नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने टाटा पावर की याचिका को खारिज कर दिया और अडानी बिजली को नामांकन के आधार पर 7,000 करोड़ रुपये के ट्रांसमिशन अनुबंध देने के महाराष्ट्र बिजली नियामक के फैसले को बरकरार रखा. न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ भी विचार कर रही थी कि क्या एक बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजना को नामांकन के आधार पर सम्मानित किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'विद्युत अधिनियम 2003 राज्यों को अंतर्राज्यीय विद्युत पारेषण के लिए पर्याप्त लचीलापन प्रदान करता है. 2003 अधिनियम के प्रावधान टैरिफ निर्धारित करने के लिए एक प्रभावी तरीका प्रदान नहीं करते हैं. उपयुक्त आयोग बोली लगाने के बावजूद पहुंचे टैरिफ को नकार नहीं सकता. धारा 63 को धारा 62 पर वरीयता लेने के लिए नहीं बनाया जा सकता है.'
आगे अदालत ने कहा कि 'एमईआरसी ने टैरिफ निर्धारित करने के लिए न तो दिशानिर्देश तैयार किए हैं, इसलिए सामान्य नियामक शक्ति का प्रयोग करके टैरिफ निर्धारित किया जाना है. विद्युत अधिनियम 2003 को महाराष्ट्र सरकार के साथ पढ़ा जाए जीओएम बोली मार्ग के माध्यम से टैरिफ नहीं बनाता है. इस मामले ने राज्य विद्युत संचरण की तदर्थ प्रकृति को ध्यान में लाया है. एमएसईटीसीएल फ्लिप फ्लॉप ने समय की बर्बादी की है.'
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अदालत ने सभी राज्य आयोगों को राष्ट्रीय नीति के अनुसार 2003 के अधिनियम की धारा 61 के अनुसार टैरिफ के निर्धारण पर दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश दिया. अदालत ने आदेश दिया कि 'अंतिम ग्राहकों तक लाभ पहुंचाना है.'