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AP Govt To SC : आंध्र प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- धारा 17ए का उद्देश्य ईमानदार अधिकारियों की रक्षा करना - न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस

आंध्र प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से कहा कि तेदेपा प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू (TDP chief N Chandrababu Naidu) का भ्रष्टाचार मामले में जांच से पहले पूर्व अनुमति को अनिवार्य किए जाने के प्रावधान के अंतर्गत सुरक्षा का दावा किया जाना स्वीकार नहीं है. साथ ही कहा गया कि धारा 17ए का उद्देश्य ईमानदार अधिकारियों की रक्षा करना है. (Supreme Court, TDP chief N Chandrababu Naidu, Andhra Pradesh Skill Development Scam)

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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By PTI

Published : Oct 10, 2023, 9:41 PM IST

नई दिल्ली : आंध्र प्रदेश सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से कहा कि तेदेपा प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू (TDP chief N Chandrababu Naidu) का भ्रष्टाचार के मामले में जांच से पहले पूर्वानुमति को अनिवार्य करने वाले प्रावधान के तहत सुरक्षा का दावा अस्वीकार्य है, क्योंकि यह कोई ऐसी छतरी नहीं है, जिसके नीचे भ्रष्ट लोग छिप सकें, बल्कि इसका उद्देश्य ईमानदार अधिकारियों की रक्षा करना है. धारा 17ए 26 जुलाई, 2018 से एक संशोधन द्वारा लाई गई थी. संबंधित प्रावधान किसी पुलिस अधिकारी के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत किसी लोकसेवक द्वारा किए गए कथित अपराध की जांच के वास्ते सक्षम प्राधिकारी से पूर्व मंजूरी लेने की अनिवार्य आवश्यकता निर्धारित करता है.

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस (Justice Aniruddha Bose) और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी (Justice Bela M Trivedi) की पीठ को आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने बताया कि कौशल विकास निगम घोटाला मामले में गिरफ्तार तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) के नेता एन चंद्रबाबू नायडू के निणर्यों और कार्यों के चलते भारी भ्रष्टाचार हुआ और राजकोष को नुकसान पहुंचा.

रोहतगी ने कहा, 'भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए कोई ऐसी छतरी नहीं है, जहां भ्रष्टाचारी छिप सकें, बल्कि इसका उद्देश्य ईमानदार अधिकारियों की रक्षा करना है, जो अपने आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन में निर्णय लेने से डरते हैं. अधिनियम भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कोई बाधा उत्पन्न नहीं करता है. यह भ्रष्टाचार को खत्म करने और ईमानदार अधिकारियों की रक्षा करने का संसद का प्रयास है.'

उन्होंने कहा कि कार्रवाई किसी राजनीतिक प्रतिशोध से नहीं की गई है, जैसा कि नायडू ने आरोप लगाया है. दो घंटे से अधिक समय तक चली सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति बोस ने रोहतगी से पूछा कि क्या धारा 17ए की सुरक्षात्मक छतरी को पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जा सकता है. रोहतगी ने कहा, 'नहीं, आप धारा 17ए को समय से पीछे नहीं ले जा सकते. वे यही करना चाहते हैं। धारा 17ए 2018 में लाई गई, फिर इसे 2015 में कैसे लागू किया जा सकता है? यह तभी किया जा सकता है, जब संसद विशेष रूप से ऐसा कहे.'

शीर्ष अदालत कौशल विकास निगम घोटाला मामले में प्राथमिकी रद्द करने से इनकार करने संबंधी उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली नायडू की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. सुनवाई बेनतीजा रही और 13 अक्टूबर को जारी रहेगी. शुरुआत में, नायडू की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि पुलिस को लोकसेवक की भूमिका के बारे में जांच शुरू करने से पहले राज्यपाल की सहमति लेनी चाहिए थी.

नायडू को 2015 में मुख्यमंत्री रहते हुए कौशल विकास निगम से धन का कथित दुरुपयोग करने के मामले में गत नौ सितंबर को गिरफ्तार किया गया था, जिससे राज्य के खजाने को 371 करोड़ रुपये का कथित नुकसान हुआ था.

ये भी पढ़ें - SC On Prisoners Applications: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से पूछा, माफी की मांग पर निर्णय लेने में कितना समय लगता है?

नई दिल्ली : आंध्र प्रदेश सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से कहा कि तेदेपा प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू (TDP chief N Chandrababu Naidu) का भ्रष्टाचार के मामले में जांच से पहले पूर्वानुमति को अनिवार्य करने वाले प्रावधान के तहत सुरक्षा का दावा अस्वीकार्य है, क्योंकि यह कोई ऐसी छतरी नहीं है, जिसके नीचे भ्रष्ट लोग छिप सकें, बल्कि इसका उद्देश्य ईमानदार अधिकारियों की रक्षा करना है. धारा 17ए 26 जुलाई, 2018 से एक संशोधन द्वारा लाई गई थी. संबंधित प्रावधान किसी पुलिस अधिकारी के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत किसी लोकसेवक द्वारा किए गए कथित अपराध की जांच के वास्ते सक्षम प्राधिकारी से पूर्व मंजूरी लेने की अनिवार्य आवश्यकता निर्धारित करता है.

न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस (Justice Aniruddha Bose) और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी (Justice Bela M Trivedi) की पीठ को आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने बताया कि कौशल विकास निगम घोटाला मामले में गिरफ्तार तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) के नेता एन चंद्रबाबू नायडू के निणर्यों और कार्यों के चलते भारी भ्रष्टाचार हुआ और राजकोष को नुकसान पहुंचा.

रोहतगी ने कहा, 'भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए कोई ऐसी छतरी नहीं है, जहां भ्रष्टाचारी छिप सकें, बल्कि इसका उद्देश्य ईमानदार अधिकारियों की रक्षा करना है, जो अपने आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन में निर्णय लेने से डरते हैं. अधिनियम भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कोई बाधा उत्पन्न नहीं करता है. यह भ्रष्टाचार को खत्म करने और ईमानदार अधिकारियों की रक्षा करने का संसद का प्रयास है.'

उन्होंने कहा कि कार्रवाई किसी राजनीतिक प्रतिशोध से नहीं की गई है, जैसा कि नायडू ने आरोप लगाया है. दो घंटे से अधिक समय तक चली सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति बोस ने रोहतगी से पूछा कि क्या धारा 17ए की सुरक्षात्मक छतरी को पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जा सकता है. रोहतगी ने कहा, 'नहीं, आप धारा 17ए को समय से पीछे नहीं ले जा सकते. वे यही करना चाहते हैं। धारा 17ए 2018 में लाई गई, फिर इसे 2015 में कैसे लागू किया जा सकता है? यह तभी किया जा सकता है, जब संसद विशेष रूप से ऐसा कहे.'

शीर्ष अदालत कौशल विकास निगम घोटाला मामले में प्राथमिकी रद्द करने से इनकार करने संबंधी उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली नायडू की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. सुनवाई बेनतीजा रही और 13 अक्टूबर को जारी रहेगी. शुरुआत में, नायडू की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि पुलिस को लोकसेवक की भूमिका के बारे में जांच शुरू करने से पहले राज्यपाल की सहमति लेनी चाहिए थी.

नायडू को 2015 में मुख्यमंत्री रहते हुए कौशल विकास निगम से धन का कथित दुरुपयोग करने के मामले में गत नौ सितंबर को गिरफ्तार किया गया था, जिससे राज्य के खजाने को 371 करोड़ रुपये का कथित नुकसान हुआ था.

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