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कांग्रेस बड़ी पार्टी, क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर भाजपा को चुनौती दे : शिवसेना - कांग्रेस नेता हरीश रावत

महाराष्ट्र में गठबंधन के सहारे सरकार चला रही शिवसेना ने कांग्रेस की तारीफ की है. कांग्रेस को बड़ी पार्टी बताते हुए साथ ही सलाह भी दी है कि क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर भाजपा को चुनौती देनी चाहिए.

शिवसेना
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Published : Dec 29, 2020, 12:07 PM IST

मुंबई : शिवसेना ने गठबंधन में शामिल कांग्रेस की तारीफ की साथ ही बड़ा बनने की नसीहत भी दे डाली. शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' में लिखा कि क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर ही भाजपा से मुकाबला किया जा सकता है.

'सामना' ने लिखा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन अर्थात ‘यूपीए’ का मजबूत होना समय की मांग है. ‘यूपीए’ का नेतृत्व कौन करेगा यह विवाद का मुद्दा नहीं है. मुद्दा ये है कि यूपीए को मजबूत बनाना है और भाजपा के समक्ष चुनौती के रूप में उसे खड़ा करना है. कांग्रेस पार्टी ये सब करने में समर्थ होगी तो उसका स्वागत है.

हरीश रावत के बयान का किया जिक्र

कांग्रेस नेता हरीश रावत के बयान 'गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी के पास ही गठबंधन का नेतृत्व होता है.' का जिक्र करते हुए लिखा कि वे सही बोले हैं लेकिन ये बड़ी पार्टी जमीन पर न चले. लोगों की अपेक्षा है कि वो एक बड़ी उड़ान भरे. नि:संदेह कांग्रेस आज तक बड़ी पार्टी है लेकिन बड़ी मतलब किस आकार की?

कांग्रेस के साथ ही तृणमूल और अन्नाद्रमुक जैसी पार्टियां संसद में हैं और ये सारी पार्टियां भाजपा विरोधी हैं. देश के विरोधी दल में एक खालीपन बन गया है और बिखरे हुए विपक्ष को एक झंडे के नीचे लाने की अपेक्षा की जाए तो कांग्रेस के मित्रों को इस पर आश्चर्य क्यों हो रहा है? देश में लोगों को बदलाव चाहिए इसलिए वैकल्पिक नेतृत्व की आवश्यकता है. सवाल यह है कि ये कौन दे सकता है?

कर्नाटक का उदाहरण दिया

कर्नाटक में 2023 में विधानसभा के चुनाव होने हैं. इस चुनाव के संदर्भ में पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा ने बड़ी घोषणा की है. 2023 का चुनाव जनता दल-सेक्युलर मतलब जेडीएस स्वतंत्र रूप से अपने बल पर लड़नेवाली है. कभी देवेगौड़ा कांग्रेस के साथी थे. कर्नाटक में उनके पुत्र कुमारस्वामी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई लेकिन आज दोनों पार्टियों में दरार है. देवेगौड़ा की पार्टी द्वारा अलग से चुनाव लड़ने का फायदा भारतीय जनता पार्टी को ही होगा. कर्नाटक ऐसा राज्य है जहां महाराष्ट्र की तरह कांग्रेस गांव-गांव तक फैली है.

पढ़ें- ईडी के नोटिस पर भड़के संजय राउत, कहा- महिलाओं को निशाना बनाना कायरता

कर्नाटक में कांग्रेस को अच्छा नेतृत्व मिला हुआ है, यह कांग्रेस के अच्छे भविष्यवाला राज्य है लेकिन मत विभाजन के खेल में भाजपा को फायदा हो जाता है इसलिए देवेगौड़ा और कुमारस्वामी को समझाने का काम कौन करेगा? देवेगौड़ा और कुमारस्वामी जैसे कई दल अन्य राज्यों में हैं.

बिहार की उठापटक का फायदा उठाएं

शिवसेना का कहना है कि नीतीश कुमार सरकार असंतोष की ज्वालामुखी में धधक रही है. ‘जदयू’ के मणिपुर से छह विधायकों को भाजपा ने अपने में मिला ही लिया. साथ ही खबर है कि बिहार की ‘जदयू’ में सुरंग लगाकर भाजपा अपने दम पर मुख्यमंत्री को बिठाने की तैयारी में है. वे बिहार में कांग्रेस और राजद जैसी पार्टियों के विधायक तोड़नेवाले हैं, ऐसा कहा जा रहा है. इसे रहने दें लेकिन जिस नीतीश कुमार के साथ वे राजसत्ता चला रहे हैं, उन्हीं नीतीश कुमार की पार्टी को कमजोर करने का काम शुरू कर दिया गया है. इस उठापटक को देश के विरोधी दल को गंभीरता से लेना चाहिए.

