नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने पति की हत्या की आरोपी महिला की मिली हत्या की सजा को गैर इरादतन हत्या की सजा में संशोधित करते हुए कहा कि इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि पत्नी द्वारा आत्म-नियंत्रण खोते हुए पति की हत्या की गई. ऐसा इसलिए क्योंकि मृतक ने अपनी बेटी को 500 रुपये नहीं दिए और वह इस बात से क्रोधित हो गई थी. इसी के बाद उसने अपने पति की हत्या कर दी थी.
जस्टिस बीआर गवई और जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि गौरतलब है कि वारदात में इस्तेमाल किया गया हथियार एक डंडा है, जो घर में पड़ा हुआ था और जिसे किसी भी तरह से घातक हथियार नहीं कहा जा सकता. पीठ ने कहा कि इसलिए, अपीलकर्ता द्वारा बेटी को 500 रुपये का भुगतान करने के लिए सहमत नहीं होने के कारण कोध्र के कारण आत्म-नियंत्रण खोने और मृतक की मृत्यु की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है.
शीर्ष अदालत का फैसला निर्मला देवी द्वारा दायर याचिका पर आया, जिस पर झगड़े के दौरान अपने पति की पीट-पीटकर हत्या करने का आरोप था, जिसमें मई 2022 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा पारित फैसले को चुनौती दी गई थी. उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसने महिला को आईपीसी की धारा 302 और 201 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
शीर्ष अदालत ने बेटी की गवाही की सावधानीपूर्वक जांच के बाद कहा कि हम पाते हैं कि आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषसिद्धि को बरकरार रखना मुश्किल होगा. शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर बेटी की गवाही को समग्र रूप से पढ़ा जाए तो पता चलेगा कि उसके पिता और मां के बीच अक्सर झगड़ा होता था. बेटी ने अपने साक्ष्य में कहा है कि मृतक मस्त राम ने ऐसे ही एक झगड़े के दौरान उसकी मां के पैर में फ्रैक्चर कर दिया था और उक्त अपराध के लिए उसके खिलाफ एक आपराधिक मामला भी लंबित था.