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जानें क्यों शिया समुदाय को माना जाता है भाजपा समर्थक...

आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े प्रदेश यूपी में जारी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के बीच एक सवाल उठ रहा है कि आखिर क्यों शिया समुदाय (Shia Muslim community) को भाजपा समर्थक माना जाता है. खैर, इस सवाल के जवाब के लिए जरा सूबे की सियासी समीकरण को समझने की जरूरत है.

Shia Muslim community
शिया समुदाय
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Published : Feb 26, 2022, 4:44 PM IST

लखनऊ: यूपी में जारी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के बीच एक सवाल उठ रहा है कि आखिर क्यों शिया समुदाय को भाजपा समर्थक माना जाता है. यूपी में बड़ी संख्या में ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां मुस्लिम वोट का खासा प्रभाव है और इसमें शिया-सुन्नी मतदाता मिलकर किसी पार्टी की जीत-हार का फैसला करते हैं. लेकिन मुस्लिम शिया समुदाय (Shia Muslim community) के बारे में यह दावा किया जाता है कि ये समुदाय भाजपा का समर्थन करता है. वहीं, यूपी के निर्धारित सात चरणों के विधानसभा चुनाव में से चार चरणों पर मतदान संपन्न हो चुके हैं और आगामी 27 फरवरी यानी कल पांचवें चरण के लिए मतदान होना है.

काबिले गौर हो कि यूपी की 20 फीसदी मुस्लिम आबादी 403 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 150 सीटों पर अपना प्रभाव रखती है. जिसमें सुन्नी और शिया सुन्नी वोटर अहम भूमिका निभाते हैं. पिछले कई वर्षों से दावा किया जाता है कि शिया समुदाय भाजपा का समर्थन करता है. और इनका नेतृत्व करते हैं मौलाना कल्बे जवाद. इस चुनाव में भी मौलाना कल्बे जवाद की ओर से भाजपा के पक्ष में बयान जारी हुआ था. उनका बयान सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा का विषय बना. चौथे चरण से पहले मौलाना कल्बे जवाद के बयान ने कई सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं. क्योंकि भाजपा से जुड़े शिया समुदाय के लोग भाजपा को समर्थन देने की बात करते हैं और यह दावा करते हैं कि शिया समुदाय का भी भाजपा को समर्थन है.

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वहीं, भाजपा के बड़े शिया नेताओं में शुमार और प्रदेश फखरुद्दीन अली अहमद कमेटी के चेयरमैन तुरज ज़ैदी का कहना है कि भाजपा की रणनीति के तहत सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास पर अमल करते हुए शिया समुदाय से जुड़े लोग भाजपा पर दूसरी पार्टियों की बनिस्बत ज्यादा भरोसा करते हैं. क्योंकि दूसरी पार्टियां मुस्लिम समुदाय की अपने बयानों में हिमायत तो करती हैं. लेकिन खुलकर सामने नहीं आती हैं, जबकि भाजपा सबके साथ सबके विश्वास के नारे पर अमल करते हुए सबको साथ लेकर चलने की बात करती है.

हालांकि कुछ ऐसे शिया मुस्लिम चेहरे भी हैं जो इन बातों से जरा भी इत्तेफाक नहीं रखते हैं. विश्व प्रसिद्ध धर्मगुरु स्वर्गीय मौलाना डॉ. कल्बे सादिक के बेटे मौलाना कल्बे सिब्तैन नूरी की राय इन से काफी जुदा है. नूरी का कहना है कि भाजपा के ज्यादातर नेता ऐसे हैं, जो किसी भी प्रकार का गलत बयान नहीं देते हैं. हम उनकी इज्जत करते हैं. लेकिन शिया समुदाय का वोट भाजपा को जाता है तो यह कथन असत्य है. नूरी का कहना है कि किसी भी मुस्लिम धर्मगुरु को सियासत के तहत किसी पार्टी के पक्ष में बयान नहीं देना चाहिए. क्योंकि किसी भी समुदाय की अवाम हो वो अपना वोट स्वतंत्रा के साथ देने का अधिकारी है. ऐसे में किसी एक समुदाय को किसी एक पार्टी से जोड़कर देखना सही नहीं है.

गौरतलब है कि यूपी की राजधानी लखनऊ में 9 विधानसभा सीटें हैं. ऐसे में चौथे चरण में लखनऊ में भी 9 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ था. लेकिन मतदान के ठीक 2 दिन पहले शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद ने भाजपा की हिमायत में बयान देकर सुर्खियां बटोरी थी. जिस पर मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आना शुरू हो गई थी. सोशल मीडिया पर भी शिया समुदाय के साथ विभिन्न मुस्लिम तबके के लोगों ने अपनी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दी थी. जिसमें कुछ ने मौलाना कल्बे जवाद का विरोध जताया था तो कुछ लोगों ने उनकी हिमायत भी की थी. लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी 10 मार्च को प्रदेश की जनता क्या फैसला करती है. क्या शिया धर्मगुरु की ओर से दिए गए बयान का कुछ असर दिखाई देता है या फिर नतीजे तमाम आंकड़ों से जुदा होंगे. खैर, यह तस्वीर तो 10 मार्च को ही साफ होगी.

