नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उस जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें सभी राज्यों को यह निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया था कि वे माहवारी से होने वाली पीड़ा के मद्देनजर छात्राओं और कामकाजी महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर उन दिनों अवकाश के प्रावधान वाले नियम बनाएं.
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मुद्दा सरकार के नीतिगत दायरे में आता है. प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि निर्णय लेने के लिए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को एक अभ्यावेदन भेजा जा सकता है. दिल्ली निवासी शैलेंद्र मणि त्रिपाठी द्वारा दायर याचिका में मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 की धारा 14 के अनुपालन के लिए केंद्र और सभी राज्यों को निर्देश देने का अनुरोध किया गया है.
अधिनियम की धारा 14 निरीक्षकों की नियुक्ति से संबंधित है और इसमें कहा गया है कि उपयुक्त सरकार ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति कर सकती है और क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाओं को परिभाषित कर सकती है जिसके भीतर वे इस कानून के तहत अपने कार्यों का निर्वहन करेंगे.
बता दें कि केरल में एक विश्वविद्यालय की ओर से छात्राओं को उनके पीरियड के दौरान छुट्टी देने का नियम लागू किया गया है. छात्राओं की ओर से लंबे समय से इस संबंध में मांग की गई थी. वहीं, इस संबंध में लोकसभा में दो निजी बिल पेश किए गए थे.इसमें शिक्षण संस्थानों में पीरियड के दौरान छात्राओं को राहत देने संबंधी प्रश्न पूछे गए थे.
इस प्रश्न पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री सुभाष सरकार ने जवाब देते हुए कहा था कि शिक्षण संस्थानों में महिलाओं और लड़कियों के लिए अवकाश को लेकर विधेयक लाने का सरकार का कोई प्रस्ताव नहीं है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस याचिका में कहा गया था कि कुछ कंपनियां पीरियड लीव प्रदान करती है. वहीं, विश्व के कई देशों में माहवारी के दौरान महिलाओं को कामकाज से छूट का प्रावधान है.
(पीटीआई-भाषा)