चंडीगढ़ : पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान की खंडपीठ ने यह कहते हुए कानूनी राय प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया कि तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता एससी/एसटी अधिनियम के प्रावधानों का दुरुपयोग कर रहे हैं.
अदालत कपल द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी. दरअसल, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(x) के तहत कथित रूप से बहू से निजी बातचीत के दौरान समुदाय/जाति (एससी/ एसटी जाति) के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप है.
याचिकाकर्ताओं के वकील ने प्रस्तुत किया कि बेटे की शादी से बहुत पहले याचिकाकर्ता ने 2016 में अखबार में एक नोटिस जारी करके अपने ही बेटे को अस्वीकार कर दिया था क्योंकि वह उनके साथ दुर्व्यवहार करता था और उन्हें उनके घर से बाहर करना चाहता था.
आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि उन्हें घर से बाहर निकालने की एक चाल में, बेटे ने कथित ऑडियो रिकॉर्डिंग को अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल पर अपलोड किया था और जालंधर में इसके खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता होने का दावा करने वाले तीन लोगों ने प्राथमिकी दर्ज कराई.
इस पृष्ठभूमि में अंतिम रूप से यह प्रस्तुत किया गया कि कोई भी सूचना देने वाला एससी एंड एसटी अधिनियम की धारा 2(1)(ईसी) के अनुसार 'पीड़ित' की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगा, जो पीड़ित को एक व्यक्ति के रूप में संदर्भित करता है जिसने या संपत्ति या शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक या आर्थिक नुकसान का अनुभव किया है, जिसमें उसके रिश्तेदार, कानूनी अभिभावक और कानूनी उत्तराधिकारी शामिल हैं.
महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य के वकील और शिकायतकर्ता के वकील दोनों ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि न तो लड़की, जिसके खिलाफ कथित अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया था, ने तत्काल मामले में कोई शिकायत नहीं की और न ही तीनों शिकायतकर्ता किसी भी तरह से संबंधित हैं.
कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि याचिकाकर्ताओं और उनके बेटे के बीच एक संपत्ति विवाद चल रहा है, जिसे वर्ष 2016 में उनके द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था और अब तथ्य यह है कि उसने रमनप्रीत कौर से शादी कर ली है.
वर्तमान प्राथमिकी 03 व्यक्तियों द्वारा दर्ज कराई गई है जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 2(1)(ईसी) के अनुसार पीड़ित नहीं हैं. अंत में, यह देखते हुए कि एससी एंड एसटी अधिनियम के प्रावधानों को लागू करके कानून की प्रक्रिया का स्पष्ट दुरुपयोग है और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि किसी भी शिकायतकर्ता के पास वर्तमान प्राथमिकी दर्ज कराने का कोई अधिकार नहीं है, अदालत ने वर्तमान याचिका को स्वीकार किया और याचिकाकर्ता/कपल को अग्रिम जमानत दी.
कोर्ट ने निर्देश दिया कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता एससी और एसटी अधिनियम के प्रावधानों का दुरुपयोग कर रहे हैं.
पंजाब के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया जाता है कि वे जिलों के सभी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को निर्देश जारी करें कि तीसरे पक्ष के कहने पर एससी और एसटी अधिनियम के तहत कोई भी प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए, जब तक कि जिला अटॉर्नी (कानूनी) से यह राय नहीं ले ली जाती कि शिकायतकर्ता एससी एंड एसटी एक्ट के तहत पीड़ित के अंतर्गत आता है.
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