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बर्खास्त किए गए शिक्षकों को भर्ती प्रक्रिया में नहीं दी जा सकती विशेष छूट : उच्च न्यायालय

त्रिपुरा उच्च न्यायालय (High Court of Tripura ) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बर्खास्त किए गए 10,323 शिक्षकों को नव सृजित पदों (newly created posts) पर भर्ती के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं दी जा सकती.

त्रिपुरा उच्च न्यायालय
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Published : Aug 17, 2021, 4:38 PM IST

अगरतला : त्रिपुरा उच्च न्यायालय (High Court of Tripura ) ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि बर्खास्त किए गए 10,323 शिक्षकों को नव सृजित पदों (newly created posts) पर भर्ती के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं दी जा सकती.

न्यायमूर्ति अरिंदम लोध (Justice Arindam Lodh) की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा कि ऐसा कोई भी प्रयास भारतीय संविधान (Indian constitution) के अनुच्छेद 226 का उल्लंघन (violation of Article 226) होगा.

छंटनी किए गए शिक्षकों की ओर से बिजॉय कृष्ण साहा (Bijoy Krishna), राजीव दास (Rajib Das) और अरुण भौमिक (Arun Bhaumik) ने अपने नुकसान के लिए सीधे रोजगार की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया.

हाल ही में रिट याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति लोध ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का उल्लेख किया, जो राज्य सरकार की याचिका (state government's petition) पर आधारित था, जिसमें 10,323 सेवानिवृत्त शिक्षकों को विभिन्न रिक्त पदों पर बिना किसी ओपन विज्ञापन के निर्णय पारित करने के लिए समायोजित किया गया था.

उच्च न्यायालय ने पाया कि बिजॉय कृष्ण साहा, राजीव दास और अरुण भौमिक की रिट याचिका में राज्य सरकार को चयन प्रक्रिया (Selection Process) का पालन किए बिना रिक्त समूह C और D पद पर उन्हें रोजगार प्रदान करने का निर्देश देने की अपील अपने आप में अवैध है. यह अदालत किसी भी राज्य सरकार या किसी प्राधिकरण को किसी भी सार्वजनिक पद (public post) पर ऐसा कोई रोजगार करने के लिए मजबूर करने वाले निर्देश नहीं दे सकती है, जिसमें बिना किसी चयन प्रक्रिया के रिट याचिकाकर्ताओं (Writ Petitioners) को समायोजित किया जा सके.

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि यह न्यायालय आदेशों की पुनर्व्याख्या या पुनर्व्याख्या नहीं कर सकता है. यह स्पष्ट हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य-सरकार के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया कि उन्हें भर्ती नियमों (Recruitment Rules) या मौजूदा रोजगार मानदंडों (employment norms) का पालन किए बिना सीधे बर्खास्त शिक्षकों को नियुक्त करने की अनुमति दी जाए.

उच्च न्यायालय ने यह भी पाया कि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष राज्य-सरकार द्वारा दायर हलफनामे और सामान्य भर्ती नियमों का पालन किए बिना बर्खास्त शिक्षकों को नियुक्त (appoint the terminated teachers ) करने की अनुमति मांगना 'रोजगार के लिए मौजूदा कानूनी सिद्धांत के विपरीत' है .

आदेश के अनुसार कोई भी सरकार संविधान के अनुच्छेद -14 और 16 में निहित सार्वजनिक रोजगार के स्थापित मानदंडों के सिद्धांत (doctrine of established norms ) के अनुरूप कोई भी निर्णय नहीं ले सकती है.

पढ़ें - IVF से जन्मे बच्चे के जन्म-मृत्यु पंजीकरण के लिए पिता की जानकारी मांगना अनुचित : अदालत

न्यायमूर्ति लोध ने कहा कि संवैधानिक योजना (Constitutional scheme) के विपरीत ऐसा कोई भी निर्णय अमान्य घोषित किया जाएगा.

