नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने 2020 के दिल्ली दंगों के एक मामले में तीन छात्र कार्यकर्ताओं की जमानत के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को कहा, 'हम लोगों को अनावश्यक रूप से जेल में रखे जाने में विश्वास नहीं करते हैं.' न्यायमूर्ति एसके कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि मामले में जमानत याचिकाओं पर घंटों सुनवाई दिल्ली उच्च न्यायालय के समय की 'पूरी तरह बर्बादी' थी.
पीठ में न्यायमूर्ति एएस ओका और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं. पीठ दिल्ली उच्च न्यायालय के 15 जून 2021 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी, जिसमें कार्यकर्ता नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध के दौरान सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित मामले में जमानत दी गई थी. पुलिस की ओर से पेश अधिवक्ता रजत नायर ने सुनवाई की शुरुआत में पीठ से याचिकाओं पर सुनवाई दो सप्ताह के लिये स्थगित करने का अनुरोध किया, क्योंकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता एक अलग मामले में संविधान पीठ के समक्ष पेश हो रहे हैं.
पीठ ने मामले में सुनवाई के लिए अगली तारीख 31 जनवरी तय की. पीठ ने कहा कि जमानत से जुड़े मामलों में, जैसे ही कोई मामले के गुण-दोष में जाता है, सुनवाई लंबी हो जाती है. आरोपियों की ओर से पेश एक वकील ने कहा कि इस मामले में पुलिस ने उच्च न्यायालय के समक्ष गुण-दोष पर बहस की थी. नायर ने कहा कि पुलिस ने केवल उच्च न्यायालय द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब दिया था कि आरोपियों का कृत्य आतंकी कृत्य है या नहीं.
न्यायमूर्ति कौल ने कहा, आपने जमानत के मामलों में घंटों व्यतीत किए हैं. यह पूरी तरह से उच्च न्यायालय के समय की बर्बादी है. क्या आप जमानत के मामलों में पूर्ण मुकदमा चाहते हैं? यह मेरी समझ में नहीं आता है.