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हिरासत में स्टेन स्वामी की मौत को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता : राउत

सामना के संपादकीय में शिवसेना ने लिखा कि एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी स्टेन स्वामी की हिरासत में मौत को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता. पढ़ें पूरी खबर...

stan swamy
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Published : Jul 11, 2021, 5:23 PM IST

मुंबई : शिवसेना सांसद संजय राउत ने रविवार को कहा कि एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी स्टेन स्वामी की हिरासत में मौत को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता, भले ही माओवादी कश्मीरी अलगाववादियों से ज्यादा खतरनाक हों.

पार्टी के मुखपत्र 'सामना' में अपने साप्ताहिक स्तंभ रोखठोक में राउत ने हैरानी जताई कि क्या भारत की नींव इतनी कमजोर है कि 84 साल का बुजुर्ग व्यक्ति उसके खिलाफ जंग छेड़ सकता है और कहा कि मौजूदा सरकार की आलोचना करना देश के खिलाफ होना नहीं है.

स्वामी (84) संभवत: भारत में सबसे बुजुर्ग व्यक्ति होंगे, जो आतंकवाद के आरोपी थे. उनका हाल में मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया था. स्वास्थ्य आधार पर उनकी जमानत का मामला अदालत में लंबित था.

'सामना' के कार्यकारी संपादक राउत ने कहा, 84 वर्षीय दिव्यांग व्यक्ति से डरी सरकार चरित्र में तानाशाह है, लेकिन दिमाग से कमजोर है. एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में वरवर राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा और अन्य की गिरफ्तारी के संदर्भ में उन्होंने कहा कि एल्गार परिषद की गतिविधियों का समर्थन नहीं किया जा सकता, लेकिन बाद में जो हुआ उसे स्वतंत्रता पर नकेल कसने की एक साजिश कहा जाना चाहिए.

राउत ने कहा कि (इस मामले में) गिरफ्तार किए गए सभी लोग, (विद्वान-कार्यकर्ता) आनंद तेलतुंबडे समेत, एक विशेष विचारधारा से आते हैं जो साहित्य के जरिये अपनी बगावत को आवाज देते हैं. उन्होंने पूछा, क्या वे इससे सरकार का तख्ता पलट कर सकते हैं?

पढ़ें :- फादर स्टेन स्वामी की 'हिरासत में मौत' पर क्यों और किस-किसने उठाए हैं सवाल ?

राउत ने कहा कि स्टेन स्वामी की हिरासत में मौत हो गई जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन लोगों के साथ बातचीत की, जो कश्मीर की स्वायत्तता चाहते हैं और वहां अनुच्छेद 370 को बहाल किए जाने की मांग कर रहे हैं.

राज्य सभा सदस्य ने कहा, हम माओवादियों और नक्सलियों की इस विचारधारा से सहमत नहीं हो सकते हैं. हिरासत में स्वामी की मौत को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता, भले ही माओवादी और नक्सली कश्मीरी अलगाववादियों से ज्यादा खतरनाक हों.

उन्होंने प्रेस की आजादी पर लगाम कसने वाले वैश्विक नेताओं की सूची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम आने पर भी आश्चर्य व्यक्त किया.

उन्होंने कहा, स्थिति अब भी भारत में नियंत्रण से बाहर नहीं हुई है, भले ही यह सच हो कि सरकार की आलोचना करने वाले को राजद्रोह के कानूनों के तहत जेल में डाला गया है. भारतीय प्रेस भी इस तरह की घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाता है. राउत ने पूछा, क्या देश की नींव इतनी कमजोर है कि इसे 84 साल के एक व्यक्ति से खतरा हो सकता है?

(पीटीआई-भाषा)

मुंबई : शिवसेना सांसद संजय राउत ने रविवार को कहा कि एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी स्टेन स्वामी की हिरासत में मौत को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता, भले ही माओवादी कश्मीरी अलगाववादियों से ज्यादा खतरनाक हों.

पार्टी के मुखपत्र 'सामना' में अपने साप्ताहिक स्तंभ रोखठोक में राउत ने हैरानी जताई कि क्या भारत की नींव इतनी कमजोर है कि 84 साल का बुजुर्ग व्यक्ति उसके खिलाफ जंग छेड़ सकता है और कहा कि मौजूदा सरकार की आलोचना करना देश के खिलाफ होना नहीं है.

स्वामी (84) संभवत: भारत में सबसे बुजुर्ग व्यक्ति होंगे, जो आतंकवाद के आरोपी थे. उनका हाल में मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया था. स्वास्थ्य आधार पर उनकी जमानत का मामला अदालत में लंबित था.

'सामना' के कार्यकारी संपादक राउत ने कहा, 84 वर्षीय दिव्यांग व्यक्ति से डरी सरकार चरित्र में तानाशाह है, लेकिन दिमाग से कमजोर है. एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में वरवर राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा और अन्य की गिरफ्तारी के संदर्भ में उन्होंने कहा कि एल्गार परिषद की गतिविधियों का समर्थन नहीं किया जा सकता, लेकिन बाद में जो हुआ उसे स्वतंत्रता पर नकेल कसने की एक साजिश कहा जाना चाहिए.

राउत ने कहा कि (इस मामले में) गिरफ्तार किए गए सभी लोग, (विद्वान-कार्यकर्ता) आनंद तेलतुंबडे समेत, एक विशेष विचारधारा से आते हैं जो साहित्य के जरिये अपनी बगावत को आवाज देते हैं. उन्होंने पूछा, क्या वे इससे सरकार का तख्ता पलट कर सकते हैं?

पढ़ें :- फादर स्टेन स्वामी की 'हिरासत में मौत' पर क्यों और किस-किसने उठाए हैं सवाल ?

राउत ने कहा कि स्टेन स्वामी की हिरासत में मौत हो गई जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन लोगों के साथ बातचीत की, जो कश्मीर की स्वायत्तता चाहते हैं और वहां अनुच्छेद 370 को बहाल किए जाने की मांग कर रहे हैं.

राज्य सभा सदस्य ने कहा, हम माओवादियों और नक्सलियों की इस विचारधारा से सहमत नहीं हो सकते हैं. हिरासत में स्वामी की मौत को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता, भले ही माओवादी और नक्सली कश्मीरी अलगाववादियों से ज्यादा खतरनाक हों.

उन्होंने प्रेस की आजादी पर लगाम कसने वाले वैश्विक नेताओं की सूची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम आने पर भी आश्चर्य व्यक्त किया.

उन्होंने कहा, स्थिति अब भी भारत में नियंत्रण से बाहर नहीं हुई है, भले ही यह सच हो कि सरकार की आलोचना करने वाले को राजद्रोह के कानूनों के तहत जेल में डाला गया है. भारतीय प्रेस भी इस तरह की घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाता है. राउत ने पूछा, क्या देश की नींव इतनी कमजोर है कि इसे 84 साल के एक व्यक्ति से खतरा हो सकता है?

(पीटीआई-भाषा)

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