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SC REFUSES PLEA : ऐतिहासिक स्थानों के नाम बदलने संबंधी याचिका पर SC ने कहा- 'देश को ध्यान में रखें, धर्म को नहीं' - नाम बदलने संबंधी याचिका पर सुनवाई से इनकार

विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर जिन ऐतिहासिक स्थानों के नाम हैं, उनकी पहचान करने और उनके नाम बदलने संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने विचार करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिका से और दरार पैदा होगी (SC REFUSES PLEA).

SC REFUSES  PLEA
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Feb 27, 2023, 3:18 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भाजपा सदस्य और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया. याचिका में गृह मंत्रालय द्वारा विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर ऐतिहासिक स्थानों की पहचान करने और उनका नाम बदलने के लिए आयोग का गठन करने की मांग की गई थी.

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने कहा कि यह इतिहास का हिस्सा है और इसे चुनिंदा रूप से दूर नहीं किया जा सकता है, इसलिए हमें अन्य गंभीर समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिनका हमारा देश सामना कर रहा है.

जस्टिस जे नागरत्ना ने कहा कि 'इससे आप क्या हासिल करने जा रहे हैं?.... आप क्यों चाहते हैं कि गृह मंत्रालय एक समिति का गठन करे और इस पर ध्यान केंद्रित करे? और भी बहुत सारी समस्याएं हैं.'

जस्टिस जोसेफ ने कहा कि 'आप चुन-चुनकर अतीत में वापस जा रहे हैं...आखिरकार क्या हासिल होगा...भारत का संविधान मिलने के बाद हम एक लोकतांत्रिक देश बन गए हैं...आप एक समुदाय विशेष की ओर उंगली उठा रहे हैं...आप वापस जाना चाहते हैं ...आप उस रास्ते पर भागना चाहते हैं जहां भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश नहीं है...सबकी रक्षा करनी है.'

कोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिका से और दरार पैदा होगी. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि, 'हिंदुत्व जीवन का एक तरीका है, भारत ने यहां सभी को आत्मसात किया है चाहे आक्रमणकारी हो या मित्र... आप जानते हैं कि अंग्रेजों ने कैसे फूट डालो और राज करो की नीति शुरू की थी.... ऐसी याचिकाओं के माध्यम से ऐसा दोबारा न करें.... देश को ध्यान में रखें, धर्म को नहीं.'

अदालत ने कहा कि 'एक देश अतीत का कैदी नहीं रह सकता है और भारत सिर्फ इसलिए गणतंत्र नहीं है क्योंकि इसमें एक राष्ट्रपति है बल्कि लोकतंत्र में सभी वर्गों के लोगों को शामिल करता है. कोर्ट ने कहा कि देश के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनिवार्य रूप से आगे बढ़े जो नीति निर्देशक सिद्धांतों में सूचीबद्ध हैं. कोर्ट ने कहा कि ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए जो देश को एक सूत्र में बांधे.'

कोर्ट ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का इतिहास वर्तमान और भावी पीढ़ी को इस हद तक परेशान नहीं कर सकता कि आने वाली पीढ़ी अतीत की बंदी बन जाए. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय बार-बार इस बात पर बहस कर रहे थे कि वेदों में ऐसे शहर का जिक्र है जिनका नाम बाद में विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर रखा गया है और कुंती, अर्जुन आदि के नाम नहीं हैं. कोर्ट ने कहा कि हिंदू धर्म सबसे बड़ा धर्म है और इसकी महानता को कम नहीं किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि 'कृपया इसे कम मत करो.' हमारी महानता उदार होनी चाहिए. कृपया इसकी महानता की अनुमति दें ... इसकी महानता को समझें ... मैं एक ईसाई हूं लेकिन मैं हिंदू धर्म से समान रूप से प्रभावित हूं और मैं पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं ... कृपया लोगों को खुद तय करने दें.'

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि 'इसे जीने का तरीका कहा जाता है और हिंदुत्व में कोई कट्टरता नहीं है.' जस्टिस जोसेफ ने कहा कि 'हमारे पास बहुत क्षमता है, कृपया भविष्य पर ध्यान दें.'

उपाध्याय ने 'बर्बर विदेशी आक्रमणकारियों' के नाम पर विभिन्न स्थानों पर आपत्ति जताई थी और सरकार ने इसके बारे में कुछ नहीं किया था. उन्होंने मुख्य रूप से औरंगजेब जैसे मुस्लिम शासकों के बारे में बात की थी जिनके नाम पर स्थानों, सड़कों आदि का नाम रखा गया है.

