नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह राजनीतिक दलों की मुफ्त योजनाओं पर प्रतिबंध (SC hearing on freebies issue) लगाने की मांग वाली याचिका में हस्तक्षेप करने से इनकार नहीं कर सकता है. शीर्ष अदालत ने कहा कि उसके लिए पूरे मुद्दे पर फैसला करना संभव नहीं है, लेकिन अदालत ने इस मामले को नेक इरादे से उठाया है ताकि बहस शुरू हो और कुछ किया जाए.
प्रधान न्यायाधीश (CJI) एनवी रमना, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राजनीतिक दलों की मुफ्त योजनाओं पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी. इस मुद्दे में शामिल कुछ अधिवक्ताओं ने मामले की प्रकृति को देखते हुए मामले में अदालत के हस्तक्षेप के खिलाफ वकालत की थी.
सीजेआई (CJI NV Ramana) ने कहा, 'कल मान लीजिए कि कोई राज्य किसी विशेष योजना को बंद कर देता है और लाभार्थी हमारे पास यह कहते हुए आता है कि इसे बंद कर दिया गया है, क्या हम सुनने से इनकार कर देंगे? क्या हम कह सकते हैं कि भारत सरकार जो चाहे कर सकती है? यह एक न्यायिक जांच है.' चीफ जस्टिस ने कहा कि अदालत ने एक समिति के गठन का सुझाव दिया था क्योंकि हर कोई मुफ्त चाहता है, और एक समिति इस मुद्दे पर चर्चा के लिए एक तटस्थ मंच के रूप में कार्य कर सकती है.
सीजेआई ने कहा कि यह मुद्दा केवल चुनावी वादों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके बाद भी रहता है जिस पर गौर करना होगा. उन्होंने कहा, शुरू में मैंने इसे संसद के सामने रखने के बारे में सोचा था, अब मेरे (सेवानिवृत्ति) के कारण हमारे पास समय की कमी है. अब मैं सोच रहा हूं कि क्या हम समिति के बारे में कुछ कर सकते हैं, आखिरकार हम यह नहीं कहने जा रहे हैं कि सभी सुझावों को स्वीकार नहीं करना है, अंततः इस पर बहस करनी होगी, बहस के लिए भी पृष्ठभूमि की जरूरत होती है जिस पर विचार किया जा सकता है.
अदालत ने कहा कि समिति का नेतृत्व कौन करेगा यह भी एक मुद्दा है जिस पर गौर करने की जरूरत है. चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में अपनी संवैधानिक स्थिति के कारण समिति का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया था. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की पैरवी कर रहे एसजी तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि दलितों के उत्थान के लिए बनाई गई योजनाओं से कोई समस्या नहीं है, लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब मुफ्त साड़ी, मुफ्त टीवी सेट और मुफ्ती बिजली की पेशकश बिना वित्त को ध्यान में रखे की जाती है. यह आर्थिक आपदा की ओर ले जाता है.
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इस पर सीजेआई एनवी रमना ने कहा, फ्रीबी के साथ समस्या यह है कि वाटर टाइट कम्पार्टमेंट नहीं हो सकता. ग्रामीण क्षेत्रों में मकान और सड़कें आजीविका देती हैं. ऐसा बताया गया है कि राज्यों द्वारा दी गई साइकिल ने जीवन शैली को बदल दिया है, लड़कियां स्कूल जा सकती हैं, लोग यात्रा करते हैं. उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति के लिए छोटी सड़क बहुत बड़ा बदलाव ला सकती है, इसलिए यह तय करना कि क्या फ्रीबी माना जाए और क्या नहीं, यह एक मुद्दा है.
सीजेआई ने आम आदमी पार्टी की पैरवी कर रहे एएम सिंघवी से कहा कि बजटीय समर्थन के बिना चुनावी वादा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. सुनवाई के दौरान सीजेआई ने DMK की पैरवी कर रहे अधिवक्ता की भी खिंचाई की. प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने कहा, 'मेरे पास कहने के लिए बहुत सी चीजें हैं. ऐसा मत सोचो कि आप केवल एक बुद्धिमान पार्टी हैं जो दिखाई दे रही हैं. यह मत सोचिए कि हम जो कुछ भी कह रहे हैं, हम उसकी अनदेखी कर रहे हैं.' बता दें, अदालत बुधवार को भी इस मामले पर सुनवाई करेगी.