नई दिल्ली : केरल विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करने में देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल और केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है. केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस संबंधी याचिका दायर की थी, जिसमें दावा किया गया है कि विधानसभा द्वारा विधेयकों को पारित किये जाने के बाद राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान इस पर विचार करने में देरी कर रहे हैं. प्रदेश सरकार ने राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किए गए और संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल से मंजूरी के लिए उन्हें आठ विधेयक भेजे थे, लेकिन उन्हें मंजूरी नहीं मिली है.
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने राज्य सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया और इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को करने का तय किया. राज्यपाल और भारत सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव को नोटिस जारी किया गया है. सुनवाई के दौरान केरल सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील के के वेणुगोपाल ने कहा कि राज्यपालों को यह एहसास नहीं है कि वे संविधान के अनुच्छेद 168 के तहत विधायिका का हिस्सा हैं. उन्होंने कहा कि राज्यपाल खान के पास 7-23 महीने की अवधि के लिए लगभग 8 विधेयक सहमति के लिए लंबित हैं. राज्यपाल उन तीन विधेयकों को लेकर भी बैठे हुए हैं, जिन्हें पहले उनके हस्ताक्षर के तहत अध्यादेश के रूप में घोषित किया गया था. याचिका के अनुसार, लगभग आठ विधेयक राज्यपाल की सहमति के लिए उनके समक्ष प्रस्तुत किए गए थे और इनमें से, तीन विधेयक राज्यपाल के पास दो साल से अधिक समय से लंबित हैं, और तीन पूरे एक साल से अधिक समय से लंबित हैं.
शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता के के वेणुगोपाल की दलीलों पर गौर किया जिसमें आठ विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपाल की ओर से देरी किए जाने का आरोप लगाया गया. शीर्ष अदालत ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को नोटिस जारी करके कहा कि वह या फिर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सुनवाई में उसकी सहायता करें. अदालत अब केरल सरकार की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करेगी.
बता दें कि केरल राज्य ने अपनी याचिका में दावा किया कि राज्यपाल खान राज्य विधानसभा द्वारा पारित आठ विधेयकों पर विचार करने में देरी कर रहे हैं. याचिका में कहा गया है कि ये विधेयक सात से 21 महीनों से राज्यपाल की मंजूरी के इंतजार में लंबित हैं. केरल सरकार ने दावा किया कि राज्यपाल विधेयकों पर अपनी मंजूरी रोककर देरी कर रहे हैं और यह लोगों के अधिकारों को निष्प्रभावी बनाना है.
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