नई दिल्ली : देश में ट्रांसजेंडर समुदाय के अब तक सिर्फ 25,468 (5.22 फीसदी) लोगों को ही कोविड-19 रोधी टीके लगे हैं. इस समुदाय के अधिकारों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि गलत जानकारियों, जरूरी सरकारी दस्तावेजों की कमी और इन लोगों के बीच डिजिटल पहुंच की कमी ने टीकाकरण संबंधी उनकी दिक्कतों को बढ़ा दिया है. जिनकी वजह से इस समुदाय के लोग टीकाकरण को लेकर हिचकिचा रहे हैं.
कुल 25,468 ट्रांसजेंडर को लगी कोरोना वैक्सीन
2011 की जनगणना के अनुसार, देश में ट्रांसजेंडर समुदाय के 4.87 लाख लोग हैं.
कोविन वेबसाइट के अनुसार, अभी तक कुल 8,80,47,053 पुरुषों और 7,67,64,479 महिलाओं ने कोविड-19 रोधी टीके की खुराक ली है. जबकि 'अन्य' श्रेणी में सिर्फ 25,468 लोगों को ही टीके लगे हैं.
जयपुर की ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता पुष्पा माई ने बताया कि टीका लेने को लेकर बड़ी संख्या में समुदाय के लोगों ने उनसे संपर्क किया. माई ने कहा कि उनके पास सही जानकारी नहीं है. उन्हें बताया गया है कि अगर वे टीका लेते हैं तो इससे उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा. जिसके बाद माई ने उन्हें समझाया कि टीका लगवाने से वह घातक संक्रमण से बचेंगे और जल्द से जल्द उन्हें टीका लगवा लेना चाहिए.
समुदाय में वैक्सीन को लेकर गलत सूचनाएं
शाहना (21) का कहना है कि पहले उसके मन में टीके को लेकर कई तरह की आशंकाएं थीं, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उसके इस डर को दूर किया. कार्यालय सहायक के रूप में काम करने वाली शाहना ने कहा कि मेरे दोस्तों ने मुझसे कहा कि तुम मर जाओगी और अपना जीवन खतरे में क्यों डाल रही हो. लेकिन इसके बाद मैंने कार्यकर्ताओं से बात की और उन्होंने मुझे बताया कि ऐसा कुछ नहीं है और मुझे टीका लगवाना चाहिए क्योंकि यह मुझे सुरक्षा प्रदान करेगा.
वहीं इस समुदाय से ताल्लुक रखने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि वह एचआईवी संक्रमित हैं और उन्हें पता नहीं है कि टीका उनके लिए सुरक्षित है या नहीं. जिसके बाद लोक स्वास्थ्य पेशेवर डॉक्टर वंदना प्रसाद ने बताया कि इसमें कोई अंतर्विरोध नहीं है कि एचआईवी या हाल में सर्जरी कराने वाले लोग टीका नहीं ले सकते हैं.
उन्होंने कहा कि ऐसी गलत सूचनाएं लोगों के बीच है कि अगर आप टीका लेते हैं तो आप मर जाएंगे. टीके के कुछ प्रतिकूल प्रभाव हैं और उसमें मौत भी शामिल हैं लेकिन ऐसा होना बेहद दुर्लभ है और कोविड-19 से होने वाली मौतों की तुलना में तो बेहद दुर्लभ. वे अपने डॉक्टरों से बात कर सकते हैं लेकिन सामान्य तौर पर अगर वे बेहद कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले नहीं हैं तो वे टीका ले सकते हैं.
टीकाकरण के लिए जरूरी दस्तावेजों की कमी
वहीं समुदाय के कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो टीका लेने के इच्छुक तो हैं, लेकिन उनके पास जरूरी दस्तावेज नहीं है. शादियों और पारिवारिक कार्यक्रमों में नृत्य करने वाली 50 वर्षीय चांदनी ने बताया कि वह मधुमेह की शिकार हैं और जल्द से जल्द टीका लगवाना चाहती हैं. उन्होंने कहा कि टीका लगवाने के लिए उनके पास जरूरी दस्तावेज नहीं है.
उन्होंने कहा कि अगर मैं कहीं भी उत्सव के मौके पर प्रस्तुति के लिए जाती हूं तो मुझसे पूछा जाता है कि मुझमें या मेरे परिवार में किसी को संक्रमण के लक्षण तो नहीं हैं और मैंने टीका लिया है या नहीं. ऐसे में मेरी सुरक्षा और आजीविका कमाने के लिए टीका लगवाना बेहद ज़रूरी है.
वहीं 44 वर्षीय समीना (बदला हुआ नाम) ने बताया कि उसके पास आधार कार्ड तो है, लेकिन स्मार्टफोन नहीं है और वह खुद केंद्र पर जाने में हिचक रही हैं. क्योंकि उसे डर है कि वहां उनके साथ भेदभाव हो सकता है. समीना यातायात सिग्नल पर भीख मांगकर गुजारा करती हैं.
चांदनी और समीना जैसे लोग सरकार की विशेष टीकाकरण मुहिम की प्रतीक्षा में हैं. केंद्र सरकार ने हाल में राज्यों से यह सुनिश्चित करने को कहा था कि टीकाकरण केंद्रों पर ट्रांसजेंडर लोगों के साथ भेदभाव नहीं हो. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने राज्यों से अपील की है कि वह खास तौर पर ट्रांसजेंडर समुदाय के बीच टीकाकरण को लेकर जागरुकता अभियान चलाएं और यह सुनिश्चित करें कि उन्हें टीकाकरण प्रक्रिया की जानकारी हो.
(पीटीआई-भाषा)