गोरखपुर : गोवर्धन मठ पुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती अपने दो दिवसीय दौरे पर शुक्रवार को गोरखपुर में थे. यहां मीडिया कर्मियों से बात करते हुए उन्होंने कई मुद्दों पर अपनी बात रखी. इस दौरान उन्होंने हिंदू, हिंदी और हिंदू राष्ट्र को लेकर भी अपने विचार स्पष्ट किए. साथ ही धर्म सभा में मौजूद लोगों को भी उन्होंने संबोधित करते हुए कहा कि धर्म से विमुख और राष्ट्रभक्ति के भाव से अचेतन की स्थिति में रहने वाला मनुष्य न तो खुद के लिए सुख शांति प्राप्त कर सकता है और न ही समाज को कुछ दे सकता है.
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि जब कोई व्यक्ति या वर्ग अपने पद का उपयोग न करके उसका उपभोग करने में लग जाता है, तो वहां कई तरह की समस्याएं जन्म लेती हैं. कह सकते हैं कि वहां तबाही और बर्बादी आना निश्चित है. यह हर जगह लागू होता है. चाहे वह राजनीति का क्षेत्र हो, धर्म से जुड़े मठ-मंदिर हों या मीडिया जगत से जुड़ा हुआ मामला हो. जो भी अपने दायित्व से भटका वहां विसंगतियों के साथ विडंबना और बड़ी घटनाएं जन्म लेंगी ही. उन्होंने कहा कि ऐसी सोच और व्यवस्था का वह समर्थन नहीं करते.
उन्होंने मीडिया से भी सवाल किया और समर्थन की अपील किया. उनका कहना था कि अगर प्रचार तंत्र के इस मजबूत स्तंभ को, भारत के हिंदू राष्ट्र बनने में कोई भी बिंदु दिखाई देता है तो उसका समर्थन करना चाहिए. अपना सहयोग और दायित्व का बोध कराना चाहिए. उन्होंने कहा कि यही देश की असली शक्ति और समय की मांग है.
उन्होंने कहा कि देश में राजनेताओं की कमी नहीं है. लेकिन राजनीति की परिभाषा से भी वह परिचित नहीं है. यही इस देश की विडंबना है. शंकराचार्य ने कहा कि मंदिरों में किसी भी धर्म की महिला, पुरुष या साधु-संतों के प्रवेश को अनुचित तब तक नहीं माना जा सकता, जब तक वह इन पवित्र स्थानों में प्रवेश करने की धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं के खिलाफ जाकर आचरण न करता हो. उन्होंने खुद पर भी यह नियम लागू होना बताया.
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शंकराचार्य ने इस दौरान हिंदू और सनातन धर्म के बीच के मतभेद को भी स्पष्ट करते हुए कहा कि समाज में कोई भी अपने को इन दोनों शब्दों से जोड़ सकता है जिसका धर्म हिंदू है. उन्होंने कहा कि देश के कई ऐसे स्थान और धर्म ग्रंथ भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि हिंदू शब्द काफी प्राचीन है. चाहे हिमालय हो, हिंदकूट पर्वत हो.
उन्होंने स्पष्ट किया कि सनातनी, वैदिक, आर्य, हिन्दू इन चारों में से आप खुद को जो कहें वह हिन्दू की ही परिधि में आता है. हिन्द महासागर, हिंदी यह सब प्राचीन शब्द हैं, भले ही प्रचलन की दृष्टि से आप इसे नवीन मानें. उन्होंने कहा कि यह समय की मांग है. सनातनी लोग अपने कार्य व्यवहार को इस रूप में पेश करें जो आदर्श स्थापित करे.