श्रीनगर: वैश्विक तापमान यानी Global Warming आज दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बन चुका है. उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं है. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. इसके साथ ही बारिश और बर्फबारी के पैटर्न में भी लगातार बदलाव देखने को मिल रहे हैं. ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा कारण तेजी से होता जंगलों का कटान और पर्यावरण में बढ़ती प्रदूषण की मात्रा है. हालांकि इस सबके बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने पर्यावरण और जंगलों को बचाने का बीड़ा उठाया है और उनकी मेहनत रंग भी लाई है. हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 50 नाली भूमि को हर भरा करके लोगों को आइना दिखाया है. वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इस तरह उन्होंने करीब 10 हजार टन कार्बन उत्सर्जन कम करने में अपना योगदान दिया है.
कहते हैं श्रीनगर का मौसम न अंग्रेजों को रास आया न राजाओं को पसंद. गढ़वाल के राजा ने जहां से देवलगढ़ का रुख किया तो अंग्रेज यहां से पौड़ी जाकर बस गये. इसके पीछे का एक बड़ा कारण यहां कि गर्म जलवायु थी. इसी जलवायु में गढ़वाल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ऐसा मिश्रित वन तैयार किया, जो प्रदेश व देशभर के लिए नजीर पेश कर रहा है.
नजीर पेश की: एक हेक्टेयर में फैले इस मिश्रित वन में आम और सेब के पेड़ एक साथ फल देने लगे हैं, तो यहां उच्च हिमालयी क्षेत्र में उगने वाले बांज से लेकर निम्न हिमालयी क्षेत्रों में पाये जाने वाले सागौन के पौधे अब पेड़ का आकार लेने लगे हैं. गढ़वाल विवि के वैज्ञानिक इस मिश्रित वन को तैयार करने में पिछले तीन सालों से कार्य कर रहे थे. वैज्ञानिकों की यह मेहनत अब रंग लाती दिख रही है.
हेप्रेक संस्थान का कमाल: हेप्रेक संस्थान के वैज्ञानिक डॉ विजयकांत पुरोहित ने बताया कि इस प्रोजेक्ट को हॉर्टिकल्चर से भी जोड़ा गया है, यहां जंगली पेड़ों के साथ फलदार वृश्र भी लगाये गये हैं. यहां शहतूत, तेजपत्ता, आम, अनार, तिमरू, सेब बांज आदि के पौधे लगाये गये हैं, जिनके अच्छे परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं. सेब के पेड़ों पर तो फल भी आने लगे हैं.
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ऐसे आया जंगल बनाने का विचार: इस जंगल को बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गढ़वाल विवि के इंजीनियर महेश डोभाल बताते हैं कि विवि की बहुत सी लेंड पर अतिक्रमण किया जा रहा था. इस जमीन पर लोग कूड़ा कचरा फेंक रहे थे. इसी के मद्देनजर फर्स्ट फेज में एक हेक्टेयर भूमि पर 3000 पौधे रोपे गए, जिसमें अब पेड़ों में फल लगने लगे हैं. साथ में इस भूमि पर सब्जियों का भी उत्पादन किया जा रहा है. इसी तरह सेकेंड फेज में 2 हेक्टेयर भूमि पर भी जंगल बनाने की कार्ययोजना तैयार की जा रही है, इसके लिए बंजर पड़ी भूमि को डेवलप किया जा रहा है.
इको गार्डन होगा विकसित: गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर अन्नपूर्णा नौटियाल ने बताया कि तीन साल पहले इस प्रोजेक्ट को शुरू किया गया था. इसकी जिम्मेदारी विश्वविद्यालय की चित्रा टीम व हेप्रेक को दी गयी थी. यहां लो चिलिंग वैरायटी के पौधे भी लगाये गये हैं. उन्होंने बताया कि अगर यह प्रयोग पूरी तरह सफल रहता है, तो इसे काश्तकारों के बीच ले जाया जायेगा. साथ ही भविष्य में इसे ईको गार्डन के रूप में भी विकसित किया जायेगा.
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बनेगा ऑक्सीजन हब: श्रीनगर शहर में लगातार बढ़ती आबादी के साथ प्रदूषण भी बढ़ रहा है. ऐसे में जब गढ़वाल विश्वविद्यालय के मिश्रित वन में लगाये गये ये पौधे पूरी तरह पेड़ बन जायेंगे तो प्रत्येक पेड़ 20 टन के करीब कार्बन अवशोषित करेगा. वैज्ञानिकों की मानें तो इन पेड़ों के कारण 10 हजार टन कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है. ऐसे में ये मॉडल पूरे देश के लिए बहुउपयोगी और प्रेरणादायक साबित होगा.