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SC On Prisoners Applications: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से पूछा, माफी की मांग पर निर्णय लेने में कितना समय लगता है? - गुजरात सरकार

बिलकिस बानो दुष्कर्म और उसके परिजनों की हत्या के दोषियों की रिहाई के बाद गुजरात में ही एक अन्य हत्या के मामले में दोषी व्यक्ति ने सजा माफी की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुजरात सरकार (Application Of Prisoner to Gujarat Government) से माफी मांगने वाले कैदियों (Prisoners Seeking Remission) द्वारा दायर आवेदनों पर निर्णय लेने में लगने वाले समय के बारे में पूछा है.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 10, 2023, 6:25 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से माफी मांगने वाले कैदियों द्वारा दायर आवेदनों पर निर्णय लेने में लगने वाले समय के बारे में बताने को कहा है. साथ ही यह भी कि संवैधानिक अदालतों, उच्च न्यायालय और शीर्ष न्यायालय में कितनी याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें छूट देने की प्रार्थना पर विचार न किए जाने की शिकायतें हैं. शीर्ष अदालत ने विशेष रूप से गुजरात सरकार से पूछा कि क्या छूट का अनुदान सशर्त हो सकता है, जिसे रद्द किया जा सकता है?

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ का यह आदेश मफाभाई मोतीभाई सागर द्वारा दायर याचिका पर आया, जिन्हें अप्रैल 2006 में हुई हत्या के एक मामले में 2008 में ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया था. शीर्ष अदालत के समक्ष सागर का प्रतिनिधित्व वकील रऊफ रहीम और अली असगर रहीम ने किया. उनके वकील ने कहा कि उन्होंने 14 साल की सजा काटी है और 1992 की पुरानी राज्य नीति के तहत छूट के हकदार हैं.

सितंबर 2022 में, 9 सदस्यीय सलाहकार समिति ने एक बैठक में सर्वसम्मति से याचिकाकर्ता को छूट देने का निर्णय लिया, हालांकि समिति के निर्णय पर राज्य सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई. सागर ने इस साल फरवरी में पैरोल की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया, क्योंकि उसकी सजा में छूट या समय से पहले रिहाई पर कोई निर्णय नहीं लिया गया था.

उच्च न्यायालय ने उन्हें पैरोल नहीं दी और उन्होंने राहत की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया. गुजरात सरकार ने विशेष अनुमति याचिका में दलील दी कि याचिकाकर्ता की माफी पर फैसला पुराना हो चुका है और नए सिरे से फैसला लेने की जरूरत है. शीर्ष अदालत ने 28 अगस्त और 11 सितंबर को पारित आदेशों में राज्य सरकार के तर्क पर सवाल उठाया.

राज्य सरकार ने 30 सितंबर को शीर्ष अदालत के समक्ष एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि सागर को छूट दी जा सकती है, लेकिन कुछ शर्तों को लागू करना आवश्यक है. शीर्ष अदालत ने 6 अक्टूबर को पारित एक आदेश में कहा कि लंबी देरी के बाद, प्रतिवादी राज्य सरकार ने अंततः याचिकाकर्ता को स्थायी छूट देने का 15 सितंबर, 2023 का आदेश पारित किया है.

इसमें कहा गया कि हालांकि, ऐसा करते समय चार शर्तें लगाई गई हैं. प्रथम दृष्टया, हम पाते हैं कि इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद कि यह दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 432 के तहत राज्य सरकार की शक्ति का प्रयोग करने के लिए एक उपयुक्त मामला था, शर्त संख्या 1 से 3 को लागू नहीं किया जा सकता था.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से माफी मांगने वाले कैदियों द्वारा दायर आवेदनों पर निर्णय लेने में लगने वाले समय के बारे में बताने को कहा है. साथ ही यह भी कि संवैधानिक अदालतों, उच्च न्यायालय और शीर्ष न्यायालय में कितनी याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें छूट देने की प्रार्थना पर विचार न किए जाने की शिकायतें हैं. शीर्ष अदालत ने विशेष रूप से गुजरात सरकार से पूछा कि क्या छूट का अनुदान सशर्त हो सकता है, जिसे रद्द किया जा सकता है?

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ का यह आदेश मफाभाई मोतीभाई सागर द्वारा दायर याचिका पर आया, जिन्हें अप्रैल 2006 में हुई हत्या के एक मामले में 2008 में ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया था. शीर्ष अदालत के समक्ष सागर का प्रतिनिधित्व वकील रऊफ रहीम और अली असगर रहीम ने किया. उनके वकील ने कहा कि उन्होंने 14 साल की सजा काटी है और 1992 की पुरानी राज्य नीति के तहत छूट के हकदार हैं.

सितंबर 2022 में, 9 सदस्यीय सलाहकार समिति ने एक बैठक में सर्वसम्मति से याचिकाकर्ता को छूट देने का निर्णय लिया, हालांकि समिति के निर्णय पर राज्य सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई. सागर ने इस साल फरवरी में पैरोल की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया, क्योंकि उसकी सजा में छूट या समय से पहले रिहाई पर कोई निर्णय नहीं लिया गया था.

उच्च न्यायालय ने उन्हें पैरोल नहीं दी और उन्होंने राहत की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया. गुजरात सरकार ने विशेष अनुमति याचिका में दलील दी कि याचिकाकर्ता की माफी पर फैसला पुराना हो चुका है और नए सिरे से फैसला लेने की जरूरत है. शीर्ष अदालत ने 28 अगस्त और 11 सितंबर को पारित आदेशों में राज्य सरकार के तर्क पर सवाल उठाया.

राज्य सरकार ने 30 सितंबर को शीर्ष अदालत के समक्ष एक हलफनामा दायर किया, जिसमें कहा गया कि सागर को छूट दी जा सकती है, लेकिन कुछ शर्तों को लागू करना आवश्यक है. शीर्ष अदालत ने 6 अक्टूबर को पारित एक आदेश में कहा कि लंबी देरी के बाद, प्रतिवादी राज्य सरकार ने अंततः याचिकाकर्ता को स्थायी छूट देने का 15 सितंबर, 2023 का आदेश पारित किया है.

इसमें कहा गया कि हालांकि, ऐसा करते समय चार शर्तें लगाई गई हैं. प्रथम दृष्टया, हम पाते हैं कि इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद कि यह दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 432 के तहत राज्य सरकार की शक्ति का प्रयोग करने के लिए एक उपयुक्त मामला था, शर्त संख्या 1 से 3 को लागू नहीं किया जा सकता था.

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