संयुक्त राष्ट्र: भले ही भारत उन देशों में से था, जिन्होंने जॉर्डन के गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव के लिए मतदान से परहेज किया. लेकिन भारत ने गाजा संकट पर मसौदा प्रस्ताव में कनाडा के नेतृत्व वाले संशोधन के पक्ष में मतदान किया. यूएनजीए में पारित होने में असफल रहा क्योंकि इसे दो-तिहाई बहुमत हासिल नहीं हुआ. कनाडा ने जॉर्डन की ओर से तैयार किए गए प्रस्ताव में संशोधन का प्रस्ताव रखा, जिसमें मूल रूप से गाजा पट्टी में निर्बाध मानवीय पहुंच का आह्वान किया गया था. लेकिन आतंकवादी संगठन हमास की निंदा नहीं की गई थी.
भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा से कहा है कि आतंकवाद एक 'दुर्भावना' है और इसकी कोई सीमा, राष्ट्रीयता या नस्ल नहीं होती है. दुनिया को आतंकी कृत्यों के औचित्य पर विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि भारत ने इजराइल-हमास संघर्ष पर एक प्रस्ताव पर रोक लगा दी थी. भारत ने शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा में नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी और मानवीय दायित्वों को कायम रखने नामक जॉर्डन-मसौदा प्रस्ताव पर रोक लगा दी. जिसमें इजराइल-हमास संघर्ष में तत्काल मानवीय संघर्ष और गाजा पट्टी में निर्बाध मानवीय पहुंच का आह्वान किया गया था.
हालांकि, 193 सदस्यीय महासभा ने जॉर्डन-मसौदा प्रस्ताव को पारित कर दिया. जिसमें तत्काल, टिकाऊ और निरंतर मानवीय संघर्ष विराम का आह्वान किया गया था. जिससे शत्रुता समाप्त हो सके. प्रस्ताव, जिसके पक्ष में 121 वोट पड़े, 44 अनुपस्थित रहे और 14 सदस्य देशों ने इसके खिलाफ मतदान किया, ने पूरे गाजा पट्टी में नागरिकों को आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के तत्काल, निरंतर, पर्याप्त और निर्बाध प्रावधान की भी मांग की.
संयुक्त राष्ट्र में भारत की उप स्थायी प्रतिनिधि योजना पटेल ने यहां वोट के स्पष्टीकरण में कहा कि ऐसी दुनिया में जहां मतभेदों और विवादों को बातचीत से हल किया जाना चाहिए, इस प्रतिष्ठित निकाय को हिंसा का सहारा लेने पर गहराई से चिंतित होना चाहिए. पटेल ने कहा कि जब यह इतने बड़े पैमाने और तीव्रता से होता है कि यह बुनियादी मानवीय मूल्यों का अपमान है.
पटेल ने कहा कि राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में हिंसा अंधाधुंध नुकसान पहुंचाती है और किसी भी टिकाऊ समाधान का मार्ग प्रशस्त नहीं करती है. पटेल ने इजराइल में सात अक्टूबर को हुए आतंकी हमलों को चौंकाने वाला बताते हुए कहा कि ये निंदा के पात्र हैं. वोट के बारे में भारत के स्पष्टीकरण में हमास का उल्लेख नहीं किया गया.
आतंकवाद एक घातक बीमारी है और इसकी कोई सीमा, राष्ट्रीयता या नस्ल नहीं होती. दुनिया को आतंकवादी कृत्यों के किसी भी औचित्य पर विश्वास नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि आइए हम मतभेदों को दूर रखें, एकजुट हों और आतंकवाद के प्रति शून्य-सहिष्णुता का दृष्टिकोण अपनाएं. भारत ने आशा व्यक्त की कि महासभा के विचार-विमर्श से आतंक, हिंसा के खिलाफ एक स्पष्ट संदेश जाएगा. हमारे सामने मौजूद मानवीय संकट का समाधान करते हुए कूटनीति और बातचीत की संभावनाओं का विस्तार होगा.