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दिल्ली दंगों का एक साल : सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कानूनी मदद को लेकर रखी अपनी राय - दिल्ली दंगों का एक साल

पिछले साल दिल्ली में हुए दंगों के बाद सरकार और अन्य कारणों को जिम्मेदार ठहराते हुए सामाजिक कार्यकर्ता डॉ फहीम ने कहा कि सरकार को इसपर गंभीरता से विचार करते हुए जमीनी स्तर पर काम करना चाहिए. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर..

दिल्ली दंगों का एक साल
दिल्ली दंगों का एक साल
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Published : Feb 24, 2021, 4:15 PM IST

नई दिल्ली : उत्तर पूर्वी दिल्ली में गत वर्ष फरवरी में हुए दंगों को एक साल हो गया है. वहीं समाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक हालात पर चर्चा करते हुए प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता डॉ फहीम ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि सरकार को इसपर गंभीरता से विचार करते हुए जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है.

उन्होने कहा कि उत्तर पूर्वी जिले में जो कुछ हुआ, उसके लिए आर्थिक और शैक्षणिक हालात भी जिम्मेदार हैं. डॉ फहीम ने कहा कि दंगों के बाद जमीनी स्तर पर सरकारों को जो काम करने चाहिए थे, वह पूरी तरह से नहीं हुए हैं. यही वजह है कि हिंसा पर नियंत्रण और उसके प्रभाव से उबरने में समय लगता गया है.

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. फहीम ने ईटीवी से की बात

उन्होंने कहा कि अब तक दंगों के जख्म पूरी तरह से भरे भी नहीं थे कि महमारी की वजह से लगाया गया लॉकडाउन पीड़ितों पर दोहरी मार बनकर आन पड़ा और प्रभावितों को इससे पार पाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी.

मुआवजा नहीं मिलने का किया दावा

यह भी पढ़ें- भारत में एक मार्च से शुरू होगा दूसरे चरण का टीकाकरण : केंद्र सरकार

वहीं दंगा पीड़ितों के बीच राहत और कानूनी सहायता प्रदान करने वाले लोगों का कहना है कि एक साल बीतने के बावजूद दंगा पीड़ितों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. मुस्तफाबाद में दंगा पीड़ितों को कानूनी मदद कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद मुनव्वर उस्मानी ने आरोप लगाया है कि आज भी लोग मदद के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं.

नई दिल्ली : उत्तर पूर्वी दिल्ली में गत वर्ष फरवरी में हुए दंगों को एक साल हो गया है. वहीं समाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक हालात पर चर्चा करते हुए प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता डॉ फहीम ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि सरकार को इसपर गंभीरता से विचार करते हुए जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है.

उन्होने कहा कि उत्तर पूर्वी जिले में जो कुछ हुआ, उसके लिए आर्थिक और शैक्षणिक हालात भी जिम्मेदार हैं. डॉ फहीम ने कहा कि दंगों के बाद जमीनी स्तर पर सरकारों को जो काम करने चाहिए थे, वह पूरी तरह से नहीं हुए हैं. यही वजह है कि हिंसा पर नियंत्रण और उसके प्रभाव से उबरने में समय लगता गया है.

सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. फहीम ने ईटीवी से की बात

उन्होंने कहा कि अब तक दंगों के जख्म पूरी तरह से भरे भी नहीं थे कि महमारी की वजह से लगाया गया लॉकडाउन पीड़ितों पर दोहरी मार बनकर आन पड़ा और प्रभावितों को इससे पार पाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी.

मुआवजा नहीं मिलने का किया दावा

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वहीं दंगा पीड़ितों के बीच राहत और कानूनी सहायता प्रदान करने वाले लोगों का कहना है कि एक साल बीतने के बावजूद दंगा पीड़ितों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. मुस्तफाबाद में दंगा पीड़ितों को कानूनी मदद कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद मुनव्वर उस्मानी ने आरोप लगाया है कि आज भी लोग मदद के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं.

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