नई दिल्ली : आंकड़े बताते हैं की हाल के वर्षों में दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में निलंबन की संख्या बढ़ गई है. आंकड़े दर्शाते हैं कि 2014 के बाद से लोकसभा में और 2019 के बाद से राज्य सभा में सदस्यों के निलंबन में तेजी आई है. पिछले एनडीए सरकार के आठ साल के कार्यकाल में सांसदों के निलंबन में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है. संसदीय सचिवालय के आंकड़ों पर यदि ध्यान दें तो 2006 से 2014 के बीच दोनों सदनों में 51 सांसद निलंबित किए गए थे जबकि 2015 के मानसून सत्र से लेकर अब तक लगभग 139 सांसद निलंबित हो चुके हैं. इन सांसदों को अमर्यादित कार्यों और व्यवहार और कदाचार, चेयर पर टिपण्णी करने, बिल फाड़ने अथवा स्पीकर या सभापति पर कागज फेंकने के आरोपों के बाद निलंबित किया गया है. ये सभी संसदीय भाषा में अमर्यादित आचरण के अंतर्गत आते हैं.
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इसी सत्र की यदि बात करें तो पिछले एक हफ्ते के अंदर दोनो सदनों के मिलाकर दो दर्जन से भी अधिक सांसद निलंबित किए जा चुके हैं. राज्य सभा में कई सांसदों को नियम 255 के तहत एक दिन के लिए सदन से अनुपस्थित रहने का निर्देश दिया जाता है लेकिन इसे निलंबन की तरह नहीं देखा जाता है. इसी तरह लोकसभा में भी निलंबन की प्रक्रिया नियम 374 और 374 (ए) के तहत होती है लेकिन लोकसभा अध्यक्ष को ये अधिकार होता है कि वो किसी सदस्य को सीधे या कोई प्रस्ताव पेश करके या फिर अपने विवेक से निलंबित कर सकते हैं.
इस मसले पर पर ईटीवी से बात करते हुए शिवसेना के नेता अरविंद सावंत ने कहा की बुधवार को राज्यसभा से 20 सांसदों को निलंबित किया गया जो मुझे लगता है संसद के इतिहास में राज्यसभा से एक दिन में सबसे ज्यादा निलंबन होगा. उन सांसदों की गलती क्या है बस यही की वो जनता के मुद्दों पर, बढ़ती हुई महंगाई पर, गिरते हुए रुपए पर देश हित में चर्चा कराने की मांग कर रहे थे. उन्होंने सरकार पर निरंकुश होकर शासन करने का आरोप लगाया. वहीं बीजेपी के नेता दुष्यंत गौतम का कहना है की विपक्ष अपनी जिम्मेदारियों को समझ ही नहीं रहा है, कई सांसद अपनी बात उठाना चाहते हैं मगर विपक्षी सांसद उन्हें बोलने नहीं देते. प्लेकार्ड लेकर सदन के भीतर आ जाते हैं,चेयर को प्लेकार्ड दिखाते हैं क्या ये सही आचरण है.