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ज्ञानवापी मस्जिद में 'शिवलिंग', फिर चर्चा में आए सुब्रमण्यम स्वामी

ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद धीरे-धीरे गहराता जा रहा है. मस्जिद के सर्वे में एक शिवलिंग मिलने का दावा किया गया है. इस खबर के सामने आने के बाद कोर्ट ने उस जगह को सील करने का आदेश दे दिया. मंगलवार को इससे संबंधित एक याचिका की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में भी होनी है. इस बीच भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी का एक पुराना ट्वीट सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. इसमें स्वामी कहते हैं कि वह जल्द ही उस शिवलिंग को फिर से स्थापित करने का काम शुरू करेंगे, जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर के ज्ञानवापी कुंए में फेंक दिया गया था. (Shivling found in gyanvapi mosque survey).

gyanvapi masjid
ज्ञानवापी मस्जिद
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Published : May 16, 2022, 6:48 PM IST

Updated : May 16, 2022, 7:29 PM IST

नई दिल्ली : ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे का काम आज समाप्त हो गया. मंगलवार को इसकी रिपोर्ट कोर्ट में सौंपी जाएगी. इस बीच सर्वे से संबंधित एक ऐसी खबर आई, जिसको लेकर सोशल मीडिया पर 'तूफान' खड़ा हो गया है. सर्वे रिपोर्ट में एक शिवलिंग पाए जाने का दावा किया गया है. इसकी जानकारी जैसे ही कोर्ट को दी गई, कोर्ट ने उस जगह को सील करने का आदेश दे दिया. इस खबर से ही संबंधित भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी का एक ट्वीट भी फिर से वायरल हो रहा है. (Shivling found in gyanvapi mosque survey).

स्वामी का यह ट्वीट 16 जून 2019 का है. इसमें स्वामी कहते हैं कि वह जल्द ही उस शिवलिंग को फिर से स्थापित करने का काम शुरू करेंगे, जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर के ज्ञानवापी कुंए में फेंक दिया गया था. इस ट्वीट को शेयर करते हुए लिखा गया है कि खास मुद्दों पर डॉ स्वामी हमेशा आगे रहते हैं और नेशनल एजेंडा सेट करते रहे हैं.

सुब्रमण्यम स्वामी का पुराना ट्वीट
सुब्रमण्यम स्वामी का पुराना ट्वीट

इसके थोड़ी ही देर बाद डॉ स्वामी का एक पुराना वीडियो शेयर किया गया, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि औरंगजेब द्वारा मंदिर तुड़वाए जाते समय पंडितों ने कैसे शिवलिंग को ज्ञानवापी कुंए में इसलिए रख दिया था, ताकि शिवलिंग सुरक्षित रहे.

दरअसल 1991 के 'द प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट' (The Places Of Worship Act) के खिलाफ सुब्रमण्यम स्वामी ने पहले ही देश की सबसे बड़ी अदालत में मुकदमा दायर कर रखा है. आपको बता दें कि 1991 में नरसिंह राव की केंद्र सरकार ने ये कानून बना दिया था कि अयोध्या को छोड़कर बाकी किसी भी मंदिर/धर्मस्थल के स्वामित्व को लेकर अब कोई मामला कोर्ट में नहीं जा पाएगा.

इस कानून को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पहले अश्विनी उपाध्याय ने 12 मार्च 2021 को रिट पिटीशन डाली. 14 दिन बाद यानी 26 मार्च को सुब्रमण्यम स्वामी ने भी ऐसी ही एक अपील सुप्रीम कोर्ट में दायर की. इन दोनों अपीलों को अब एक साथ सुना जा रहा है. स्वामी ने इसे चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट के सामने अपील की है कि 1991 का ये कानून खारिज किया जाना चाहिए. अपनी दलीलों में उन्होंने कहा है कि इस कानून के सेक्शन 4 के सब-सेक्श्न 3 के तहत चूंकि ये इमारत ऐतिहासिक महत्व और पुरातात्विक महत्व के दायरे में आती हैं, इसलिए 1991 का कानून इस पर लागू नहीं होता है.

इस कानून के सेक्शन 4 में स्पष्ट लिखा है कि 15 अगस्त 1947 को किसी धार्मिक स्थल का जो 'रिलीजियस कैरेक्टर' रहा हो, उसे बदला नहीं जा सकता और इस हिसाब से 15 अगस्त 1947 को या उससे पहले ज्ञानवापी का मूल 'रिलीजियस कैरेक्टर' एक मंदिर का था.

दलीलों में ये तर्क भी था कि ये कानून आर्टिकल 14 का यानी समानता के अधिकार का हनन करता है, क्योंकि राम और कृष्ण दोनों ही विष्णु के अवतार हैं और इस कानून के दायरे से राम जन्म स्थान को तो बाहर रखा गया है, लेकिन कृष्ण जन्म स्थान के कानून के घेरे में रखा है.

हिंदू धार्मिक स्थान पर प्राण प्रतिष्ठा के बाद 'रिलीजियस कैरेक्टर' तब तक वही रहता है, जब तक मूर्तियों का विसर्जन न कर दिया जाय. चूंकि विसर्जन हुआ नहीं, इसलिए 'रिलीजियस कैरेक्टर' वही है, बदला नहीं है. ये कानून जनता के बीच कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए था. लेकिन कानून-व्यवस्था और धार्मिक कार्य दोनों राज्य के विषय हैं, केंद्र के नहीं. केंद्र इस पर कानून नहीं बना सकता.