पढ़ें- Aurangabad rename Confusion: औरंगाबाद और उस्मानाबाद के नाम बदले, सर्कुलर से भ्रम की स्थिति

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भाजपा सदस्य और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया. याचिका में गृह मंत्रालय द्वारा विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर ऐतिहासिक स्थानों की पहचान करने और उनका नाम बदलने के लिए आयोग का गठन करने की मांग की गई थी.

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने कहा कि यह इतिहास का हिस्सा है और इसे चुनिंदा रूप से दूर नहीं किया जा सकता है, इसलिए हमें अन्य गंभीर समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जिनका हमारा देश सामना कर रहा है.

जस्टिस जे नागरत्ना ने कहा कि 'इससे आप क्या हासिल करने जा रहे हैं?.... आप क्यों चाहते हैं कि गृह मंत्रालय एक समिति का गठन करे और इस पर ध्यान केंद्रित करे? और भी बहुत सारी समस्याएं हैं.'

जस्टिस जोसेफ ने कहा कि 'आप चुन-चुनकर अतीत में वापस जा रहे हैं...आखिरकार क्या हासिल होगा...भारत का संविधान मिलने के बाद हम एक लोकतांत्रिक देश बन गए हैं...आप एक समुदाय विशेष की ओर उंगली उठा रहे हैं...आप वापस जाना चाहते हैं ...आप उस रास्ते पर भागना चाहते हैं जहां भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश नहीं है...सबकी रक्षा करनी है.'

कोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिका से और दरार पैदा होगी. जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि, 'हिंदुत्व जीवन का एक तरीका है, भारत ने यहां सभी को आत्मसात किया है चाहे आक्रमणकारी हो या मित्र... आप जानते हैं कि अंग्रेजों ने कैसे फूट डालो और राज करो की नीति शुरू की थी.... ऐसी याचिकाओं के माध्यम से ऐसा दोबारा न करें.... देश को ध्यान में रखें, धर्म को नहीं.'

अदालत ने कहा कि 'एक देश अतीत का कैदी नहीं रह सकता है और भारत सिर्फ इसलिए गणतंत्र नहीं है क्योंकि इसमें एक राष्ट्रपति है बल्कि लोकतंत्र में सभी वर्गों के लोगों को शामिल करता है. कोर्ट ने कहा कि देश के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनिवार्य रूप से आगे बढ़े जो नीति निर्देशक सिद्धांतों में सूचीबद्ध हैं. कोर्ट ने कहा कि ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए जो देश को एक सूत्र में बांधे.'

कोर्ट ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का इतिहास वर्तमान और भावी पीढ़ी को इस हद तक परेशान नहीं कर सकता कि आने वाली पीढ़ी अतीत की बंदी बन जाए. याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय बार-बार इस बात पर बहस कर रहे थे कि वेदों में ऐसे शहर का जिक्र है जिनका नाम बाद में विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर रखा गया है और कुंती, अर्जुन आदि के नाम नहीं हैं. कोर्ट ने कहा कि हिंदू धर्म सबसे बड़ा धर्म है और इसकी महानता को कम नहीं किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि 'कृपया इसे कम मत करो.' हमारी महानता उदार होनी चाहिए. कृपया इसकी महानता की अनुमति दें ... इसकी महानता को समझें ... मैं एक ईसाई हूं लेकिन मैं हिंदू धर्म से समान रूप से प्रभावित हूं और मैं पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं ... कृपया लोगों को खुद तय करने दें.'

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि 'इसे जीने का तरीका कहा जाता है और हिंदुत्व में कोई कट्टरता नहीं है.' जस्टिस जोसेफ ने कहा कि 'हमारे पास बहुत क्षमता है, कृपया भविष्य पर ध्यान दें.'

उपाध्याय ने 'बर्बर विदेशी आक्रमणकारियों' के नाम पर विभिन्न स्थानों पर आपत्ति जताई थी और सरकार ने इसके बारे में कुछ नहीं किया था. उन्होंने मुख्य रूप से औरंगजेब जैसे मुस्लिम शासकों के बारे में बात की थी जिनके नाम पर स्थानों, सड़कों आदि का नाम रखा गया है.

पढ़ें- Aurangabad rename Confusion: औरंगाबाद और उस्मानाबाद के नाम बदले, सर्कुलर से भ्रम की स्थिति

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