खूब आस्था है.