अयोध्या : मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की पावन नगरी अयोध्या को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है. इस प्राचीन नगरी में लगभग 5000 से अधिक मंदिर हैं. इनमें से 100 से अधिक ऐसे मंदिर हैं, जिनका वर्णन स्कंद पुराण, रामचरितमानस, वाल्मीकि रामायण में भी है. हर मंदिर का अलग इतिहास और मान्यताएं हैं. इस पावन नगरी में श्रद्धालुओं के पांव तब ठिठक जाते हैं, जब सामने दक्षिण भारतीय शैली में बना कोई मंदिर नजर आता है. भव्य और आकर्षक ये मंदिर सिर्फ वास्तु के लिहाज से ही नहीं, अपनी पूजा पद्धति में भी दक्षिण की परंपरा को समेटे हुए हैं. अयोध्या में धीरे-धीरे दक्षिण भारतीय शैली में बने मंदिर और देवी-देवताओं की पूजा जड़ें जमा रही है.
भगवान वेंकटेश्वर स्वामी और मां मीनाक्षी अम्मन के विग्रहों की पूजा : अयोध्या में लगभग आधा दर्जन ऐसे मंदिर अस्तित्व में आ गए हैं, जिनका जुड़ाव दक्षिण भारत से है. अम्मा जी मंदिर, नाट कोट नगर सतरम, रामलला सदनम जैसे तमाम मंदिर श्रद्धालुओं का ध्यान खींचते हैं. इनकी निर्माण शैली से लेकर प्रतिष्ठित देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना और लगने वाला भोग राग भी दक्षिण से ही जुड़ा है. धर्मनगरी अयोध्या में प्रमुख रूप से वैष्णव संप्रदाय से जुड़े साधु-संत ज्यादा हैं. यहां पर रामानंदीय संप्रदाय की परंपरा के अनुसार भगवान राम-सीता और हनुमान जी सहित अन्य देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की परंपरा रही है. लेकिन अपनी अलग पहचान रखने वाले दक्षिण भारतीय मंदिरों में भगवान वेंकटेश्वर स्वामी और मां मीनाक्षी की प्रतिमाओं की स्थापना की गई है.
दक्षिण भारतीय परंपरा में भगवान को लगाया जाता है पोंगल का प्रसाद : श्री रामलला सदनम के पुजारी सुदर्शन महाराज बताते हैं कि अयोध्या में वैसे तो वैष्णव परंपरा के मंदिर है, जहां पर रामानंदीय परंपरा के अनुसार पूजा-अर्चना की जाती है. लेकिन दक्षिण भारतीय परंपरा से जुड़े मंदिरों में भगवान की आरती से लेकर उनके भोग राग में विविधता पाई जाती है. अन्य मंदिरों में जहां भगवान को सामान्य भोजन में खीर, पूरी, दाल-चावल, मालपुआ सहित मिष्ठान का भोग लगता है, वहीं दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुरूप बनाए गए मंदिरों में भगवान को पोंगल का प्रसाद भोग के लिए लगाया जाता है. इसके अलावा दही और चावल के बने व्यंजन विशेष रूप से भगवान को अर्पित किए जाते हैं. मंदिरों के आकार-प्रकार की बात करें तो यह मंदिर बेहद भव्य और सुंदर हैं.
दक्षिण से हुई भक्ति की उत्पत्ति : वैष्णव परंपरा के प्रमुख संत जगतगुरु रामानंदाचार्य रामदिनेशाचार्य महाराज कहते हैं कि भक्ति की उत्पत्ति ही दक्षिण से हुई है. शास्त्रों में इसका उल्लेख है. अयोध्या में दक्षिण भारतीय परंपरा के मंदिर बन रहे हैं हमारी और उनकी पूजा पद्धति में बहुत फर्क नहीं है. कुछ मूलभूत परिवर्तन जरूर हुए हैं. दक्षिण भक्ति का स्थल है और उत्तर साधना तप का. दोनों का मेल होने पर ही परमपिता परमेश्वर की प्राप्ति होती है. इसलिए इस प्राचीन नगरी में इन दोनों परंपराओं का मिलन सुंदर है. अयोध्या आने वाले राम भक्त श्रद्धालुओं को दोनों तरह की संस्कृतियों के दर्शन रामनगरी में होते हैं.
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