मुंबई : शिवसेना ने गठबंधन में शामिल कांग्रेस की तारीफ की साथ ही बड़ा बनने की नसीहत भी दे डाली. शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' में लिखा कि क्षेत्रीय दलों को साथ लेकर ही भाजपा से मुकाबला किया जा सकता है.

'सामना' ने लिखा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन अर्थात ‘यूपीए’ का मजबूत होना समय की मांग है. ‘यूपीए’ का नेतृत्व कौन करेगा यह विवाद का मुद्दा नहीं है. मुद्दा ये है कि यूपीए को मजबूत बनाना है और भाजपा के समक्ष चुनौती के रूप में उसे खड़ा करना है. कांग्रेस पार्टी ये सब करने में समर्थ होगी तो उसका स्वागत है.

हरीश रावत के बयान का किया जिक्र

कांग्रेस नेता हरीश रावत के बयान 'गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी के पास ही गठबंधन का नेतृत्व होता है.' का जिक्र करते हुए लिखा कि वे सही बोले हैं लेकिन ये बड़ी पार्टी जमीन पर न चले. लोगों की अपेक्षा है कि वो एक बड़ी उड़ान भरे. नि:संदेह कांग्रेस आज तक बड़ी पार्टी है लेकिन बड़ी मतलब किस आकार की?

कांग्रेस के साथ ही तृणमूल और अन्नाद्रमुक जैसी पार्टियां संसद में हैं और ये सारी पार्टियां भाजपा विरोधी हैं. देश के विरोधी दल में एक खालीपन बन गया है और बिखरे हुए विपक्ष को एक झंडे के नीचे लाने की अपेक्षा की जाए तो कांग्रेस के मित्रों को इस पर आश्चर्य क्यों हो रहा है? देश में लोगों को बदलाव चाहिए इसलिए वैकल्पिक नेतृत्व की आवश्यकता है. सवाल यह है कि ये कौन दे सकता है?

कर्नाटक का उदाहरण दिया

कर्नाटक में 2023 में विधानसभा के चुनाव होने हैं. इस चुनाव के संदर्भ में पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा ने बड़ी घोषणा की है. 2023 का चुनाव जनता दल-सेक्युलर मतलब जेडीएस स्वतंत्र रूप से अपने बल पर लड़नेवाली है. कभी देवेगौड़ा कांग्रेस के साथी थे. कर्नाटक में उनके पुत्र कुमारस्वामी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई लेकिन आज दोनों पार्टियों में दरार है. देवेगौड़ा की पार्टी द्वारा अलग से चुनाव लड़ने का फायदा भारतीय जनता पार्टी को ही होगा. कर्नाटक ऐसा राज्य है जहां महाराष्ट्र की तरह कांग्रेस गांव-गांव तक फैली है.

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कर्नाटक में कांग्रेस को अच्छा नेतृत्व मिला हुआ है, यह कांग्रेस के अच्छे भविष्यवाला राज्य है लेकिन मत विभाजन के खेल में भाजपा को फायदा हो जाता है इसलिए देवेगौड़ा और कुमारस्वामी को समझाने का काम कौन करेगा? देवेगौड़ा और कुमारस्वामी जैसे कई दल अन्य राज्यों में हैं.

बिहार की उठापटक का फायदा उठाएं

शिवसेना का कहना है कि नीतीश कुमार सरकार असंतोष की ज्वालामुखी में धधक रही है. ‘जदयू’ के मणिपुर से छह विधायकों को भाजपा ने अपने में मिला ही लिया. साथ ही खबर है कि बिहार की ‘जदयू’ में सुरंग लगाकर भाजपा अपने दम पर मुख्यमंत्री को बिठाने की तैयारी में है. वे बिहार में कांग्रेस और राजद जैसी पार्टियों के विधायक तोड़नेवाले हैं, ऐसा कहा जा रहा है. इसे रहने दें लेकिन जिस नीतीश कुमार के साथ वे राजसत्ता चला रहे हैं, उन्हीं नीतीश कुमार की पार्टी को कमजोर करने का काम शुरू कर दिया गया है. इस उठापटक को देश के विरोधी दल को गंभीरता से लेना चाहिए.

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