लखनऊ: यूपी में जारी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) के बीच एक सवाल उठ रहा है कि आखिर क्यों शिया समुदाय को भाजपा समर्थक माना जाता है. यूपी में बड़ी संख्या में ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां मुस्लिम वोट का खासा प्रभाव है और इसमें शिया-सुन्नी मतदाता मिलकर किसी पार्टी की जीत-हार का फैसला करते हैं. लेकिन मुस्लिम शिया समुदाय (Shia Muslim community) के बारे में यह दावा किया जाता है कि ये समुदाय भाजपा का समर्थन करता है. वहीं, यूपी के निर्धारित सात चरणों के विधानसभा चुनाव में से चार चरणों पर मतदान संपन्न हो चुके हैं और आगामी 27 फरवरी यानी कल पांचवें चरण के लिए मतदान होना है.

काबिले गौर हो कि यूपी की 20 फीसदी मुस्लिम आबादी 403 विधानसभा सीटों में से तकरीबन 150 सीटों पर अपना प्रभाव रखती है. जिसमें सुन्नी और शिया सुन्नी वोटर अहम भूमिका निभाते हैं. पिछले कई वर्षों से दावा किया जाता है कि शिया समुदाय भाजपा का समर्थन करता है. और इनका नेतृत्व करते हैं मौलाना कल्बे जवाद. इस चुनाव में भी मौलाना कल्बे जवाद की ओर से भाजपा के पक्ष में बयान जारी हुआ था. उनका बयान सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा का विषय बना. चौथे चरण से पहले मौलाना कल्बे जवाद के बयान ने कई सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं. क्योंकि भाजपा से जुड़े शिया समुदाय के लोग भाजपा को समर्थन देने की बात करते हैं और यह दावा करते हैं कि शिया समुदाय का भी भाजपा को समर्थन है.

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वहीं, भाजपा के बड़े शिया नेताओं में शुमार और प्रदेश फखरुद्दीन अली अहमद कमेटी के चेयरमैन तुरज ज़ैदी का कहना है कि भाजपा की रणनीति के तहत सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास पर अमल करते हुए शिया समुदाय से जुड़े लोग भाजपा पर दूसरी पार्टियों की बनिस्बत ज्यादा भरोसा करते हैं. क्योंकि दूसरी पार्टियां मुस्लिम समुदाय की अपने बयानों में हिमायत तो करती हैं. लेकिन खुलकर सामने नहीं आती हैं, जबकि भाजपा सबके साथ सबके विश्वास के नारे पर अमल करते हुए सबको साथ लेकर चलने की बात करती है.

हालांकि कुछ ऐसे शिया मुस्लिम चेहरे भी हैं जो इन बातों से जरा भी इत्तेफाक नहीं रखते हैं. विश्व प्रसिद्ध धर्मगुरु स्वर्गीय मौलाना डॉ. कल्बे सादिक के बेटे मौलाना कल्बे सिब्तैन नूरी की राय इन से काफी जुदा है. नूरी का कहना है कि भाजपा के ज्यादातर नेता ऐसे हैं, जो किसी भी प्रकार का गलत बयान नहीं देते हैं. हम उनकी इज्जत करते हैं. लेकिन शिया समुदाय का वोट भाजपा को जाता है तो यह कथन असत्य है. नूरी का कहना है कि किसी भी मुस्लिम धर्मगुरु को सियासत के तहत किसी पार्टी के पक्ष में बयान नहीं देना चाहिए. क्योंकि किसी भी समुदाय की अवाम हो वो अपना वोट स्वतंत्रा के साथ देने का अधिकारी है. ऐसे में किसी एक समुदाय को किसी एक पार्टी से जोड़कर देखना सही नहीं है.

गौरतलब है कि यूपी की राजधानी लखनऊ में 9 विधानसभा सीटें हैं. ऐसे में चौथे चरण में लखनऊ में भी 9 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ था. लेकिन मतदान के ठीक 2 दिन पहले शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जवाद ने भाजपा की हिमायत में बयान देकर सुर्खियां बटोरी थी. जिस पर मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आना शुरू हो गई थी. सोशल मीडिया पर भी शिया समुदाय के साथ विभिन्न मुस्लिम तबके के लोगों ने अपनी अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दी थी. जिसमें कुछ ने मौलाना कल्बे जवाद का विरोध जताया था तो कुछ लोगों ने उनकी हिमायत भी की थी. लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी 10 मार्च को प्रदेश की जनता क्या फैसला करती है. क्या शिया धर्मगुरु की ओर से दिए गए बयान का कुछ असर दिखाई देता है या फिर नतीजे तमाम आंकड़ों से जुदा होंगे. खैर, यह तस्वीर तो 10 मार्च को ही साफ होगी.

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