पश्चिम चंपारण: बगहा में तकरीबन 200 आदिवासी महिलाएं साबुन बनाने के रोजगार से जुड़ी हैं. बकरी के दूध और ग्लिसरीन में घरेलू सामग्री और अपने आसपास के वनस्पतियों का उपयोग कर महिलाएं केमिकल फ्री साबुन बना रहीं हैं, जिसका उपयोग करने से लोगों को कोई नुकसान नहीं होगा. बकरी के दूध से बने साबुन की कई खासियत है जो उसे दूसरे साबुन से अलग बनाता है.
बगहा में बकरी के दूध से बन रहा साबुन: वाल्मीकिनगर थाना क्षेत्र के कदमहिया गांव की महिलाएं स्वावलंबी बनने की राह पर चल रही हैं और इसके लिए वे दिन रात मेहनत कर रहीं हैं. महिलाओं के समूह का नेतृत्व कर रहीं सुमन देवी बताती हैं कि साबुन बनाने के कार्य में उनके साथ 200 आदिवासी महिलाएं जुड़ी हैं और इको फ्रेंडली साबुन बना रहीं हैं. इस साबुन से ना तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा और ना हीं इसका उपयोग करने वाले लोगों के शरीर पर कोई बुरा असर ही पड़ेगा.
जलज संस्था ने महिलाओं को किया प्रशिक्षित: वहीं साबुन निर्माता सुमन देवी का कहना है कि नमामि गंगे योजना के तहत कार्य करने वाले जलज संस्था के लोगों ने उन्हें प्रशिक्षण दिया है. जिसके बाद वे बकरी के दूध और ग्लिसरीन में नीम, मसूर, एलोवेरा, कोयला , हल्दी चन्दन इत्यादि सामग्रियों का उपयोग कर ऑर्गेनिक साबुन बना रहीं हैं. इस काम से ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को रोजगार मिल रहा है, लेकिन उनके प्रोडक्ट्स को अभी बाजार नहीं मिल पा रहा है.
पैकेजिंग और मार्केटिंग बड़ी समस्या: साबुन बनाने के काम से जुड़ी सुनीता देवी बताती हैं कि "हम लोग साबुन बना तो रहे हैं लेकिन उसकी पैकेजिंग और मार्केटिंग सही से नहीं हो पा रही है. सरकार या प्रशासन यदि आर्थिक या किसी भी तरह से मदद पहुंचाती तो हमारे भी उत्पाद को बाजार में जगह मिलती और बड़े पैमाने पर इस रोजगार को बढ़ावा मिलता."
साबुन के प्रचार-प्रसार की जरूरत: वहीं संगीता देवी बताती हैं की आसपास के गांव के जिन लोगों ने साबुन का उपयोग किया है वे दुबारा साबुन लेने जरूर आ रहे हैं. लेकिन नए ग्राहकों के बीच इसका प्रचार प्रसार नहीं हो पा रहा है. सरकार इसके पैकेजिंग और मार्केटिंग या ब्रांडिंग में सहायता करती तो रोजगार का बड़े पैमाने पर सृजन होता.
होम मेड ईको फ्रेंडली साबुन को नहीं मिला रहा मार्केट: बता दें कि साबुन निर्माण से जुड़ी महिलाएं ग्राहकों के स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए विभिन्न प्रकार के अलग अलग फ्लेवर के साबुन बना रहीं हैं. इसमें मसूर दाल का साबुन, चारकोल से बना साबुन, एलोवेरा और नीम से बना हुआ उत्पाद शामिल है. विगत 5 माह में इन्होंने अच्छे तादाद में साबुन बनाएं हैं लेकिन बिक्री नहीं होने से अब इनका हौसला भी जवाब देने लगा है.
बकरी के दूध से बने साबुन की खासियत: बकरी का दूध आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर होता है. इस कारण इससे बने साबुन के कई फायदे होते हैं. त्वचा संबंधी कई रोगों के इलाज के अलावा इसमें मौजूद आर्गेनिक गुण से भी लाभ होता है. आर्गेनिक गुण के कारण इस साबुन के प्रयोग से रुखापन,ड्राई स्किन, डार्क स्पॉट की समस्या से निजात मिलता है.
पढ़ें- Gaya News : मुख्यमंत्री को लेमनग्रास की चाय पिलाने वाली ललिता देवी ने तैयार किया लेमनग्रास का साबुन