सुब्रमण्यम स्वामी का ट्वीट
सुब्रमण्यम स्वामी का ट्वीट

उन्होंने आगे दलील दी है कि सरकार का काम कानून बना कर अवैध को वैध करना नहीं, अवैध को अवैध करार देना है. इस कानून के तहत अवैध तरीके से मंदिर गिरा कर मस्ज़िद बनाई गई है, जिसे इस कानून के तहत वैध बना दिया गया. इस मामले की अगली सुनवाई अब जुलाई के दूसरे हफ्ते में है.

ये भी पढे़ं : ज्ञानवापी में शिवलिंग मिलना ऐतिहासिक घटना, साबित हुआ वहां मंदिर है: अलोक कुमार

ये भी पढे़ं : ज्ञानवापी में मिला शिवलिंग, कोर्ट ने जगह सील करने का दिया आदेश, CRPF करेगी सुरक्षा

नई दिल्ली : ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे का काम आज समाप्त हो गया. मंगलवार को इसकी रिपोर्ट कोर्ट में सौंपी जाएगी. इस बीच सर्वे से संबंधित एक ऐसी खबर आई, जिसको लेकर सोशल मीडिया पर 'तूफान' खड़ा हो गया है. सर्वे रिपोर्ट में एक शिवलिंग पाए जाने का दावा किया गया है. इसकी जानकारी जैसे ही कोर्ट को दी गई, कोर्ट ने उस जगह को सील करने का आदेश दे दिया. इस खबर से ही संबंधित भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी का एक ट्वीट भी फिर से वायरल हो रहा है. (Shivling found in gyanvapi mosque survey).

स्वामी का यह ट्वीट 16 जून 2019 का है. इसमें स्वामी कहते हैं कि वह जल्द ही उस शिवलिंग को फिर से स्थापित करने का काम शुरू करेंगे, जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर के ज्ञानवापी कुंए में फेंक दिया गया था. इस ट्वीट को शेयर करते हुए लिखा गया है कि खास मुद्दों पर डॉ स्वामी हमेशा आगे रहते हैं और नेशनल एजेंडा सेट करते रहे हैं.

सुब्रमण्यम स्वामी का पुराना ट्वीट
सुब्रमण्यम स्वामी का पुराना ट्वीट

इसके थोड़ी ही देर बाद डॉ स्वामी का एक पुराना वीडियो शेयर किया गया, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि औरंगजेब द्वारा मंदिर तुड़वाए जाते समय पंडितों ने कैसे शिवलिंग को ज्ञानवापी कुंए में इसलिए रख दिया था, ताकि शिवलिंग सुरक्षित रहे.

दरअसल 1991 के 'द प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट' (The Places Of Worship Act) के खिलाफ सुब्रमण्यम स्वामी ने पहले ही देश की सबसे बड़ी अदालत में मुकदमा दायर कर रखा है. आपको बता दें कि 1991 में नरसिंह राव की केंद्र सरकार ने ये कानून बना दिया था कि अयोध्या को छोड़कर बाकी किसी भी मंदिर/धर्मस्थल के स्वामित्व को लेकर अब कोई मामला कोर्ट में नहीं जा पाएगा.

इस कानून को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पहले अश्विनी उपाध्याय ने 12 मार्च 2021 को रिट पिटीशन डाली. 14 दिन बाद यानी 26 मार्च को सुब्रमण्यम स्वामी ने भी ऐसी ही एक अपील सुप्रीम कोर्ट में दायर की. इन दोनों अपीलों को अब एक साथ सुना जा रहा है. स्वामी ने इसे चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट के सामने अपील की है कि 1991 का ये कानून खारिज किया जाना चाहिए. अपनी दलीलों में उन्होंने कहा है कि इस कानून के सेक्शन 4 के सब-सेक्श्न 3 के तहत चूंकि ये इमारत ऐतिहासिक महत्व और पुरातात्विक महत्व के दायरे में आती हैं, इसलिए 1991 का कानून इस पर लागू नहीं होता है.

इस कानून के सेक्शन 4 में स्पष्ट लिखा है कि 15 अगस्त 1947 को किसी धार्मिक स्थल का जो 'रिलीजियस कैरेक्टर' रहा हो, उसे बदला नहीं जा सकता और इस हिसाब से 15 अगस्त 1947 को या उससे पहले ज्ञानवापी का मूल 'रिलीजियस कैरेक्टर' एक मंदिर का था.

दलीलों में ये तर्क भी था कि ये कानून आर्टिकल 14 का यानी समानता के अधिकार का हनन करता है, क्योंकि राम और कृष्ण दोनों ही विष्णु के अवतार हैं और इस कानून के दायरे से राम जन्म स्थान को तो बाहर रखा गया है, लेकिन कृष्ण जन्म स्थान के कानून के घेरे में रखा है.

हिंदू धार्मिक स्थान पर प्राण प्रतिष्ठा के बाद 'रिलीजियस कैरेक्टर' तब तक वही रहता है, जब तक मूर्तियों का विसर्जन न कर दिया जाय. चूंकि विसर्जन हुआ नहीं, इसलिए 'रिलीजियस कैरेक्टर' वही है, बदला नहीं है. ये कानून जनता के बीच कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए था. लेकिन कानून-व्यवस्था और धार्मिक कार्य दोनों राज्य के विषय हैं, केंद्र के नहीं. केंद्र इस पर कानून नहीं बना सकता.

सुब्रमण्यम स्वामी का ट्वीट
सुब्रमण्यम स्वामी का ट्वीट

उन्होंने आगे दलील दी है कि सरकार का काम कानून बना कर अवैध को वैध करना नहीं, अवैध को अवैध करार देना है. इस कानून के तहत अवैध तरीके से मंदिर गिरा कर मस्ज़िद बनाई गई है, जिसे इस कानून के तहत वैध बना दिया गया. इस मामले की अगली सुनवाई अब जुलाई के दूसरे हफ्ते में है.

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Last Updated : May 16, 2022, 7:29 PM IST
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