उच्च न्यायालय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि राज्य सरकार चयन प्रक्रिया का संचालन करने के लिए बाध्य है, जिसमें संबंधित उम्मीदवार यानी याचिकाकर्ता और बर्खास्त शिक्षक आयु में छूट के साथ भाग लेने के हकदार होंगे और उन्हें कोई छूट नहीं दी जाएगी.

अगरतला : त्रिपुरा उच्च न्यायालय (High Court of Tripura ) ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि बर्खास्त किए गए 10,323 शिक्षकों को नव सृजित पदों (newly created posts) पर भर्ती के लिए कोई विशेष सुविधा नहीं दी जा सकती.

न्यायमूर्ति अरिंदम लोध (Justice Arindam Lodh) की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा कि ऐसा कोई भी प्रयास भारतीय संविधान (Indian constitution) के अनुच्छेद 226 का उल्लंघन (violation of Article 226) होगा.

छंटनी किए गए शिक्षकों की ओर से बिजॉय कृष्ण साहा (Bijoy Krishna), राजीव दास (Rajib Das) और अरुण भौमिक (Arun Bhaumik) ने अपने नुकसान के लिए सीधे रोजगार की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया.

हाल ही में रिट याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति लोध ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का उल्लेख किया, जो राज्य सरकार की याचिका (state government's petition) पर आधारित था, जिसमें 10,323 सेवानिवृत्त शिक्षकों को विभिन्न रिक्त पदों पर बिना किसी ओपन विज्ञापन के निर्णय पारित करने के लिए समायोजित किया गया था.

उच्च न्यायालय ने पाया कि बिजॉय कृष्ण साहा, राजीव दास और अरुण भौमिक की रिट याचिका में राज्य सरकार को चयन प्रक्रिया (Selection Process) का पालन किए बिना रिक्त समूह C और D पद पर उन्हें रोजगार प्रदान करने का निर्देश देने की अपील अपने आप में अवैध है. यह अदालत किसी भी राज्य सरकार या किसी प्राधिकरण को किसी भी सार्वजनिक पद (public post) पर ऐसा कोई रोजगार करने के लिए मजबूर करने वाले निर्देश नहीं दे सकती है, जिसमें बिना किसी चयन प्रक्रिया के रिट याचिकाकर्ताओं (Writ Petitioners) को समायोजित किया जा सके.

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि यह न्यायालय आदेशों की पुनर्व्याख्या या पुनर्व्याख्या नहीं कर सकता है. यह स्पष्ट हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने राज्य-सरकार के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया कि उन्हें भर्ती नियमों (Recruitment Rules) या मौजूदा रोजगार मानदंडों (employment norms) का पालन किए बिना सीधे बर्खास्त शिक्षकों को नियुक्त करने की अनुमति दी जाए.

उच्च न्यायालय ने यह भी पाया कि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष राज्य-सरकार द्वारा दायर हलफनामे और सामान्य भर्ती नियमों का पालन किए बिना बर्खास्त शिक्षकों को नियुक्त (appoint the terminated teachers ) करने की अनुमति मांगना 'रोजगार के लिए मौजूदा कानूनी सिद्धांत के विपरीत' है .

आदेश के अनुसार कोई भी सरकार संविधान के अनुच्छेद -14 और 16 में निहित सार्वजनिक रोजगार के स्थापित मानदंडों के सिद्धांत (doctrine of established norms ) के अनुरूप कोई भी निर्णय नहीं ले सकती है.

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न्यायमूर्ति लोध ने कहा कि संवैधानिक योजना (Constitutional scheme) के विपरीत ऐसा कोई भी निर्णय अमान्य घोषित किया जाएगा.

उच्च न्यायालय ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि राज्य सरकार चयन प्रक्रिया का संचालन करने के लिए बाध्य है, जिसमें संबंधित उम्मीदवार यानी याचिकाकर्ता और बर्खास्त शिक्षक आयु में छूट के साथ भाग लेने के हकदार होंगे और उन्हें कोई छूट नहीं दी जाएगी.

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